बिरहा बिरह की बावरी, गाय रही बिरहा बबिरहन के गीत, तनन-तन की तनिया चुभ रही, मोहे निर्मोही संग प्रीत।। प्रीत किए अति दुख मिले, ये कैसी रीत-अनीत, अब बाजी लग गई श्याम सौ, सखी हार होय या जीत।।
बारी बरसाने वाली बारी, तज गए बनवारी, वन-वन मैं घूमूं बनके बावरी।। कि मोको रोग विरह को दे गए, मोसे परसों की मोहन कह गए, चित्त चुराके लै गए।। वन-वन मैं घूमूं बनके बावरी।। ओ ओ ओ...
साजन बिना ये कैसा सावन, क्या श्रृंगार सजाऊं, पिया विरह में भई बावरी, मैं जोगनिया बन जाऊं।। गली-गली में नाचूं गाऊं, वीणा मधुर बजाऊं, छोड़के मथुरा, वन-वृंदावन, कहीं नहीं मैं जाऊं।। मेरी बहना कान्हा कौ नाम पुकारूं, मथुरा में डेरा डालूं, जीवन की जगमग डोले नाव री।। मेरी बहना, बारी बरसाने वाली बारी...
गली-गली में मैंने ढूंढो, तौऊ कहूं नहीं पायौ, यमुना के तट सूने देखे, कहूं नजर नहीं आयौ।। कहा-कहा मैं नज़र पसारूं, कछू समझ नहीं आयौ, दुनिया मोको नहीं सुहावे, सब वाही मैं समायौ।। मेरी बहना सूख के पंजर है गई, अंखियों से नदिया बह गई, दिल में है मेरे भक्ति भाव री।। ओ ओ ओ... बारी बरसाने वाली बारी...
वारी बरसाने वारी तज गए बनवारी ||मल्हार || सावन का बेस्ट भजन || गायक प्रभात || विवेक जी महाराज आगरा