श्री अजितनाथ चालीसा लिरिक्स Shri Ajitnath Chalisa Lyrics

श्री अजितनाथ चालीसा लिरिक्स Shri Ajitnath Chalisa Lyrics, Bhagwan Shri Ajitnath Chalisa Lyrics in Hindi, Chalisa/Aarti Lyrics Hindi/pdf

भगवान श्री अजितनाथ जैन धर्म के द्वितीय तीर्थंकर थे। भगवान श्री अजितनाथ जी का जन्म अयोध्या के राज परिवार में हुआ था। भगवान श्री अजितनाथ जी का जन्म माघ माह की शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को हुआ था। भगवान श्री अजितनाथ जी के पिता का नाम जितशत्रु और माता का नाम विजया देवी था। भगवान श्री अजितनाथ जी का प्रतीक चिन्ह हाथी है। भगवान श्री अजितनाथ जी ने माघ माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को दीक्षा प्राप्त की। दीक्षा प्राप्ति के पश्चात 12 वर्षों तक कठोर परिश्रम कर भगवान श्री अजित नाथ जी ने कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति की। जैन धर्म के अनुसार चैत्र माह की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि के दिन सम्मेद शिखर पर भगवान श्री अजितनाथ जी को निर्वाण प्राप्त हुआ। भगवान श्री अजितनाथ जी का चालीसा पाठ करने से सभी सुखों की प्राप्ति होती है और रोग दोष दूर होते हैं। भगवान श्री अजितनाथ चालीसा का पाठ करने से सभी कार्य सफल होते हैं और हर क्षेत्र में विजय प्राप्त होती है। 
 

श्री अजितनाथ चालीसा लिरिक्स हिंदी Bhagwan Shri Ajitnath Chalisa Lyrics in Hindi

दोहा
अष्टकर्म को नाशकर, बने सिद्ध भगवान,
उनके चरणों मे करू, शत-शत बार प्रणाम।
पुन: सरस्वति मात को, ज्ञानप्राप्ति के हेतु,
नमन करू सिर नाय के, श्रद्धा भक्ति समेत।
अजितनाथ भगवान ने, जीते विषय-कषाय,
उनकी गुणगाथा कहू, पद अजेय मिल जाय।
चौपाई
जीत लिया इन्द्रिय विषयों को,
नमन करू उन अजितप्रभू को।
गर्भ में आने के छह महिने,
पहले से ही रत्न बरसते।
श्री-ह्री आदि देवियां आती,
सेवा करती जिनमाता की।
तीर्थ अयोध्या की महारानी,
माता विजया धन्य कहाई।
उनने देखे सोलह सपने,
ज्येष्ठ कृष्ण मावस की तिथि मे।
प्रात: पति श्री जितशत्रू से,
उन स्वप्नों के फल पूछे थे।
वे बोले-तुम त्रिभुवनपति की,
जननी होकर पूज्य बनोगी।
माता विजया अति प्रसन्न थी,
जीवन सार्थक समझ रही थी।
नौ महिने के बाद भव्यजन,
माघ शुक्ल दशमी तिथि उत्तम।
अजितनाथ तीर्थंकर जन्मे,
स्वर्ण सदृश वे चमक रहे थे।
प्रभु के लिए वस्त्र-आभूषण,
स्वर्ग से ही आते हैं प्रतिदिन।
भोजन भी स्वर्गों से आता,
इन्द्र सदा सेवा में रहता।
प्रभु अनेक सुख भोग रहे थे,
राज्यकार्य को देख रहे थे।
इक दिन उल्कापात देखकर,
हो गए वैरागी वे प्रभुवर।
वह तिथि माघ शुक्ल नवमी थी,
नम: सिद्ध कह दीक्षा ले ली।
इक हजार राजा भी संग में,
नग्न दिगम्बर मुनी बन गए।
वे मुनि घोर तपस्या करते,
जंगल-पर्वत-वन-उपवन में।
दीक्षा के पश्चात् सुनो तुम,
मौन ही रहते तीर्थंकर प्रभु।
दिव्यध्वनि में खिरती वाणी,
जो जन-जन की है कल्याणी।
अजितनाथ तीर्थंकर प्रभु जी,
शुद्धात्मा में पूर्ण लीन थे।
ध्यान अग्नि के द्वारा तब ही,
जला दिया कर्मों को झट ही।
पौष शुक्ल ग्यारस तिथि आई,
प्रभु ने ज्ञानज्योति प्रगटाई।
उस आनन्द का क्या ही कहना,
जहां नष्ट है कर्मघातिया।
वे प्रभु अन्तर्यामी बन गए,
ज्ञानानन्द स्वभावी हो गए।
धर्मामृत वर्षा के द्वारा,
प्रभु ने किया जगत उद्धारा।
बहुत काल तक समवसरण मे,
भव्यों को सम्बोधित करते।
पुन: चैत्र शुक्ला पंचमि को,
प्रभु ने पाया पंचमगति को।
पंचकल्याणक के स्वामी वे,
पंचभ्रमण से छूट गए अब।
हाथी चिन्ह सहित प्रभुवर की,
ऊँचाई अठरह सौ कर है।
इन प्रभुवर को हम नित वंदे,
पाप नष्ट हो जाए जिससे।
अजितनाथ की टोंक अयोध्या में,
निर्मित है मंदिर भैया।
उसमें प्रतिमा अति मनहारी,
शोभ रही हैं प्यारी-प्यारी।
गणिनी ज्ञानमती माता की,
प्रबल प्रेरणा प्राप्त हुई है।
वर्षो से इच्छा थी उनकी,
इच्छा पूरी हुई मात की।
अजितनाथ तीर्थंकर प्रभु की,
जितनी भक्ति करें कम ही है।
हे प्रभु मुझको ऐसा वर दो,
तन में कोई रोग नहीं हो।
क्योंकी नीरोगी तन से ही,
अधिक साधना हो संयम की।
संयम इक अनमोल रतन है,
मिलता है बहुतेक जतन से।
इससे कभी न डरना तुम भी,
इसको धारण करना इक दिन।
यही भाव निशदिन करने से,
तिरे 'सारिका' भवसमुद्र से।
सोरठा
जो अजितनाथ तीर्थंकर का,
चालीसा चालिस बार पढ़े।
वे हर कार्यों में सदा-सदा ही,
शीघ्र विजयश्री प्राप्त करे।
चारित्रचन्द्रिका गणिनी,
ज्ञानमती माता की शिष्या है।
प्रज्ञाश्रमणी चन्दनामती,
माता की मिली प्रेरणा है।
यद्यपि अति अल्पबुद्धि फिर भी,
गुरु आज्ञा शिरोधार्य करके।
लिख दिया समझ में जो आया,
विद्वज्जन त्रुटि सुधार कर ले।
इस चालीसा को पढ़ने से,
इक दिन कर्मों को जीत सके।
शाश्वत सुख की हो प्राप्ती,
भव्यों को ऐसा पुण्य मिले।  

