कर चले हम फ़िदा जानओतन साथियोंं

कर चले हम फ़िदा जानओतन साथियोंं

कर चले हम फ़िदा जानओतन साथियोंं ।
अब तुम्हारे हवाले वतन साथियोंं............।

सांस थमती गई नब्ज जमती गई,
फिर भी बढ़ते कदम को ना रुकने दिया ।
कट गये सर हमारे तो कुछ ग़म नही,
सर हिमालय का हमने न झुकने दिया ।
मरते मरते रहा बाँकपन साथियोंं,
अब तुम्हारे हवाले वतन साथियोंं............।

जिन्दा रहने के मौसम बहुत हैं मगर,
जान देने की रुत रोज आती नही ।
हुस्न और इश्क दोनो को रुसवा करे,
वो जवानी जो खूँ में नहाती नही ।
बाँध लो अपने सर पर कफ़न साथियोंं,
अब तुम्हारे हवाले वतन साथियोंं............।

राह कुर्बानियों की ना वीरान हो,
तुम सजाते ही रहना नये काफ़िले ।
फ़तह का जश्न इस जश्न के बाद है,
जिन्दगी मौत से मिल रही है गले ।
आज धरती बनी है दुल्हन साथियोंं,
अब तुम्हारे हवाले वतन साथियोंं............।

खेंच दो अपने खूँ से जमीं पर लकीर,
इस तरफ आने पाये ना रावण कोई ।
तोड़ दो हाथ अगर हाथ उठने लगे,
छूने पाये ना सीता का दामन कोई ।
राम भी तुम तुम्हीं लक्ष्मण साथियोंं,
अब तुम्हारे हवाले वतन साथियोंं............।

कर चले हम फ़िदा जानओतन साथियोंं ।
अब तुम्हारे हवाले वतन साथियोंं............।



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