कष्ट निकंदन देवकीनंदन,
श्री वासुदेवाय नमो नमः,
यदुवर गिरधर नटवर नागर,
श्री माधवाय नमो नमः।
पाप मिटाने धरती पर,
नारायण ने रूप लिया,
युद्धक्षेत्र में सारथी बनके,
पार्थ को गीता ज्ञान दिया,
श्री कृष्णाय,
नमो नमः नमो नमः।
जब जब बढ़ता पाप धरा पर,
तब तब आते हैं परमेश्वर,
त्राहि त्राहि था पाप से द्वापर,
तब आए हरी बनकर यदुवर।
कंस नाम का था एक राजा,
मनमानी जनता पे था करता,
एक दुखिया साधू ने बोला,
राजन अपना बदल लो चोला।
जो छल कपट ना तूने छोड़ा,
सर्वनाश इस कुल का होगा,
देवकी वसु की आठवीं संतान,
निश्चय हरेगी तेरे प्राण।
स्वप्न रात को कंस ने देखा,
एक बालक सिरहाने बैठा,
माँग रहा प्राणों का दान,
बिजली कौंधी लिया संज्ञान।
देवकी वसु को बंदी बनाया,
कारागार में उन्हें बिठाया,
पहरेदारी थी अतिभारी,
बाल के काल की थी तैयारी।
समय समय पर की निगरानी,
काल का भय था मन में ग्लानि,
पिता ने पुत्र को जो समझाया,
राज द्रोही कह बंदी बनाया।
काल चक्र को रोक ना पाया,
साधु श्राप ने रंग दिखाया,
अंततः समय निकट वो आया,
कंस काल दुनिया में आया।
टूटे ताले प्रहरी सोये,
जन्मे कृष्ण हँसे ना रोये,
वासु ने श्रीकृष्ण उठाये,
जमुना पार कर गोकुल आये।
नंद के घर जब वासु पंहुचे,
एक बालक थे बगल दबोचे,
नंद को सारी व्यथा बताई,
नंद ने यशुमती तुरंत बुलाई।
नंद के घर जन्मी थी बच्ची,
पलने से वो उठाई शक्ती,
वसु लौट के मथुरा आये,
देवकी को सब हाल सुनाये।
जागे प्रहरी नींद से गहरी,
ताले जड़े थे खड़े थे प्रहरी,
कंस जब ये मिली सूचना,
कंस की जागी दुष्ट चेतना।
गरजा एक हुंकार लगायी,
मेरे काल की मृत्यु आई,
स्वयं सैनिकों संग वो आया,
देख देवकी को मुसकाया।
देवकी वसु ने जोड़े हाथ,
विनय पूर्वक कही ये बात,
यह लड़का नही कन्या है,
इसी को मैने जन्मा है।
ये तो काल नहीं हो सकती,
छोड़ दो इसको मानलो विनती,
पापी कंस कपट से बोला,
देखू बालिका है या धोखा।
छिन बालिका कंस ने लिन्ही,
पत्थर पटक मार वो दीन्ही,
बालिका थी शक्ती की माया,
जिसने आकर कृष्ण बचाया।
जाते जाते दिया संदेश,
अंत समय मरता है विवेक,
जीवित है संतान आठवीं,
जो विध्वंस करेगी राज की।
निश्चित अंत तुम्हारा होगा,
साधु वाक्य सम्पूर्ण होगा,
तभी कंस ने खड़ग उठाया,
मारने वसु संग देवकी आया।
पूछा कहां है जो था जाया,
सत्य बताओ कहां छिपाया,
मुझसे नहीं वो बच पायेगा,
जिसने छिपाया वो पछतायेगा।
कंस ने नाना किये उपाय,
बदल ना पाया अपना स्वभाव,
पूतना मारी मारे दुर्जन,
कृष्ण कला पर हर्षित हरिजन।
द्वापर देव किशोर अवस्था,
कंस को मारा छिनी सत्ता,
नाना को लौटाया राज,
मथुरा में हुआ धर्म का राज।
श्री वासुदेवाय नमो नमः,
यदुवर गिरधर नटवर नागर,
श्री माधवाय नमो नमः।