भगवान श्री अजितनाथ जी का चालीसा हिंदी में Bhagwan Ajitnath Ji Chalisa Hindi Me

श्री आदिनाथ को शीश नवाकर,
माता सरस्वती को ध्याय।
शुरु करुँ श्री अजितनाथ का,
चालीसा स्व-पर सुखदाय॥

जय श्री अजितनाथ जिनराज।
पावन चिह्न धरें ‘गजराज’॥
नगर अयोध्या करते राज।
जितशत्रु नामक महाराज॥

विजयसेना उनकी महारानी।
देखें सोलह स्वप्न ललामी॥
दिव्य विमान विजय से चयकर।
जननी उदर बसे प्रभु आकर॥

शुक्ला दशमी माघ मास की।
जन्म जयन्ती अजित नाथ की॥
इन्द्र प्रभु को शीशधार कर।
गए सुमेरु हर्षित होकर॥

नीर क्षीर सागर से लाकर।
न्हवन करें भक्ति में भरकर॥
वस्त्राभूषण दिव्य पहनाए।
वापस लौट अयोध्या आए॥

अजितनाथ की शोभा न्यारी।
वर्ण स्वर्ण सम कान्तिधारी॥
बीता बचपन जब हितकारी।
हुआ ब्याह तब मंगलकारी॥

कर्मबन्ध नहीं हो भोगों में।
अन्तर्दृष्टि थी योगों में॥
चंचल चपला देवी नभ में।
हुआ वैराग्य निरन्तर मन में॥

राजपाट निज सुत को देकर।
हुए दिगम्बर दीक्षा लेकर॥
छ: दिन बाद हुआ आहार।
करें श्रेष्ठि ब्रह्मा सत्कार॥

किये पंच अचरज देवों ने।
पुण्योपार्जन किया सभी ने॥
बारह वर्ष तपस्या कीनी।
दिव्यज्ञान की सिद्धि नवीनी॥

