श्री अभिनंदननाथ चालीसा लिरिक्स Shri Abhinandan Nath Chalisa Lyrics
भगवान श्री अभिनंदननाथ जी जैन धर्म के चर्तुथ तीर्थंकर थे। भगवान श्री अभिनंदन नाथ जी के पिता का नाम संवर तथा माता का नाम सिद्धार्था देवी था। भगवान श्री अभिनंदन नाथ जी का जन्म मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को अयोध्या में हुआ था। भगवान श्री अभिनंदन नाथ जी के शरीर का वर्ण स्वर्ण था। भगवान श्री अभिनंदन नाथ जी का प्रतीक चिन्ह बंदर है। भगवान श्री अभिनंदन नाथ जी को वैशाख माह की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को सम्मेद शिखर निर्वाण प्राप्त हुआ। भगवान श्री अभिनंदन नाथ जी का चालीसा पाठ करने से सभी रोग-दोष दूर होते हैं और सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। जैन धर्म में माना जाता है कि भगवान श्री अभिनंदन नाथ जी चालीसा का पाठ करने से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
श्री अभिनंदननाथ जी चालीसा लिरिक्स इन हिंदी Shri Abhinandan Nath Chalisa Lyrics in Hindi
ऋषभ-अजित-सम्भव अभिनन्दन,
दया करें सब पर दुखभंजन।
जनम-मरण के टूटे बन्धन,
मनमन्दिर तिष्ठं अभिनन्दन।
अयोध्या नगरी अति सुन्दर,
करते राज्य भूपति संवर।
सिद्धार्था उनकी महारानी,
सुन्दरता मे थी लासानी।
रानी ने देखे शुभ सपने,
बरसे रतन महल के अंगने।
मुख मे देखा हस्ति समाता,
कहलाई तीर्थंकर माता।
जननी उदर प्रभु अवतारे,
स्वर्गों से आए सुर सारे।
मात-पिता की पूजा करते,
गर्भ कल्याणक उत्सव करते।
द्वादशी माघ शुक्ला की आई,
जन्मे अभिनन्दन जिनराई।
देवों के भी आसन कांपे,
शिशु को लेकर गए मेरु पे।
न्हवन किया शत-आठ कलश से,
'अभिनन्दन' कहा प्रेम भाव से।
सूर्य समान प्रभु तेजस्वी,
हुए जगत में महायशस्वी।
बोले हित-मित वचन सुबोध,
वाणी में नही कही विरोध।
यौवन से जब हुए विभूषित,
राज्यश्री को किया सुशोभित।
साढ़े तीन सौ धनुष प्रमाण,
उन्नत प्रभु-तन शोभावान।
परणाई कन्याएं अनेक,
लेकिन छोड़ा नही विवेक।
नित प्रति नूतन भोग भोगते,
जल में भिन्न कमल सम रहते।
इक दिन देखे मेघ अम्बर मे,
मेघ-महल बनते पल भर मे।
हुए विलीन पवन चलने से,
उदासीन हो गए जगत से।
राजपाट निज सुत को सौंपा,
मन में समता-वृक्ष को रोपा।
गए उग्र नामक उद्यान,
दीक्षित हुए वहां गुणखान।
शुक्ला द्वादशी थी माघ मास,
दो दिन का धारा उपवास।
तीसरे दिन फिर किया विहार,
इन्द्रदत्त नृप ने दिया आहार।
वर्ष अठारह किया घोर तप,
सहे शीत-वर्षा और आतप।
एक दिन 'असन' वृक्ष के नीचे,
ध्यान वृष्टि से आतम सींचे।
उदय हुआ केवल दिनकर का,
लोकालोक ज्ञान में झलका।
हुई तब समोशरण की रचना,
खिरी प्रभु की दिव्य देशना।
जीवाजीव और धर्माधर्म,
