कात्तिक बदी अमावस थी और दिन था खास दीवाळी का

कात्तिक बदी अमावस थी और दिन था खास दीवाळी का

कात्तिक बदी अमावस थी और दिन था खास दीवाळी का।
आंख्यां कै माहं आंसू आगे, घर देख्या जब हाळी का।।

कितै बनै थी खीर, कितै हलवे की खुशबू उठ रही।
हाळी की बहू एक कूण में खड़ी बाजरा कूट रही।।
हाळी नै ली खाट बिछा, वा पैतैं कानी तैं टूट रही।
भर कै हुक्का बैठ गया वो, चिलम तळै तैं फूट रही।।

चाकी धोरै जर लाग्या, डंडूक पड़्या एक फाहली का।
आंख्यां कै माहं आंसू आगे, घर देख्या जब हाळी का।।

सारे पड़ौसी बालकां खातिर, खील-खेलणे ल्यावैं थे।
दो बालक बैठे हाळी के, उनकी ओड़ लखावैं थे।।
बची रात की जळी खीचड़ी, घोल सीत में खावैं थे।
मगन हुए दो कुत्ते बैठे, साहमी कान हलावैं थे।।

एक बखोरा तीन कटोरे, काम नहीं था थाळी का।
आंख्यां कै माहं आंसू आगे, घर देख्या जब हाळी का।।

दोनूं बालक खील-खेलणा का कर कै विश्वास गये।
मां धोरै बिल पेश करया, वे ले कै पूरी आस गये।।
मां बोली बाप के जी नै रोवो, जिसके जाए नास गये।
फिर माता की बाणी सुन वे झट बाबू कै पास गये।।

तुरत उठ कै बाहर लिकड़ गया, पति गौहाने आळी का।
आंख्यां कै माहं आंसू आगे, घर देख्या जब हाळी का।।

ऊंट उड़े तैं बनिये कै गया, बिन दामा सौदा ना थ्याया।
भूखी हालत देख जाट की, हुक्का तक भी ना प्याया।।
देख चढ़ी करड़ाई सिर पै, दुखिया का मन घबराया।
छोड़ गाम नै चल्या गया वो, फेर बाहवड़ कै ना आया।।

कहे नरसिंह थारा बाग उजड़ गया, भेद चल्या ना माळी का।
आंख्यां कै माहं आंसू आगे, घर देख्या जब हाळी का।।



Katak Badi /Din tha khas diwali// Priyanka Chaudhary// Gyani Ram Alewa/ कात्तक बदी अमावस #katakbadi

ऐसे ही अन्य हरियाणवी सोंग्स के Hariyanavi Folk Songs लिए आप होम पेज / गायक कलाकार के अनुसार सोंग्स को ढूंढें.
 

पसंदीदा गायकों के भजन खोजने के लिए यहाँ क्लिक करें।

 
आजादी के बाद से लेकर अब तक जितनी भी सरकारें आयी और चली गयी लेकिन किसी भी सरकार ने अन्नदाता ( किसान) के हक़ में कोई काम नहीं किया। हाँ केवल एक नारा जरूर दिया  'जय जवान जय किसान' ।  जब जब भी किसान ने अपना हक़ माँगा उस पर जुल्म ढाये गए।  अन्नदाता (किसान) की हालत को देखते हुए लोक कवि ज्ञानी राम (अलेवा) ने आज से 50 से 55  साल पहले एक मार्मिक रागनी लिखी थी जो आज भी बिलकुल सही साबित हो रही है रही है।   जिसके शब्द है ' कात्तक बदी अमावस आयी'
 
सुंदर रागिनी में हाळी / किसान (हल को जोतने वाला ) के घर की दुखभरी तस्वीर उभरती है, जो दीवाली जैसे खुशी के दिन में भी आंसुओं से भरी है। जहाँ हर तरफ खीर और हलवे की खुशबू फैल रही है, वहाँ हाळी की बहू बाजरा कूटने को मजबूर है। ये दृश्य उस गरीबी को दिखाता है, जो त्योहार की चमक में भी अंधेरा बनकर रहती है। 
हाळी का परिवार खाट पर बैठा है, जो टूट रही है, और हुक्का फूंकते हुए भी उसकी चिलम फूट रही है। ये टूटन उस जिंदगी की नाजुक हालत को बयां करती है, जो हर कदम पर बिखर रही है। बच्चों के पास खेलने को खील-खिलौने नहीं, बस दूसरों को देखने की तमन्ना है। रात की बची खिचड़ी और कुत्तों का साथ ही उनकी दुनिया है। 

बखोरा और कटोरे ही उनके बर्तन हैं, थाली की कोई जगह नहीं। ये सादगी नहीं, बल्कि मजबूरी है, जो हर पल मन को चोट पहुंचाती है। बच्चे मासूमियत में खील-खिलौनों की उम्मीद करते हैं, लेकिन माँ की आँखों में सिर्फ आंसू हैं। वो बाप को रोने से मना करती है, पर उसका दर्द छिप नहीं पाता।

पति गौहाने की तरफ निकलता है, शायद कुछ जुगाड़ करने, पर बनिए के पास बिना पैसे कुछ नहीं मिलता। भूख और लाचारी में जाट का हुक्का भी ठंडा पड़ जाता है। करज का बोझ और मन की घबराहट उसे गाँव छोड़ने को मजबूर करती है, और वो फिर लौटकर नहीं आता।

नरसिंह की बात में गहरा दर्द है—हाळी का बाग उजड़ गया, और माली का भेद भी अब कोई काम का नहीं। ये रागिनी गरीबी, मजबूरी और टूटे सपनों की कहानी कहती है, जो दीवाली की रौशनी में भी अंधेरे को चुपके से बयां करती है। 
 
Saroj Jangir Author Admin - Saroj Jangir

इस ब्लॉग पर आप पायेंगे मधुर और सुन्दर,हरियाणवी सोंग्स गढ़वाली सोंग्स लिरिक्सआध्यात्मिक भजनगुरु भजन, सतगुरु भजन का संग्रह। इस ब्लॉग का उद्देश्य आपको सुन्दर भजनों के बोल उपलब्ध करवाना है। आप इस ब्लॉग पर अपने पसंद के गायक और भजन केटेगरी के भजन खोज सकते हैं....अधिक पढ़ें

Next Post Previous Post