धनपति ने इन्द्राज्ञा पाकर।
रच दिया समोशरण हर्षाकर॥
सभा विशाल लगी जिनवर की।
दिव्यध्वनि खिरती प्रभुवर की॥

वाद – विवाद मिटाने हेतु।
अनेकान्त का बाँधा सेतु॥
हैं सापेक्ष यहाँ सब तत्व।
अन्योन्याश्रित है उन सत्व॥

सब जीवों में हैं जो आतम।
वे भी हो सकते शुद्धात्म॥
ध्यान अग्नि का ताप मिले जब।
केवल ज्ञान की ज्योति जले तब॥

मोक्ष मार्ग तो बहुत सरल है।
लेकिन राही हुए विरल हैं॥
हीरा तो सब ले नहीं पावें।
सब्जी-भाजी भीड़ धरावें॥

दिव्यध्वनि सुन कर जिनवर की।
खिली कली जन-जन के मन की॥
प्राप्ति कर सम्यग्दर्शन की।
बगिया महकी भव्य जनों की॥

हिंसक पशु भी समता धारें।
जन्म-जन्म का बैर निवारें॥
पूर्ण प्रभावना हुई धर्म की।
भावना शुद्ध हुई भविजन की॥

दूर-दूर तक हुआ विहार।
सदाचार का हुआ प्रचार॥
एक माह की उम्र रही जब।
गए शिखर सम्मेद प्रभु तब॥

अखण्ड मौन मुद्रा की धारण।
कर्म अघाति हेतु निवारण॥
शुक्ल ध्यान का हुआ प्रताप।
लोक शिखर पर पहुँचे आप॥

‘सिद्धवर कूट’ की भारी महिमा।
गाते सब प्रभु की गुण-गरिमा॥

विजित किए श्री अजित ने,
अष्ट कर्म बलवान।
निहित आत्मगुण अमित हैं,
‘अरुणा’ सुख की खान॥

Bhagwan Shri Ajitnath Mantra/Jaap Hindi

ॐ ह्रीं अर्हं श्री अजितनाथाय नमः

श्री अजितनाथ आरती लिरिक्स हिंदी Shri Ajitnath Ji Bhagwan Aarti in Hindi

श्री अजितनाथ तीर्थंकर जिन की आरति करो रे।
श्री अजितनाथ तीर्थंकर जिन की आरति करो रे।
आरति करो, आरति करो, आरति करो रे,
श्री अजितनाथ तीर्थंकर जिन की आरति करो रे।।टेक.।।

नगरि अयोध्या धन्य हो गयी, जहाँ प्रभू ने जन्म लिया,
माघ सुदी दशमी तिथि थी, इन्द्रों ने जन्मकल्याण किया।
आरति करो, आरति करो, आरति करो रे,
जितशत्रु पिता, विजयानन्दन की आरति करो रे।।
श्री अजितनाथ तीर्थंकर जिन की आरति करो रे।

हाथी चिन्ह सहित तीर्थंकर, स्वर्ण वर्ण के धारी हैं,
माघ सुदी नवमी को प्रभु ने, जिनदीक्षा स्वीकारी है।
आरति करो, आरति करो, आरति करो रे,
केवलज्ञानी तीर्थंकर प्रभु की आरति करो रे।।
श्री अजितनाथ तीर्थंकर जिन की आरति करो रे।

चैत्र सुदी पंचमी तिथी थी, गिरि सम्मेद से मुक्त हुए,
पाई शाश्वत् सिद्धगती, उन परम जिनेश्वर को प्रणमें।
आरति करो, आरति करो, आरति करो रे,
उन सिद्धशिला के स्वामी प्रभु की आरति करो रे।।
श्री अजितनाथ तीर्थंकर जिन की आरति करो रे।

सुर नर मुनिगण भक्ति-भाव से, निशदिन ध्यान लगाते हैं,
कर्म शृंखला अपनी काटें, परम श्रेष्ठ पद पाते हैं।
आरति करो, आरति करो, आरति करो रे,
चंदनामती शिवपद आशा ले, आरति करो रे।।
श्री अजितनाथ तीर्थंकर जिन की आरति करो रे।

श्री अजित प्रभु आरती Shri Ajitnath Prabhu Aarti Lyrics in Hindi

जय श्री अजित प्रभु, स्वामी जय श्री अजित प्रभु ।
कष्ट निवारक जिनवर, तारनहार प्रभु ॥