आकाश-काल षटद्रव्य मर्म।
जीव द्रव्य ही सारभूत है,
स्वयंसिद्ध ही परमपूत है।
रूप तीन लोक-समझाया,
ऊर्ध्व-मध्य-अधोलोक बताया।
नीचे नरक बताए सात,
भुगते पापी अपने पाप।
ऊपर सोलह स्वर्ग सुजान,
चतुर्निकाय देव विमान।
मध्य लोक मे द्वीप असंख्य,
ढाई द्वीप मे जाये भव्य।
भटकों को तन्मार्ग दिखाया,
भव्यों को भव-पार लगाया।
पहुँचे गढ़ सम्मेद अन्त में,
प्रतिमा योग धरा एकान्त में।
शुक्लध्यान में लीन हुए तब,
कर्म प्रकृति क्षीण हुईं सब।
वैसाख शुक्ला षष्ठी पुण्यवान,
प्रात: प्रभु का हुआ निर्वाण।
मोक्ष कल्याणक करें सुर आकर,
'आनन्दकूट' पूजे हर्षाकर।
चालीसा श्रीजिन अभिनन्दन,
दूर करे सबके भवक्रन्दन।
स्वामी तुम हो पापनिकन्दन,
'अरुणा' करती शत-शत वन्दन।
ऋषभ-अजित-सम्भव अभिनन्दन,
दया करें सब पर दुखभंजन।
जनम-मरण के टूटे बन्धन,
मनमन्दिर तिष्ठं अभिनन्दन।
अयोध्या नगरी अति सुन्दर,
करते राज्य भूपति संवर।
सिद्धार्था उनकी महारानी,
सुन्दरता मे थी लासानी।
रानी ने देखे शुभ सपने,
बरसे रतन महल के अंगने।
मुख मे देखा हस्ति समाता,
कहलाई तीर्थंकर माता।
जननी उदर प्रभु अवतारे,
स्वर्गों से आए सुर सारे।
मात-पिता की पूजा करते,
गर्भ कल्याणक उत्सव करते।
द्वादशी माघ शुक्ला की आई,
जन्मे अभिनन्दन जिनराई।
देवों के भी आसन कांपे,
शिशु को लेकर गए मेरु पे।
न्हवन किया शत-आठ कलश से,
'अभिनन्दन' कहा प्रेम भाव से।
सूर्य समान प्रभु तेजस्वी,
हुए जगत में महायशस्वी।
बोले हित-मित वचन सुबोध,
वाणी में नही कही विरोध।
यौवन से जब हुए विभूषित,
राज्यश्री को किया सुशोभित।
साढ़े तीन सौ धनुष प्रमाण,
उन्नत प्रभु-तन शोभावान।
परणाई कन्याएं अनेक,
लेकिन छोड़ा नही विवेक।
नित प्रति नूतन भोग भोगते,
जल में भिन्न कमल सम रहते।
इक दिन देखे मेघ अम्बर मे,
मेघ-महल बनते पल भर मे।
हुए विलीन पवन चलने से,
उदासीन हो गए जगत से।
राजपाट निज सुत को सौंपा,
मन में समता-वृक्ष को रोपा।
गए उग्र नामक उद्यान,
दीक्षित हुए वहां गुणखान।
शुक्ला द्वादशी थी माघ मास,
दो दिन का धारा उपवास।
तीसरे दिन फिर किया विहार,
इन्द्रदत्त नृप ने दिया आहार।
वर्ष अठारह किया घोर तप,
सहे शीत-वर्षा और आतप।
एक दिन 'असन' वृक्ष के नीचे,
ध्यान वृष्टि से आतम सींचे।
उदय हुआ केवल दिनकर का,
लोकालोक ज्ञान में झलका।
हुई तब समोशरण की रचना,
खिरी प्रभु की दिव्य देशना।
जीवाजीव और धर्माधर्म,
आकाश-काल षटद्रव्य मर्म।
जीव द्रव्य ही सारभूत है,
स्वयंसिद्ध ही परमपूत है।
रूप तीन लोक-समझाया,
ऊर्ध्व-मध्य-अधोलोक बताया।
नीचे नरक बताए सात,
भुगते पापी अपने पाप।
ऊपर सोलह स्वर्ग सुजान,
चतुर्निकाय देव विमान।
मध्य लोक मे द्वीप असंख्य,
ढाई द्वीप मे जाये भव्य।
