भारत गौरव गान भाग एक विश्वगुरु भारत
1 हिमालय
है भूमण्डल में भारत देश महान,
जहां खड़ा गिरिराज हिमालय,
मही मुकुट उत्तुंग उतान,
अपने उज्जवल मुख मण्डल से,
चूम रहा है गगन वितान।
जो है सकल जड़ी, बूटी, फल,
फूल, लता औषध रस खान,
दृश्य स्वर्गमय सुन्दर मनहर,
जहां विहग गण करते गान।
आदि सृष्टि में प्रभुने प्रथम,
किया था जहां मनु निर्माण,
जो है आदिम आर्य जाति का,
वसुन्धरा में मूल स्थान।
जिसके तुषारमय कन्दर में ऋषि,
मुनि पाए वैदिक ज्ञान,
मान सरोवर झील जहां है,
झरनों की झरझर प्रिय तान।
शुभ्र हिमाचल से ही उतरी,
सुरसरि गौरव गान,
है भूमण्डल में भारत देश महान।
2 नदियाँ
जहां त्रिवेणी, गंगा, यमुना,
सरस्वती शुचि नदी विशाल,
ब्रह्मपुत्र, सरयू, रावी नद् व्यास,
सिन्धु बहतीं सब काल।
कृष्णा, गोदावरी, नर्मदा,
झेलम, सतलज हैं प्रतिपाल,
ले जाती हैं सब तापों को,
धोकर भागीरथ की चाल।
पातक रुग्ण नहाकर जिनके,
पावन जल में हुए निहाल,
पतित-पावनी सरिता कहकर,
जिन्हें पुकारत भारत लाल।
यती, सती जपते हैं,
जिनके तट पर परमेश्वर की माल,
जिनके तट की समीर शीतल काटत,
सब रोगों का जाल।
जड़, चेतन सब निशिदिन करते,
जिनके शुद्ध जलपान,
है भूमण्डल में भारत देश महान।
3 भूमि
महा क्षेत्रफल विस्तृत धरणी,
पाया पद कृषि प्रधान आन,
सभी भांति के अन्न, फूल,
फल करती कोटि कोटि प्रदान।
जिसमें सोने, चांदी, लोहे,
तेल, कोयलों की है खान,
बसंत, ग्रीष्म, सुवर्षा, शरद,
हेमन्त, शिशिर ऋतुओं का स्थान।
गौ, गज, अश्व, सिंह खग,
नाग सकल पशुओं का है उद्यान,
सोने की चिडिया,
पारसमनि कहता,
जिसको सकल जहान।
जिसकी गोदी में पलते हैं,
गोरे, काले एक समान,
यवन, पारसी, ईसाई भी,
जिसमें पाते हैं सम्मान।
अनुपम् जिसकी सुन्दरता है,
कैसे करूं बखान,
है भूमण्डल में भारत देश महान।
है भूमण्डल में भारत देश महान,
जहां खड़ा गिरिराज हिमालय,
मही मुकुट उत्तुंग उतान,
अपने उज्जवल मुख मण्डल से,
चूम रहा है गगन वितान।
जो है सकल जड़ी, बूटी, फल,
फूल, लता औषध रस खान,
दृश्य स्वर्गमय सुन्दर मनहर,
जहां विहग गण करते गान।
आदि सृष्टि में प्रभुने प्रथम,
किया था जहां मनु निर्माण,
जो है आदिम आर्य जाति का,
वसुन्धरा में मूल स्थान।
जिसके तुषारमय कन्दर में ऋषि,
मुनि पाए वैदिक ज्ञान,
मान सरोवर झील जहां है,
झरनों की झरझर प्रिय तान।
शुभ्र हिमाचल से ही उतरी,
सुरसरि गौरव गान,
है भूमण्डल में भारत देश महान।
2 नदियाँ
जहां त्रिवेणी, गंगा, यमुना,
सरस्वती शुचि नदी विशाल,
ब्रह्मपुत्र, सरयू, रावी नद् व्यास,
सिन्धु बहतीं सब काल।
कृष्णा, गोदावरी, नर्मदा,
झेलम, सतलज हैं प्रतिपाल,
ले जाती हैं सब तापों को,
धोकर भागीरथ की चाल।
पातक रुग्ण नहाकर जिनके,
पावन जल में हुए निहाल,
पतित-पावनी सरिता कहकर,
जिन्हें पुकारत भारत लाल।
यती, सती जपते हैं,
जिनके तट पर परमेश्वर की माल,
जिनके तट की समीर शीतल काटत,
सब रोगों का जाल।
जड़, चेतन सब निशिदिन करते,
जिनके शुद्ध जलपान,
है भूमण्डल में भारत देश महान।
3 भूमि
महा क्षेत्रफल विस्तृत धरणी,
पाया पद कृषि प्रधान आन,
सभी भांति के अन्न, फूल,
फल करती कोटि कोटि प्रदान।
जिसमें सोने, चांदी, लोहे,
तेल, कोयलों की है खान,
बसंत, ग्रीष्म, सुवर्षा, शरद,
हेमन्त, शिशिर ऋतुओं का स्थान।
गौ, गज, अश्व, सिंह खग,
नाग सकल पशुओं का है उद्यान,
सोने की चिडिया,
पारसमनि कहता,
जिसको सकल जहान।
जिसकी गोदी में पलते हैं,
गोरे, काले एक समान,
यवन, पारसी, ईसाई भी,
जिसमें पाते हैं सम्मान।
अनुपम् जिसकी सुन्दरता है,
कैसे करूं बखान,
है भूमण्डल में भारत देश महान।
भारत गौरव गान | भाग-१, हिमालय | देशभक्ति गीत | Bharat Gaurav Gaan | Part-1, Himalaya । Patriotic
लेखक : आर्य कवि पंडित जगदीशचंद्र "प्रवासी"
स्वर : ब्रह्मचारी अरुणकुमार "आर्यवीर"
संपादक : सत्य संवाहक
आपको ये पोस्ट पसंद आ सकती हैं
स्वर : ब्रह्मचारी अरुणकुमार "आर्यवीर"
संपादक : सत्य संवाहक
आपको ये पोस्ट पसंद आ सकती हैं