पिता तुम्हारे जितशत्रू और, माँ विजया रानी ।
स्वामी माँ विजया रानी,
माघ शुक्ल दशमी को जन्मे, त्रिभुवन के स्वामी
स्वामी जय श्री अजित प्रभु, स्वामी जय श्री अजित प्रभु ।
कष्ट निवारक जिनवर, तारनहार प्रभु ॥

उल्कापात देख कर प्रभु जी, धार वैराग्य लिया ।
स्वामी धार वैराग्य लिया ।
गिरी सम्मेद शिखर पर, प्रभु ने पद निर्वाण लिया ॥
स्वामी जय श्री अजित प्रभु, स्वामी जय श्री अजित प्रभु ।
कष्ट निवारक जिनवर, तारनहार प्रभु ॥

यमुना नदी के तीर बटेश्वर, अतिशय अति भारी ।
स्वामी अतिशय अति भारी ।
दिव्य शक्ति से आई प्रतिमा, दर्शन सुखकारी ॥
स्वामी जय श्री अजित प्रभु, स्वामी जय श्री अजित प्रभु ।
कष्ट निवारक जिनवर, तारनहार प्रभु ॥

प्रतिमा खंडित करने को जब, शत्रु प्रहार किया ।
स्वामी शत्रु प्रहार किया ।
बही ढूध की धार प्रभु ने, अतिशय दिखलाया ॥
स्वामी जय श्री अजित प्रभु, स्वामी जय श्री अजित प्रभु ।
कष्ट निवारक जिनवर, तारनहार प्रभु ॥

बड़ी ही मन भावन हैं प्रतिमा, अजित जिनेश्वर की ।
स्वामी अजित जिनेश्वर की ।
मंवांचित फल पाया जाता, दर्शन करे जो भी ॥
स्वामी जय श्री अजित प्रभु, स्वामी जय श्री अजित प्रभु ।
कष्ट निवारक जिनवर, तारनहार प्रभु ॥

जगमग दीप जलाओ सब मिल, प्रभु के चरनन में ।
स्वामी प्रभु के चरनन में ।
पाप कटेंगे जनम जनम के, मुक्ति मिले क्षण में ॥
स्वामी जय श्री अजित प्रभु, स्वामी जय श्री अजित प्रभु ।
कष्ट निवारक जिनवर, तारनहार प्रभु ॥

भजन श्रेणी : जैन भजन (Read More : Jain Bhajan)

Ajitnath Chalisa Superfast

त्याग वैजयन्त सार, सार धर्म के अधार,
जन्म धार धीर नम्र, सुष्टु कौशलापुरी.
अष्ट दुष्ट नष्टकार, मातु वैजयाकुमारि,
आयु लक्षपूर्व, दक्ष है बहत्तरै पुरी.
ते जिनेश श्री महेश, शत्रु के निकंदनेश,
अत्र हेरिये सुदृष्टि, भक्त पे कृपा पुरी.
आय तिष्ठ इष्टदेव, मैं करूं पदाब्जसेव,
परम शर्मदाय पाय, आय शर्न आपुरी.
ॐ ह्रीं श्रीअजितनाथ जिन। अत्र अवतरत अवतरत संवौषट्! (आह्वाननम्)
ॐ ह्रीं श्रीअजितनाथ जिन। अत्र तिष्ठत तिष्ठत ठ: ठ:! (स्थापनम्)
ॐ ह्रीं श्रीअजितनाथ जिन। अत्र मम सन्निहितो भवत भवत वषट्! (सन्निधिकरणम्)

गंगाहृद पानी निर्मल आनी, सौरभ सानी सीतानी,
तसु धारत धारा तृषा निवारा, शांतागारा सुखदानी.
श्री अजित जिनेशं नुत नाकेशं, चक्रधरेशं खग्गेशं,
मनवाँछितदाता त्रिभुवनत्राता, पूजूँ ख्याता जग्गेशं.
ॐ ह्रीं श्रीअजितनाथजिनेन्द्राय जन्म जरा मृत्यु विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा ।१।

शुचि चंदन बावन ताप मिटावन, सौरभ पावन घसि ल्यायो,
तुम भव तप भंजन हो शिवरंजन, पूजन रंजन मैं आयो.
श्री अजित जिनेशं नुत नाकेशं, चक्रधरेशं खग्गेशं,
मनवाँछितदाता त्रिभुवनत्राता, पूजूँ ख्याता जग्गेशं.
ॐ ह्रीं श्रीअजितनाथजिनेन्द्राय संसारताप विनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा ।२।