भटकों को तन्मार्ग दिखाया,
भव्यों को भव-पार लगाया।
पहुँचे गढ़ सम्मेद अन्त में,
प्रतिमा योग धरा एकान्त में।
शुक्लध्यान में लीन हुए तब,
कर्म प्रकृति क्षीण हुईं सब।
वैसाख शुक्ला षष्ठी पुण्यवान,
प्रात: प्रभु का हुआ निर्वाण।
मोक्ष कल्याणक करें सुर आकर,
'आनन्दकूट' पूजे हर्षाकर।
चालीसा श्रीजिन अभिनन्दन,
दूर करे सबके भवक्रन्दन।
स्वामी तुम हो पापनिकन्दन,
'अरुणा' करती शत-शत वन्दन।
भगवान श्री अभिनंदन नाथ जी का चालीसा पाठ करने के साथ ही उनके मंत्र का जाप करना भी अत्यंत लाभदायक होता है।
भगवान श्री अभिनंदननाथ जी का प्रभावशाली मंत्र:
ॐ ह्रीं अर्हं श्री अभिनन्दननाथाय नमः।
भगवान श्री अभिनंदननाथ जी का प्रभावशाली मंत्र:
ॐ ह्रीं अर्हं श्री अभिनन्दननाथाय नमः।
अष्ट द्रव्य संवारि सुन्दर सुजस गाय रसाल ही ।
नचत रजत जजौं चरन जुग, नाय नाय सुभाल ही ।।
कलुषताप निकंद श्रीअभिनन्द, अनुपम चन्द हैं ।
पद वंद वृन्द जजें प्रभू, भवदंद फंद निकंद हैं ।।
ॐ ह्रीं श्रीअभिनन्दन जिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये-अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा
नचत रजत जजौं चरन जुग, नाय नाय सुभाल ही ।।
कलुषताप निकंद श्रीअभिनन्द, अनुपम चन्द हैं ।
पद वंद वृन्द जजें प्रभू, भवदंद फंद निकंद हैं ।।
ॐ ह्रीं श्रीअभिनन्दन जिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये-अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा
श्री अभिनंदननाथ भगवान की आरती हिंदी लिरिक्स Shri Abhinandan Nath Bhagwan Aarti Lyrics in Hindi
अभिनंदन प्रभू जी की आज, हम सब आरति करें।बड़ा सांचा प्रभू का दरबार, सब मिल आरति करें।।टेक.।।
राजा स्वयंवर के घर जब थे जन्में,
इन्द्रगण आ मेरू पे अभिषेक करते,
नगरी अयोध्या में खुशियां अपार, प्रजाजन उत्सव करें,
अभिनंदन प्रभू जी की ......।।१।।
माघ सुदी बारस की तिथि बनी न्यारी,
प्रभुवर ने उग्र वन में दीक्षा थी धारी,
त्रैलोक्य पूज्य प्रभुवर की आज, सब मिल आरति करें,
अभिनंदन.............।।२।।
पौष सुदी चौदस में केवल रवि प्रगटा,
प्रभु की दिव्यध्वनि सुनकर जग सारा हर्षा,
केवलज्ञानी प्रभुवर की आज, सब मिल आरति करें,
अभिनंदन.............।।३।।
शाश्वत निर्वाणथली सम्मेद गिरि है,
वहीं पे प्रभू ने मुक्तिकन्या वरी है,
मुक्तिरमापति प्रभू की आज, सब मिल आरति करें,
अभिनंदन.............।।४।।
प्रभु तेरे द्वारे हम आरति को आए,
आरति के द्वारा भव आरत मिटाएं,
मिले शिवमार्ग, सब मिल आरति करें
अभिनंदन............।।५।।
भजन श्रेणी : जैन भजन (Read More : Jain Bhajan)
श्री अभिनंदननाथ चालीसा लिरिक्स Shri Abhinandan Nath Chalisa Lyrics