श्री चंद्रप्रभु भगवान चालीसा

श्री चंद्रप्रभु भगवान चालीसा


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भगवान श्री चंद्रप्रभु जी जैन धर्म के आठवें तीर्थंकर थे। भगवान श्री चंद्रप्रभु जी का जन्म काशी जनपद के चंद्रपुरी में पौष माह के कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि को अनुराधा नक्षत्र में हुआ था। इनके पिता का नाम राजा महासेन था और इनकी माता का नाम लक्ष्मणा देवी था। भगवान श्री चंद्रप्रभु जी के शरीर का वर्ण श्वेत था। भगवान श्री चंद्रप्रभु जी का प्रतीक चिन्ह चंद्रमा है। 
 
भगवान श्री चंद्रप्रभु जी को भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी को सम्मेद शिखर पर मोक्ष प्राप्त हुआ। भगवान श्री चंद्रप्रभु चालीसा का पाठ करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। अंधे को आंखें मिलती है, बहरे व्यक्ति का बहरापन दूर होता है, दुखी व्यक्ति के सभी दुख दूर होते हैं और सभी संकट टल जाते हैं। भगवान श्री चंद्रप्रभु जी का चालीसा पाठ करने से भूत प्रेत और ऊपरी बाधा से छुटकारा मिलता है। भगवान श्री चंद्रप्रभु चालीसा का पाठ करने से मन शांत और स्थिर रहता है। 
 

श्री चन्द्रप्रभु चालीसा

वीतराग सर्वज्ञ जिन,
जिन वाणी को ध्याय।
लिखने का साहस करु,
चालीसा सिर नाय।
देहरे के श्रीचन्द्र को,
पूजो मन वच काय।
ऋद्धि सिद्धि मंगल करे,
विघ्न दूर हो जाय।
जय श्रीचन्द्र दया के सागर,
देहरे वाले ज्ञान उजागर।
शांति छवि मूरति अति प्यारी,
भेष दिगम्बर धारा भारी।
नासा पर है दृष्टि तुम्हारी,
मोहनी मूरति कितनी प्यारी।
देवों के तुम देव कहावो,
कष्ट भक्त के दूर हटावो।
समन्तभद्र मुनिवर ने ध्याया,
पिंडी फटी दर्श तुम पाया।
तुम जग में सर्वज्ञ कहावो,
अष्टम तीर्थंकर कहलावो।
महासेन के राजदुलारे,
मात सुलक्षणा के हो प्यारे।
चन्द्रपुरी नगरी अति नामी,
जन्म लिया चन्द्र-प्रभु स्वामी।
पौष वदी ग्यारस को जन्मे,
नर नारी हरषे तब मन में।
काम क्रोध तृष्णा दुखकारी,
त्याग सुखद मुनि दीक्षा धारी।
फाल्गुन वदी सप्तमी भाई,
केवल ज्ञान हुआ सुखदाई।
फिर सम्मेद शिखर पर जाके,
मोक्ष गये प्रभु आप वहां से।
लोभ मोह और छोड़ी माया,
तुमने मान कषाय नसाया।
रागी नहीं, नहीं तू द्वेषी,
वीतराग तू हित उपदेशी।
पंचम काल महा दुखदाई,
धर्म कर्म भूले सब भाई।
अलवर प्रान्त में नगर तिजारा,
होय जहां पर दर्शन प्यारा।
उत्तर दिशि में देहरा माही,
वहां आकर प्रभुता प्रगटाई।
सावन सुदि दशमि शुभ नामी,
प्रकट भये त्रिभुवन के स्वामी।
चिह्न चन्द्र का लख नर नारी,
चंद्रप्रभु की मूरती मानी।
मूर्ति आपकी अति उजयाली,
लगता हीरा भी है जाली।
अतिशय चन्द्र प्रभु का भारी,
सुनकर आते यात्री भारी।
फाल्गुन सुदी सप्तमी प्यारी,
जुड़ता है मेला यहां भारी।
कहलाने को तो शशि धर हो,
तेज पुंज रवि से बढ़कर हो।
नाम तुम्हारा जग में साचा,
ध्यावत भागत भूत पिशाचा।
राक्षस भूत प्रेत सब भागे,
तुम सुमिरत भय कभी न लागे।
कीर्ति तुम्हारी है अति भारी,
गुण गाते नित नर और नारी।
जिस पर होती कृपा तुम्हारी,
संकट झट कटता ही भारी।
जो भी जैसी आश लगाता,
पूरी उसे तुरत कर पाता।
दुखिया दर पर जो आते है,
संकट सब खो कर जाते है।
खुला सभी हित प्रभु द्वार है,
चमत्कार को नमस्कार है।
अन्धा भी यदि ध्यान लगावे,
उसके नेत्र शीघ्र खुल जावे।
बहरा भी सुनने लग जावे,
पगले का पागलपन जावे।
अखंड ज्योति का घृत जो लगावे,
संकट उसका सब कट जावे।
चरणों की रज अति सुखकारी,
दुख दरिद्र सब नाशनहारी।
चालीसा जो मन से ध्यावे,
पुत्र पौत्र सब सम्पति पावे।
पार करो दुखियों की नैया,
स्वामी तुम बिन नहीं खिवैया।
प्रभु मैं तुम से कुछ नहिं चाहूं,
दर्श तिहारा निश दिन पाऊं।
करुं वन्दना आपकी,
श्रीचन्द्र प्रभु जिनराज।
जंगल में मंगल कियो,
रखो ‘सुरेश’ की लाज।  

