मेरे बाबा जी दा डमरू,
किथे बजेया,
डमरु बजेया बीच शिवाले,
वह तो सबको देने वाले,
मेरे बाबा जी का डमरू उथे बजेया,
जीथे जीथे बजेया,
लहरा वेहरा लहरा हो गई या,
मेरे बाबा जी का डमरू उथे बजेया।
डमरु बजा मणि महेश,
जिथे कट्टे जान क्लेश,
मेरे बाबा जी का डमरू उथे बजेया,
जीथे जीथे बजिया,
लहरा वेहरा हो गई या,
मेरे शिवा दा डमरू उथे बजेया।
डमरु बजेया विश्वनाथ
जिथे भोले जी दा वास,
मेरे बाबा जी का डमरू उथे बजेया,
जीथे जीथे बजेया,
लहरा वेहरा हो गई या,
मेरे शिवाजी दा डमरु उथे वजेया।
डमरु बजेया वीच जालंधर,
जिथे विष्णु जी का मंदिर,
मेरे बाबा जी का डमरू उथे बजेया,
जीथे जीथे बजेया,
लहरा वहरा हो गई या,
मेरे शिवाजी का डमरु उथे बजेया।
डमरु बजेया विच कैलाश,
जीथे शंकर जी का वास,
मेरे बाबा जी का डमरू उथे बजेया,
जीथे जीथे वजेया,
लहरा वेहरा हो गईया,
मेरे शिवाजी का डमरू किथे बजेया।
किथे बजेया,
डमरु बजेया बीच शिवाले,
वह तो सबको देने वाले,
मेरे बाबा जी का डमरू उथे बजेया,
जीथे जीथे बजेया,
लहरा वेहरा लहरा हो गई या,
मेरे बाबा जी का डमरू उथे बजेया।
डमरु बजा मणि महेश,
जिथे कट्टे जान क्लेश,
मेरे बाबा जी का डमरू उथे बजेया,
जीथे जीथे बजिया,
लहरा वेहरा हो गई या,
मेरे शिवा दा डमरू उथे बजेया।
डमरु बजेया विश्वनाथ
जिथे भोले जी दा वास,
मेरे बाबा जी का डमरू उथे बजेया,
जीथे जीथे बजेया,
लहरा वेहरा हो गई या,
मेरे शिवाजी दा डमरु उथे वजेया।
डमरु बजेया वीच जालंधर,
जिथे विष्णु जी का मंदिर,
मेरे बाबा जी का डमरू उथे बजेया,
जीथे जीथे बजेया,
लहरा वहरा हो गई या,
मेरे शिवाजी का डमरु उथे बजेया।
डमरु बजेया विच कैलाश,
जीथे शंकर जी का वास,
मेरे बाबा जी का डमरू उथे बजेया,
जीथे जीथे वजेया,
लहरा वेहरा हो गईया,
मेरे शिवाजी का डमरू किथे बजेया।
#sawanमेरे भोले जी दा डमरू कित्थे बजेयाmere bholy ji da damru kithe bajayawith lyrics मेरे भोले बाबा जी दा डमरू किथे बजेया लिरिक्स
शिव जी का डमरू उनकी अद्वितीय पहचान और शक्ति का प्रतीक है। डमरू, ब्रह्मांड की रचना और विनाश के चक्र को दर्शाता है। जब शिव डमरू को बजाते हैं, तो उससे निकलने वाली ध्वनि सृष्टि के आरंभ और समाप्ति का संकेत देती है। यह ध्वनि ओम का प्रतिनिधित्व करती है, जो संपूर्ण ब्रह्मांड की मूल ध्वनि है। डमरू की आवाज में नाद योग की गहराई और ध्यान की शक्ति समाहित होती है, जो आत्मा को जागृत करने और आंतरिक शांति प्रदान करने का कार्य करती है। शिव का डमरू न केवल उनके नृत्य का एक अभिन्न अंग है, बल्कि यह उनके योगी और तपस्वी रूप को भी प्रकट करता है।
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