सित खंड विवर्जित निशिपति तर्जित, पुंज विधर्जित तंदुल को,
भव भाव निखर्जित शिवपद सर्जित, आनंदभर्जित दंदल को,
श्री अजित जिनेशं नुत नाकेशं, चक्रधरेशं खग्गेशं,
मनवाँछितदाता त्रिभुवनत्राता, पूजूँ ख्याता जग्गेशं.
ॐ ह्रीं श्रीअजितनाथ जिनेन्द्राय अक्षयपद प्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा ।३।

मनमथ मद मंथन धीरज ग्रंथन, ग्रंथ निग्रंथन ग्रंथपति,
तुअ पाद कुशेसे आदि कुशेसे, धारि अशेसे अर्चयती.
श्री अजित जिनेशं नुत नाकेशं, चक्रधरेशं खग्गेशं,
मनवाँछितदाता त्रिभुवनत्राता, पूजूँ ख्याता जग्गेशं.
ॐ ह्रीं श्रीअजितनाथ जिनेन्द्राय कामबाण विध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा ।४।

आकुल कुलवारन थिरताकारन, क्षुधाविदारन चरु लायो,
षटरस कर भीने अन्न नवीने, पूजन कीने सुख पायो,
श्री अजित जिनेशं नुत नाकेशं, चक्रधरेशं खग्गेशं,
मनवाँछितदाता त्रिभुवनत्राता, पूजूँ ख्याता जग्गेशं.
ॐ ह्रीं श्रीअजितनाथ जिनेन्द्राय क्षुधारोग विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा ।५।

दीपक मनि माला जोत उजाला, भरि कनथाला हाथ लिया,
तुम भ्रमतम हारी शिवसुख कारी, केवलधारी पूज किया,
श्री अजित जिनेशं नुत नाकेशं, चक्रधरेशं खग्गेशं,
मनवाँछितदाता त्रिभुवनत्राता, पूजूँ ख्याता जग्गेशं.
ॐ ह्रीं श्रीअजितनाथ जिनेन्द्राय मोहांधकार विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा ।६।

अगरादिक चूरन परिमल पूरन, खेवत क्रूरन कर्म जरें,
दशहूँ दिश धावत हर्ष बढ़ावत, अलि गुण गावत नृत्य करें.
श्री अजित जिनेशं नुत नाकेशं, चक्रधरेशं खग्गेशं,
मनवाँछितदाता त्रिभुवनत्राता, पूजूँ ख्याता जग्गेशं.
ॐ ह्रीं श्रीअजितनाथ जिनेन्द्राय अष्टकर्म दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा ।७।

बादाम नंरगी श्रीफल पुंगी, आदि अभंगी सों अरचूं,
सब विघनविनाशे सुख परकाशे, आतम भासे भौ विरचूं.
श्री अजित जिनेशं नुत नाकेशं, चक्रधरेशं खग्गेशं,
मनवाँछितदाता त्रिभुवनत्राता, पूजूँ ख्याता जग्गेशं.
ॐ ह्रीं श्री अजितनाथ जिनेन्द्राय मोक्षफल प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा ।८।

जल फल सब सज्जे बाजत बज्जे, गुन गन रज्जे मन मज्जे,
तुअ पद जुग मज्जे सज्जन जज्जे, ते भव भज्जे निजकज्जे.
श्री अजित जिनेशं नुत नाकेशं, चक्रधरेशं खग्गेशं,
मनवाँछितदाता त्रिभुवनत्राता, पूजूँ ख्याता जग्गेशं.
ॐ ह्रीं श्रीअजितनाथ जिनेन्द्राय अनर्घ्यपद प्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।९।

जेठ असेत अमावसि सोहे, गर्भ दिना नंद सो मन मोहे,
इंद फनिंद जजें मन लार्इ, हम पद पूजत अर्घ चढ़ार्इ.
ॐ ह्रीं ज्येष्ठकृष्ण अमावस्यायां गर्भमंगल प्राप्ताय श्रीअजितनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।१।

माघ सुदी दशमी दिन जाये, त्रिभुवन में अति हरष बढ़ाये,
इंद फनिंद जजें तित आर्इ, हम इत सेवत हैं हुलसार्इ.
ॐ ह्रीं माघशुक्ल दशमीदिने जन्मंगल प्राप्ताय श्रीअजितनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।२।

