कर चले हम फ़िदा जानओतन साथियोंं । अब तुम्हारे हवाले वतन साथियोंं............।
सांस थमती गई नब्ज जमती गई, फिर भी बढ़ते कदम को ना रुकने दिया । कट गये सर हमारे तो कुछ ग़म नही, सर हिमालय का हमने न झुकने दिया । मरते मरते रहा बाँकपन साथियोंं, अब तुम्हारे हवाले वतन साथियोंं............।
जिन्दा रहने के मौसम बहुत हैं मगर, जान देने की रुत रोज आती नही । हुस्न और इश्क दोनो को रुसवा करे, वो जवानी जो खूँ में नहाती नही । बाँध लो अपने सर पर कफ़न साथियोंं, अब तुम्हारे हवाले वतन साथियोंं............।
राह कुर्बानियों की ना वीरान हो, तुम सजाते ही रहना नये काफ़िले । फ़तह का जश्न इस जश्न के बाद है, जिन्दगी मौत से मिल रही है गले । आज धरती बनी है दुल्हन साथियोंं, अब तुम्हारे हवाले वतन साथियोंं............।
खेंच दो अपने खूँ से जमीं पर लकीर, इस तरफ आने पाये ना रावण कोई । तोड़ दो हाथ अगर हाथ उठने लगे, छूने पाये ना सीता का दामन कोई । राम भी तुम तुम्हीं लक्ष्मण साथियोंं, अब तुम्हारे हवाले वतन साथियोंं............।
कर चले हम फ़िदा जानओतन साथियोंं । अब तुम्हारे हवाले वतन साथियोंं............।