चहका गुलशन महकी महफिल, छाई आज बहार है, बाँध लो प्रभु को प्रेम डोर में, राखी का त्योहार है।
श्री आनन्दपुर की धरती पर, बादल प्रेम के छाये हैं, बड़ी तमन्ना से देवों ने, पूजा थाल सजाये हैं, क्यों न हो आखिर ये मेरे, सतगुरु का दरबार है, चहका गुलशन महकी महफिल, छाई आज बहार है, बाँध लो प्रभु को प्रेम डोर में, राखी का त्योहार है।
जन्म जन्म का आज ये प्रेमी, अपना मनोरथ साधेंगे, प्रेम के कच्चे धागे में, अपने प्रियतम को बांधेगे, झीने झीने रबनक रहे, मन की वाणी के तार है, चहका गुलशन महकी महफिल, छाई आज बहार है, बाँध लो प्रभु को प्रेम डोर में, राखी का त्योहार है।
जब जब भक्त बुलाते हैं, तब तब चलकर प्रभु आते हैं, युगो युगों से जाने कैसे, प्रेम गीत के धागे हैं, अपने सेवकों से स्वामी का,
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ऐसा ही इकरार है, चहका गुलशन महकी महफिल, छाई आज बहार है, बाँध लो प्रभु को प्रेम डोर में, राखी का त्योहार है।
पूरण गुरु और पारब्रह्म में, भेद भला कब होता है, मानेगा कोई भेद तो समझो, जन्म अकारथ खोता है, सन्मुख आज विराजे रहे, दुनिया के तारन हार है, चहका गुलशन महकी महफिल, छाई आज बहार है, बाँध लो प्रभु को प्रेम डोर में, राखी का त्योहार है।
अपने भक्तों से जब बाते, करने को ललचाते है, तब तब गुरु रूप धरकर, भगवान धरा पर आते है, अपने पूरे नूर में होकर, हुआ शब्द साकार है, चहका गुलशन महकी महफिल, छाई आज बहार है, बाँध लो प्रभु को प्रेम डोर में, राखी का त्योहार है।
दूर निकट की बात नहीं है, बाँधो बन्धन कट जाये, बिना मोल की लूट मची है, लूट लो जिसका जी चाहे, दिल सच्चे का सौदा है, यहाँ प्रेम प्रीत दरकार है, चहका गुलशन महकी महफिल, छाई आज बहार है, बाँध लो प्रभु को प्रेम डोर में, राखी का त्योहार है।
चहका गुलशन महकी महफिल, छाई आज बहार है, बाँध लो प्रभु को प्रेम डोर में, राखी का त्योहार है।
चहका गुलशन महकी महफिल, छाई आज़ बहार है बाँध लो प्रभु को प्रेम डोर में, राखी का त्योहार है