माघ सुदी दशमी तप धारा, भव तन भोग अनित्य विचारा,
इंद फनिंद जजें तित आर्इ, हम इत सेवत हैं सिर नार्इ.
ॐ ह्रीं माघशुक्ल दशमीदिने दीक्षाकल्याणक प्राप्ताय श्रीअजितनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।३।

पौष सुदी तिथि ग्यारस सुहायो, त्रिभुवनभानु सु केवल जायो,
इंद फनिंद जजें तित आर्इ, हम पद पूजत प्रीति लगार्इ.
ॐ ह्रीं पौषशुक्ला एकादशीदिने ज्ञानकल्याणक प्राप्ताय श्रीअजितनाथ जिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।४।

पंचमि चैत सुदी निरवाना, निज गुनराज लियो भगवाना,
इंद फनिंद जजें तित आर्इ, हम पद पूजत हैं गुनगार्इ.
ॐ ह्रीं चैत्रशुक्ल पंचमीदिने निर्वाणमंगल प्राप्ताय श्रीअजितनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।५।

अष्ट दुष्ट को नष्ट करि, इष्ट मिष्ट निज पाय,
शिष्ट धर्म भाख्यो हमें, पुष्ट करो जिनराय,१|

जय अजितदेव तुअ गुन अपार, पे कहूँ कछुक लघु बुद्धि धार,
दश जनमत अतिशय बल अनंत, शुभ लच्छन मधुर वचन भनंत,२|

संहनन प्रथम मलरहित देह, तन सौरभ शोणित स्वेत जेह,
वपु स्वेद बिना महरूप धार, समचतुर धरें संठान चार,३|

दश केवल गमन अकाशदेव, सुरभिच्छ रहे योजन सतेव,
उपसर्ग रहित जिन तन सु होय, सब जीव रहित बाधा सु जोय,४|

मुख चारि सरब विद्या अधीश, कवला अहार सुवर्जित गरीश,
छाया बिनु नख कच बढ़ें नाहिं, उन्मेश टमक नहिं भ्रकुटि माँहिं,५|

सुर कृत दश चार करूं बखान, सब जीव मित्रता भाव जान,
कंटक बिन दर्पणवत् सुभूम, सब धान वृच्छ फल रहे झूम,६|

षट् रितु के फूल फले निहार, दिशि निर्मल जिय आनंद धार,
जहँ शीतल मंद सुगंध वाय, पद पंकज तल पंकज रचाय,७|

मलरहित गगन सुर जय उचार, वरषा गन्धोदक होत सार,
वर धर्मचक्र आगे चलाय, वसु मंगलजुत यह सुर रचाय,८|

सिंहासन छत्र चमर सुहात, भामंडल छवि वरनी न जात,
तरु उच्च अशोक रु सुमन वृष्टि, धुनि दिव्य और दुंदुभी सु मिष्ट,९|

दृग ज्ञान शर्म वीरज अनंत, गुण छियालीस इम तुम लहंत,
इन आदि अनंते सुगुनधार, वरनत गनपति नहिं लहत पार,१०|

तब समवसरण मँह इन्द्र आय, पद पूजन वसुविधि दरब लाय,
अति भगति सहित नाटक रचाय, ता थेर्इ थेर्इ थेर्इ धुनि रही छाय,११|

पग नूपुर झननन झनननाय, तननननन तननन तान गाय,
घननन नन नन घण्टा घनाय, छम छम छम छम घुंघरू बजाय,१२|

दृम दृम दृम दृम दृम मुरज ध्वान, संसाग्रदि सरंगी सुर भरत तान,
झट झट झट अटपट नटत नाट, इत्यादि रच्यो अद्भुत सुठाट,१३|

पुनि वंदि इंद्र सुनुति करंत, तुम हो जग में जयवंत संत,
फिर तुम विहार करि धर्मवृष्टि, सब जोग निरोध्यो परम इष्ट,१४|

जय अजित कृपाला, गुणमणिमाला, संजमशाला बोधपति,
वर सुजस उजाला, हीर हिमाला, ते अधिकाला स्वच्छ अती,

जो जन अजित जिनेश, जजें हैं मन वच कार्इ।
ताको होय अनन्द, ज्ञान सम्पति सुखदार्इ।।
पुत्र मित्र धन धान्य, सुजस त्रिभुवनमहँ छावे।
सकल शत्रु छय जाय, अनुक्रम सों शिव पावे।।१७
|| इत्याशीर्वाद: पुष्पांजलिं क्षिपामि ।।

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