भजन गड़ बांधलो रे भाई
भजन गड़ बांधलो रे भाई
साखी— घायल की गति ओर है,ओरान की गति ओर ,प्रेम बान हिर्दे लगा,तो रहा कबीरा धोय ।।
चिट चेतन लागी रही ने, लोकि करे लगाम ,
शब्द गुरु का ताजना,और पोहचे संत सुजान।।
भजन
लागयो थारो जम संग बेर , काया ,
भजन गढ़ बांध लो रे भाई,
सुमिरण गढ़ साध लो रे भाई॥टेक।।
म्हारा साधू भाई , गाफ़िल-गाफ़िल कई फ़िरे रे ?
हे घर आँगन थारो बैर , संतों रे भाई
आठों आठों पहर भरम मांय भुल्या रे भाई
किस विध होगा थारी खैर , काया ?
भजन गढ़ बांध।।
म्हारा साधू भाई , घड़ी बंधाई ले गुरु ज्ञान की ,
हे नीचल नीम रलाओ , संतों रे भाई
हाँ , अच्छा अच्छा नाम ( गुरुजी का नाम )
हृदय के मांई ( भीतर ) राखो रे भाई
इस विध होगा थारी खैर , काया । भजनगढ़ बांध ....॥
म्हारा साधू भाई , तन घोड़ा मन झामकी रे
सुरत पलीता घणा खाय , संतों रे भाई
हाँ , सुमिरण का तम सैल बनईलो साधो
इस विध जम ने भगाओ ( हटाओ ),
काया ॥भजनगढ़ बांध,
म्हारे साधू भाई , ऐसा मनसुबा जो करे ( होएगा ) रे
घर घर आनंद होए , संतों रे भाई
हाँ मनसुख दास शरण सदगुरु की भाई ,
आवा गमन मिट जाए , काया । भजनगढ़ बांध ...॥
घायल की गति ओर है,ओरान की गति ओर ,
प्रेम बान हिर्दे लगा,तो रहा कबीरा धोय ।।
चिट चेतन लागी रही ने, लोकि करे लगाम ,
शब्द गुरु का ताजना,और पोहचे संत सुजान।।
भजन गड़ बांधलो रे भाई || Bhajan Gad Bandhalo Re Bhai || By Prahlad Singh Tipanya