श्री राम को देख के जनक नंदिनी भजन

श्री राम को देख के जनक नंदिनी भजन

श्री राम को देख के,
जनक नंदिनी,
बाग में खड़ी की खड़ी,
रह गयी,
श्री राम देखे सिया को,
सिया राम को,
चार अखियां,
लड़ी की लड़ी रह गयी,
सिया के ब्याह की,
बजने लगी है शहनाई,
धनुष को तोड़ने की,
आज वो घड़ी आई,
जनकपुरी में लगा है,
आज वीरो का मेला,
उन्ही के बीच में,
बैठे हुए है रघुराई।

तो कहते है...
की तोड़ने धनवा चले,
श्री राम राजा रघुपती,
और हाथ में माला लिये,
खड़ी है सीता भगवती,
अरे तुम भी बोलो रघुपती,
और हम भी बोले रघुपती,
रघुपती जय रघुपती,
जय रघुपती जय रघुपती जय।

स्वयंवर सीता का राजा,
जनक ने रच डाला,
धनुष को तोड़ने आयेगा,
कोई मतवाला,
हो कोई मतवाला,
हाँ कोई मतवाला,
गुरु के साथ मे श्री राम,
और लखन आये,
मिले जो नैन सीता से,
तो मन मुस्काये,
मिले जो नैन सीया से,
तो वो मन मुस्काये,
हो प्रभु मुस्काये,
प्रभु मन मुस्काये,
मायूस है सीता की,
माता आज सुनैनवती,
कैसी शर्त अपने रखी,
है ये मेरे पति,
शर्त कैसी अपने रखी,
है ये मेरे पति,
अरे तुम भी बोलो रघुपती,
और हम भी बोले रघुपती।

धनुष को तोड़ने ये वीर,
पंक्तियों में खड़े है,
किसी की मुंछ खड़ी है,
किसी के नैन चढ़े है,
लगा के जोर थक गये वो,
शूरवीर बड़े हैं,
आज तोड़ेंगे इसे हम वो,
अपनी जिद पे अड़े हैं,
शिव धनुष हिला नहीं,
आये थे जो सेनापति,
हार के बैठे हुये है,
बड़े बड़े महारथी,
अरे तुम भी बोलो रघुपती,
और हम भी बोले रघुपती।

गुरु के छू के चरण,
राम ने धनुष तोड़ा,
धनुष को तोड़ के,
सीता की तरफ मुह मोड़ा,
सिया चल कर के प्रभु,
राम के करीब आई,
हाथ में माला लिये,
राम जी को पहनाई,
अरे शान से खड़े हुये हैं,
आज वो अवधपति,
साथ मे खड़ा हुआ,
भाई वो लखनजति,
अरे तुम भी बोलो रघुपती,
और हम भी बोले रघुपती।

मोहल्ले में और गली गली में,
खुशियां छाई है,
सिया के ब्याह की पावन,
घड़ी जो आई है,
जनक की लाडली की,
आज ये विदाई है,
सिया के ब्याह की प्रेमी ने,
महिमा गाई है,
श्री राम का कर ले भजन,
इसी में प्यार सदगति,
प्रेमी की कलम में रहे,
हर घड़ी सरस्वती,
अरे तुम भी बोलो रघुपती,
और हम भी बोले रघुपती।

बोलो मर्यादापुरुषोत्तम,
श्री राम चन्द्र भगवान की जय।


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