दशरथ के राजकुमार वन में फिरते मारे
दशरथ के राजकुमार, वन में फिरते मारे-मारे,
दुनिया के पालनहार, वन में फिरते मारे-मारे।।
थी साथ में जनक दुलारी, पत्नी प्राणों से प्यारी,
सीता सतवंती लाल, वन में फिरते मारे-मारे,
दुनिया के पालनहार, वन में फिरते मारे-मारे।।
भाई लखनलाल बलशाली, उसने तीर-कमान उठा ली,
भाई-भाभी का पहरेदार, वन में फिरते मारे-मारे,
दुनिया के पालनहार, वन में फिरते मारे-मारे।।
सोने का हिरण दिखा था, उसमें सीता हरण छिपा था,
लक्ष्मण रेखा हो गई पार, वन में फिरते मारे-मारे,
दुनिया के पालनहार, वन में फिरते मारे-मारे।।
हनुमान से मेल हुआ था, सुग्रीव भी मेल हुआ था,
वानर सेना की तैयारी, वन में फिरते मारे-मारे,
दुनिया के पालनहार, वन में फिरते मारे-मारे।।
लक्ष्मण बेहोश हुए थे, तो राम के होश उड़े थे,
रोए नारायण अवतार, वन में फिरते मारे-मारे,
दुनिया के पालनहार, वन में फिरते मारे-मारे।।
दुष्ट अचरन हुआ था, तो रावण मरण हुआ था,
उसका तोड़ दिया अहंकार, वन में फिरते मारे-मारे,
दुनिया के पालनहार, वन में फिरते मारे-मारे।।
जब राम अयोध्या आए, घर-घर में दीप जलाए,
मनी दिवाली पहली बार, जब अवध में राम पधारे।।
दशरथ के राजकुमार वन में फिरते मारे मारे | रुचिका जांगिड़ | ओ पी हरयाणवी | श्री राम जी का प्यारा भजन