Shri Chandraprabhu Ji Chalisa

शीश नवा अरिहंत को, सिद्धन करूँ प्रणाम।
उपाध्याय आचार्य का, ले सुखकारी नाम।।
सर्व साधु और सरस्वती, जिन मंदिर सुखकर।
चन्द्रपुरी के चन्द्र को, मन मंदिर में धार।।

।। चौपाई ।।

जय जय स्वामी श्री जिन चन्दा, तुमको निरख भये आनन्दा।
तुम ही प्रभु देवन के देवा, करूँ तुम्हारे पद की सेवा।।

वेष दिगम्बर कहलाता है, सब जग के मन भाता है।
नासा पर है द्रष्टि तुम्हारी, मोहनि मूरति कितनी प्यारी।।

तीन लोक की बातें जानो, तीन काल क्षण में पहचानो।
नाम तुम्हारा कितना प्यारा, भूत प्रेत सब करें निवारा।।

तुम जग में सर्वज्ञ कहाओ, अष्टम तीर्थंकर कहलाओ।।
महासेन जो पिता तुम्हारे, लक्ष्मणा के दिल के प्यारे।।

तज वैजंत विमान सिधाये, लक्ष्मणा के उर में आये।
पोष वदी एकादश नामी, जन्म लिया चन्दा प्रभु स्वामी।।

मुनि समन्तभद्र थे स्वामी, उन्हें भस्म व्याधि बीमारी।
वैष्णव धर्म जभी अपनाया, अपने को पण्डित कहाया।।

कहा राव से बात बताऊँ, महादेव को भोग खिलाऊँ।
प्रतिदिन उत्तम भोजन आवे, उनको मुनि छिपाकर खावे।।

इसी तरह निज रोग भगाया, बन गई कंचन जैसी काया।
इक लड़के ने पता चलाया, फौरन राजा को बतलाया।।

तब राजा फरमाया मुनि जी को, नमस्कार करो शिवपिंडी को।
राजा से तब मुनि जी बोले, नमस्कार पिंडी नहिं झेले।।

राजा ने जंजीर मंगाई, उस शिवपिंडी में बंधवाई।
मुनि ने स्वयंभू पाठ बनाया, पिंडी फटी अचम्भा छाया।।

चन्द्रप्रभ की मूर्ति दिखाई, सब ने जय जयकार मनाई।
नगर फिरोजाबाद कहाये, पास नगर चन्दवार बताये।।

चन्द्रसैन राजा कहलाया, उस पर दुश्मन चढ़कर आया।
राव तुम्हारी स्तुति गई, सब फौजो को मार भगाई।।

दुश्मन को मालूम हो जावे, नगर घेरने फिर आ जावे।
प्रतिमा जमना में पधराई, नगर छोड़कर परजा धाई।।

बहुत समय ही बीता है कि, एक यती को सपना दीखा।
बड़े जतन से प्रतिमा पाई, मन्दिर में लाकर पधराई।।

वैष्णवों ने चाल चलाई, प्रतिमा लक्ष्मण की बतलाई।
अब तो जैनी जन घबरावें, चन्द्र प्रभु की मूर्ति बतावें।।

चिन्ह चन्द्रमा का बतलाया, तब स्वामी तुमको था पाया।
सोनागिरि में सौ मन्दिर हैं, इक बढ़कर इक सुन्दर हैं।।

समवशरण था यहाँ पर आया, चन्द्र प्रभु उपदेश सुनाया।
चन्द्र प्रभु का मंदिर भारी, जिसको पूजे सब नर नारी।।