पाप मिटाने धरती पर,
नारायण ने रूप लिया,
युद्धक्षेत्र में सारथी बनके,
पार्थ को गीता ज्ञान दिया,
श्री कृष्णाय,
नमो नमः नमो नमः।
जब जब बढ़ता पाप धरा पर,
तब तब आते हैं परमेश्वर,
त्राहि त्राहि था पाप से द्वापर,
तब आए हरी बनकर यदुवर।
कंस नाम का था एक राजा,
मनमानी जनता पे था करता,
एक दुखिया साधू ने बोला,
राजन अपना बदल लो चोला।
जो छल कपट ना तूने छोड़ा,
सर्वनाश इस कुल का होगा,
देवकी वसु की आठवीं संतान,
निश्चय हरेगी तेरे प्राण।
स्वप्न रात को कंस ने देखा,
एक बालक सिरहाने बैठा,
माँग रहा प्राणों का दान,
बिजली कौंधी लिया संज्ञान।
देवकी वसु को बंदी बनाया,
कारागार में उन्हें बिठाया,
पहरेदारी थी अतिभारी,
बाल के काल की थी तैयारी।
समय समय पर की निगरानी,
काल का भय था मन में ग्लानि,
पिता ने पुत्र को जो समझाया,
राज द्रोही कह बंदी बनाया।
काल चक्र को रोक ना पाया,
साधु श्राप ने रंग दिखाया,
अंततः समय निकट वो आया,
कंस काल दुनिया में आया।
टूटे ताले प्रहरी सोये,
जन्मे कृष्ण हँसे ना रोये,
वासु ने श्रीकृष्ण उठाये,
जमुना पार कर गोकुल आये।
नंद के घर जब वासु पंहुचे,
एक बालक थे बगल दबोचे,
नंद को सारी व्यथा बताई,
नंद ने यशुमती तुरंत बुलाई।
नंद के घर जन्मी थी बच्ची,
पलने से वो उठाई शक्ती,
वसु लौट के मथुरा आये,
देवकी को सब हाल सुनाये।
जागे प्रहरी नींद से गहरी,
ताले जड़े थे खड़े थे प्रहरी,
कंस जब ये मिली सूचना,
कंस की जागी दुष्ट चेतना।
गरजा एक हुंकार लगायी,
मेरे काल की मृत्यु आई,
स्वयं सैनिकों संग वो आया,
देख देवकी को मुसकाया।
देवकी वसु ने जोड़े हाथ,
विनय पूर्वक कही ये बात,
यह लड़का नही कन्या है,
इसी को मैने जन्मा है।
ये तो काल नहीं हो सकती,
छोड़ दो इसको मानलो विनती,
पापी कंस कपट से बोला,
देखू बालिका है या धोखा।
छिन बालिका कंस ने लिन्ही,
पत्थर पटक मार वो दीन्ही,
बालिका थी शक्ती की माया,
जिसने आकर कृष्ण बचाया।
जाते जाते दिया संदेश,
अंत समय मरता है विवेक,
जीवित है संतान आठवीं,
जो विध्वंस करेगी राज की।
निश्चित अंत तुम्हारा होगा,
साधु वाक्य सम्पूर्ण होगा,
तभी कंस ने खड़ग उठाया,
मारने वसु संग देवकी आया।
पूछा कहां है जो था जाया,
सत्य बताओ कहां छिपाया,
मुझसे नहीं वो बच पायेगा,
जिसने छिपाया वो पछतायेगा।
कंस ने नाना किये उपाय,
बदल ना पाया अपना स्वभाव,
पूतना मारी मारे दुर्जन,
कृष्ण कला पर हर्षित हरिजन।
द्वापर देव किशोर अवस्था,
कंस को मारा छिनी सत्ता,
नाना को लौटाया राज,
मथुरा में हुआ धर्म का राज।
कष्ट निकंदन देवकीनंदन,
श्री वासुदेवाय नमो नमः,
यदुवर गिरधर नटवर नागर,
श्री माधवाय नमो नमः।
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