अजी केले से आवै हमें बाँस महल केला किन बोया

अजी केले से आवै हमें बाँस महल केला किन बोया

अजी केले से आवै हमें बाँस, महल केला किन बोया।
मुक्के मारूँ पचास, धक्के देऊँ डेढ़ सौ,
गोरी महलों से करूँगा जवाब, चली जाओ बाप के।
गोरी महलों से दूँगा निकाल, महल केला हम बोया।।

मेरे बीरा बाढ़ी के, गड्डी गढ़ला बाजनी।
हमारे राजा ने दिया है जवाब, चली जाओ बाप के।।

गोरी नै एक बन लांघा, दूजा बन लांघा।
तीजे में हुए नंदलाल, विपत में सम्पत भई।।
काहे का करूँ ओढ़ना, काहे का करूँ बिछावना।
ए जी काहे की पिलाऊँ रस-घुट्टी, विपत में सम्पत भई।।

इतनी तो सुनकै सासू आई – “बहू घर चलो।”
सासड़ मुड़ तुड़ लगूँ थारे पाँय, पोता दूँगी गोद में।।

इतनी तो सुनकै जिठानी आई – “बहू घर चलो।”
जिठानी मुड़ तुड़ लगूँ थारे पाँय, बेटा दूँगी गोद में।।

इतनी सी सुनकै ननद आई – “भाभी रानी घर चलो।”
बीबी मुड़ तुड़ लगूँ तेरे पाँय, भतीजा दूँगी गोद में।।

इतना तो सुनकै राजा भी आये – “प्यारी घर चलो।”
राजा जी, तुम ने दिया है जवाब – “जाओ घर बाप के।”

पिया से रूठे गोरी ना सरै, ना सरै गोरी बाप के।
प्यारी मुड़ तुड़ लगूँ थारे पाँय, हमारी रानी घर चलो।।



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Saroj Jangir Author Admin - Saroj Jangir

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