सात हाथ की मूर्ति बताई, लाल रंग प्रतिमा बतलाई।
मंदिर और बहुत बतलाये, शोभा वरणत पार न पाये।।

पार करो मेरी यह नैया, तुम बिन कोई नहीं खिवैया।
प्रभु मैं तुमसे कुछ नहीं चाहूँ, भव भव में दर्शन पाऊँ।।

मैं हूँ स्वामी दास तिहारा, करो नाथ अब तो निस्तारा।
स्वामी आप दया दिखलाओ, चन्द्रदास को चन्द्र बनाओ।।

।।सोरठ।।
नित चालीसहिं बार, पाठ करे चालीस दिन।
खेय सुगन्ध अपार, सोनागिर में आय के।।
होय कुबेर सामान, जन्म दरिद्री होय जो।
जिसके नहिं संतान, नाम वंश जग में चले।।
जाप ॐ ह्रीं अर्हं श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय नमः

भजन श्रेणी : जैन भजन (Read More : Jain Bhajan)

 

Chandra Prabhu Chalisa Superfast

म्हारा चंद्रप्रभ जी की सुन्दर मूरत, म्हारे मन भाई जी ||
सावन सुदि दशमी तिथि आई, प्रगटे त्रिभुवन रार्इ जी ||

अलवर प्रांत में नगर तिजारा, दरसे देहरे मांही जी ||
सीता सती ने तुमको ध्याया, अग्नि में कमल रचाया जी ||

मैना सती ने तुमको ध्याया, पति का कुष्ट मिटाया जी ||
जिनमें भूत प्रेत नित आते, उनका साथ छुड़ाया जी ||

सोमा सती ने तुमको ध्याया, नाग का हार बनाया जी ||
मानतुंग मुनि तुमको ध्याया, तालों को तोड़ भगाया जी ||

जो भी दु:खिया दर पर आया, उसका कष्ट मिटाया जी ||
अंजन चोर ने तुमको ध्याया, शस्त्रों से अधर उठाया जी ||

सेठ सुदर्शन तुमको ध्याया, सूली का सिंहासन बनाया जी ||
समवसरण में जो कोई आया, उसको पार लगाया जी ||

रत्न-जड़ित सिंहासन सोहे, ता में अधर विराजे जी ||
तीन छत्र शीष पर सोहें, चौंसठ चंवर ढुरावें जी ||

ठाड़ो सेवक अर्ज करै छै, जनम मरण मिटाओ जी ||
भक्त तुम्हारे तुमको ध्यावैं, बेड़ा पार लगाओ जी ||

चन्द्रप्रभु जी की आरती

जय चंद्रप्रभु देवा, स्वामी जय चंद्रप्रभुदेवा ।
तुम हो विघ्न विनाशक स्वामी, तुम हो विघ्न विनाशक स्वामी
पार करो देवा, स्वामी पार करो देवा ॥
जय चंद्रप्रभु देवा…

मात सुलक्षणा पिता तुम्हारे महासेन देवा
चन्द्र पूरी में जनम लियो हैं स्वामी देवों के देवा
तुम हो विघ्न विनाशक, स्वामी पार करो देवा ॥
जय चंद्रप्रभु देवा…

जन्मोत्सव पर प्रभु तिहारे, सुर नर हर्षाये
रूप तिहार महा मनोहर सब ही को भायें
तुम हो विघ्न विनाशक, स्वामी पार करो देवा ॥
जय चंद्रप्रभु देवा…

बाल्यकाल में ही प्रभु तुमने दीक्षा ली प्यारी
भेष दिगंबर धारा, महिमा हैं न्यारी
तुम हो विघ्न विनाशक, स्वामी पार करो देवा ॥
जय चंद्रप्रभु देवा…

फाल्गुन वदि सप्तमी को, प्रभु केवल ज्ञान हुआ
खुद जियो और जीने दो का सबको सन्देश दिया
तुम हो विघ्न विनाशक, स्वामी पार करो देवा ॥
जय चंद्रप्रभु देवा…

अलवर प्रान्त में नगर तिजारा, देहरे में प्रगटे
मूर्ति तिहारी अपने अपने नैनन, निरख निरख हर्षे
तुम हो विघ्न विनाशक, स्वामी पार करो देवा ॥
जय चंद्रप्रभु देवा…

हम प्रभु दास तिहारे, निश दिन गुण गावें
पाप तिमिर को दूर करो, प्रभु सुख शांति लावें
तुम हो विघ्न विनाशक, स्वामी पार करो देवा ॥
जय चंद्रप्रभु देवा…
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