वो दिल कहाँ से लाऊँ तेरी याद जो भजन
वो दिल कहाँ से लाऊँ,
तेरी याद जो भुला दे,
मुझे याद आने वाले,
मुझे याद आने वाले,
कोई रास्ता बता दे,
वो दिल कहाँ से लाऊँ,
तेरी याद जो भुला दे..........।
रहने दे मुझको अपने,
कदमों की खाक बनकर,
जो नहीं तुझे गंवारा,
जो नहीं तुझे गवारा,
मुझे खाक में मिला दे,
वो दिल कहाँ से लाऊँ,
तेरी याद जो भुला दे..........।
मेरे दिल ने तुझको चाहा,
क्या यही मेरी खता है,
माना खता है लेकिन,
माना खता है लेकिन,
ऐसी तो ना सजा दे,
वो दिल कहाँ से लाऊँ,
तेरी याद जो भुला दे..........।
वो दिल कहाँ से लाऊं,
तेरी याद जो भूला दे,
मुझे याद आने वाले,
मुझे याद आने वाले,
कोई रस्ता बता दे,
वो दिल कहाँ से लाऊँ,
तेरी याद जो भुला दे..........।
तेरी याद जो भुला दे,
मुझे याद आने वाले,
मुझे याद आने वाले,
कोई रास्ता बता दे,
वो दिल कहाँ से लाऊँ,
तेरी याद जो भुला दे..........।
रहने दे मुझको अपने,
कदमों की खाक बनकर,
जो नहीं तुझे गंवारा,
जो नहीं तुझे गवारा,
मुझे खाक में मिला दे,
वो दिल कहाँ से लाऊँ,
तेरी याद जो भुला दे..........।
मेरे दिल ने तुझको चाहा,
क्या यही मेरी खता है,
माना खता है लेकिन,
माना खता है लेकिन,
ऐसी तो ना सजा दे,
वो दिल कहाँ से लाऊँ,
तेरी याद जो भुला दे..........।
वो दिल कहाँ से लाऊं,
तेरी याद जो भूला दे,
मुझे याद आने वाले,
मुझे याद आने वाले,
कोई रस्ता बता दे,
वो दिल कहाँ से लाऊँ,
तेरी याद जो भुला दे..........।
Wo Dil Kanha Se laun- Krishna bhajan
Wo Dil Kanha Se laun · T.C.MUSIC
Wo Dil Kanha Se laun
℗ 3819895 Records DK
Released on: 2022-06-03
Auto-generated by YouTube.
स्मृति मिटाने का प्रयास केवल एक असंभव याचना बन जाती है—क्योंकि जिसे भुलाने की बात की जा रही है, वही तो श्वासों में समाया है। जब हृदय प्रेम की चरम सीमा पार कर जाता है, तब वह अपने प्रिय के प्रतिरूप में ही ढल जाता है। वहाँ अलगाव की कोई रेखा नहीं बचती; बस स्मृतियों की घटा में डूबा एक मन बचता है, जो पराजित नहीं, समर्पित है। यह समर्पण पत्थर पर अंकित नहीं, रेत पर बहते आँसुओं की तरह जीवंत और सत्य है—हर स्पंदन में उसी का नाम, हर विराम में उसी की प्रतीक्षा।
ऐसे भाव में ‘भूलना’ व्यर्थ शब्द बन जाता है। जो मन उसके चरणों की धूल बनने को राजी है, वह दंड नहीं चाहता—वह उस मिट्टी में लय होना चाहता है जहाँ से शांति जन्म लेती है। यही आत्मसमर्पण की सबसे कोमल परत है—जहाँ अपना अस्तित्व खोकर भी व्यक्ति संपूर्ण हो जाता है। प्रेम में यह एक विरल दशा है जब याद सज़ा नहीं, साधना बन जाती है; और मिलन केवल देह का नहीं, भावना का विषय रह जाता है। यह पथ कठिन अवश्य है, पर इसी में उस असीम प्रेम का अहसास छिपा है जो भुलाना नहीं चाहता, बस महसूस करना चाहता है—बार‑बार, हर श्वास के साथ।
ऐसे भाव में ‘भूलना’ व्यर्थ शब्द बन जाता है। जो मन उसके चरणों की धूल बनने को राजी है, वह दंड नहीं चाहता—वह उस मिट्टी में लय होना चाहता है जहाँ से शांति जन्म लेती है। यही आत्मसमर्पण की सबसे कोमल परत है—जहाँ अपना अस्तित्व खोकर भी व्यक्ति संपूर्ण हो जाता है। प्रेम में यह एक विरल दशा है जब याद सज़ा नहीं, साधना बन जाती है; और मिलन केवल देह का नहीं, भावना का विषय रह जाता है। यह पथ कठिन अवश्य है, पर इसी में उस असीम प्रेम का अहसास छिपा है जो भुलाना नहीं चाहता, बस महसूस करना चाहता है—बार‑बार, हर श्वास के साथ।
