औलख निरंजन जय जय पौणाहारी
औलख निरंजन जय जय पौणाहारी
औलख निरंजन ~ जय जय पौणाहारी ~ दुग्धधारी।।
औलख निरंजन ~ जय जय पौणाहारी ~ दुग्धधारी।।
औलख निरंजन ~ जय जय पौणाहारी ~ दुग्धधारी।।
वर शिव जी से पाकर स्वामी, मैं कलियुग में आया।।
बारह घड़ी का कर्ज उतारने, शाह तलाइये आया।।
ओ मां रत्नो के दर पे जाकर, जोगी ने अलख जगाया, कहता,
औलख निरंजन ~ जय जय पौणाहारी ~ दुग्धधारी।।
बारह साल तूने गायें चराईं, बन रत्नो का पाली।।
रत्नो में खुशी दे गाये, संगत खड़ी सवाल लिए।।
ओ दुखियों के कष्ट निवारक, बन संगतों का बाली, कहता,
औलख निरंजन ~ जय जय पौणाहारी ~ दुग्धधारी।।
बारह साल जब पूरे हो गए, बाबे ने खेल रचाया।।
आप तो बैठा समाधि लगाकर, गायों को खेत गंवाया।।
ओ दिये जब उलाहने जटों ने, उजड़ा खेत उगाया, कहता,
औलख निरंजन ~ जय जय पौणाहारी ~ दुग्धधारी।।
टिल्लियों चलकर गोरख आया, बाबे को आजमाया।।
बालक से वह कहने लगा, भूख ने बहुत सताया।।
जोगी ने फिर चिप्पी उठाई, हाथ गाय को लगाया।।
औंस भर गाय का दूध लाकर, गोरख के हाथ थमाया, कहता,
औलख निरंजन ~ जय जय पौणाहारी ~ दुग्धधारी।।
ऐसी शक्ति देख गोरख में गुस्से से आया।।
चेलों को हुक्म सुनाया, बाबे को घेरा लगाया।।
पहनाने लगे जबरदस्ती मुंदरें, बाबे ने उड़ान लगाई, कहता,
औलख निरंजन ~ जय जय पौणाहारी ~ दुग्धधारी।।
गुफा के भीतर बाबा जी तेरे, भक्त अरजें करते।।
खाली हमारी झोली बाबा जी, साथ मुरादें भर दे।।
ओ बछड़े तेरे करें पुकारें, दे दर्शन एक वारी, बोलो,
औलख निरंजन ~ जय जय पौणाहारी ~ दुग्धधारी।।
औलख निरंजन ~ सब दुख भंजन ~ धुन।।
हो बाबे हाथ डोरा जी, जैकारा क्यों नहीं बोलता।।
जैकारा क्यों नहीं बोलता, जैकारा क्यों नहीं बोलता।।
मोर सवारी आ गया, जैकारा क्यों नहीं बोलता।।
जैकारा क्यों नहीं बोलता, जैकारा क्यों नहीं बोलता।।
पौणाहारी आ गया, जैकारा क्यों नहीं बोलता।।
जैकारा क्यों नहीं बोलता, जैकारा क्यों नहीं बोलता।।
दुग्धधारी आ गया, जैकारा क्यों नहीं बोलता।।
जैकारा क्यों नहीं बोलता, जैकारा क्यों नहीं बोलता।।
औलख निरंजन ~ जय जय पौणाहारी ~ दुग्धधारी।।
औलख निरंजन ~ जय जय पौणाहारी ~ दुग्धधारी।।
वर शिव जी से पाकर स्वामी, मैं कलियुग में आया।।
बारह घड़ी का कर्ज उतारने, शाह तलाइये आया।।
ओ मां रत्नो के दर पे जाकर, जोगी ने अलख जगाया, कहता,
औलख निरंजन ~ जय जय पौणाहारी ~ दुग्धधारी।।
बारह साल तूने गायें चराईं, बन रत्नो का पाली।।
रत्नो में खुशी दे गाये, संगत खड़ी सवाल लिए।।
ओ दुखियों के कष्ट निवारक, बन संगतों का बाली, कहता,
औलख निरंजन ~ जय जय पौणाहारी ~ दुग्धधारी।।
बारह साल जब पूरे हो गए, बाबे ने खेल रचाया।।
आप तो बैठा समाधि लगाकर, गायों को खेत गंवाया।।
ओ दिये जब उलाहने जटों ने, उजड़ा खेत उगाया, कहता,
औलख निरंजन ~ जय जय पौणाहारी ~ दुग्धधारी।।
टिल्लियों चलकर गोरख आया, बाबे को आजमाया।।
बालक से वह कहने लगा, भूख ने बहुत सताया।।
जोगी ने फिर चिप्पी उठाई, हाथ गाय को लगाया।।
औंस भर गाय का दूध लाकर, गोरख के हाथ थमाया, कहता,
औलख निरंजन ~ जय जय पौणाहारी ~ दुग्धधारी।।
ऐसी शक्ति देख गोरख में गुस्से से आया।।
चेलों को हुक्म सुनाया, बाबे को घेरा लगाया।।
पहनाने लगे जबरदस्ती मुंदरें, बाबे ने उड़ान लगाई, कहता,
औलख निरंजन ~ जय जय पौणाहारी ~ दुग्धधारी।।
गुफा के भीतर बाबा जी तेरे, भक्त अरजें करते।।
खाली हमारी झोली बाबा जी, साथ मुरादें भर दे।।
ओ बछड़े तेरे करें पुकारें, दे दर्शन एक वारी, बोलो,
औलख निरंजन ~ जय जय पौणाहारी ~ दुग्धधारी।।
औलख निरंजन ~ सब दुख भंजन ~ धुन।।
हो बाबे हाथ डोरा जी, जैकारा क्यों नहीं बोलता।।
जैकारा क्यों नहीं बोलता, जैकारा क्यों नहीं बोलता।।
मोर सवारी आ गया, जैकारा क्यों नहीं बोलता।।
जैकारा क्यों नहीं बोलता, जैकारा क्यों नहीं बोलता।।
पौणाहारी आ गया, जैकारा क्यों नहीं बोलता।।
जैकारा क्यों नहीं बोलता, जैकारा क्यों नहीं बोलता।।
दुग्धधारी आ गया, जैकारा क्यों नहीं बोलता।।
जैकारा क्यों नहीं बोलता, जैकारा क्यों नहीं बोलता।।
Aolkh nirjan Jai jai ponahari || Rohit sharma || Babe de Bhagat || baba balk nath Bhajan
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Admin - Saroj Jangir
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