वह और की आस, करे ना करे, जिसे आश्रय श्री, हरी नाम का है, उसे स्वर्ग से मित्र, प्रयोजन क्या, नित वासी जो गोकुल, गाँव का है, बस सार्थक जीवन, उसी का यहां, हरे कृष्ण जो, चाकर श्याम का है। बिना कृष्ण दर्शन के, जग में, ये जीवन ही, किस काम का है। कृपा की ना होती जो, आदत तुम्हारी, तो सूनी ही रहती, अदालत तुम्हारी।
जो दिनों के दिल में, जगह तुम न पाते, तो किस दिल में होती, हिफाजत तुम्हारी। कृपा की ना होती जो, आदत तुम्हारी, तो सूनी ही रहती, अदालत तुम्हारी।
ना मुल्ज़िम ही होते, ना तुम होते हाक़िम, ना घर घर में होती, ईबादत तुम्हारी, कृपा की ना होती जो, आदत तुम्हारी, तो सूनी ही रहती, अदालत तुम्हारी।
गरीबों की दुनिया है, आबाद तुमसे, गरीबों से है, बादशाहत तुम्हारी, कृपा की ना होती जो, आदत तुम्हारी, तो सूनी ही रहती, अदालत तुम्हारी।
तुम्हारी उल्फत के, द्रग बिन्दु हैं ये, तुम्हें सौंपते हैं, अमानत तुम्हारी, कृपा की ना होती जो, आदत तुम्हारी, तो सूनी ही रहती, अदालत तुम्हारी।
कृपा की ना होती जो, आदत तुम्हारी, तो सूनी ही रहती, अदालत तुम्हारी।