हे माँ जगदंबे थारी चुनरी रो लाल रंग मन भावे

हे माँ जगदंबे थारी चुनरी रो लाल रंग मन भावे

(मुखड़ा)
हे मां जगदंबे थारी चुनरी रो,
लाल रंग मन भावे।
हे मां जगदंबे थारी चुनरी रो,
लाल रंग मन भावे।
आई नवरात्रि, मन में उमंग बड़ी,
माता ने रिझावण री, गरबो रमणे की घड़ी।
शहनाई ढोल नगाड़ा बाज रयो,
मृदंग मन भावे,
हे जी मन भावे मां,
हे मां जगदंबे थारी चुनरी रो,
लाल रंग मन भावे।।

(अंतरा 1)
पीले-पीले शेर पर केसरिया आसन,
जाके विराज रही।
लाल-लाल चोला पहन,
सोलह सिंगार सजी, छवि मनभावन।
राग-रागिनी का करे भक्त अभिनंदन,
दरबार तेरो मां, कलावती वृंदावन।
सारंग मन भावे,
हे मां जगदंबे थारी चुनरी रो,
लाल रंग मन भावे।।

(अंतरा 2)
लाडले दुलारे पहन,
सतरंगी परिधान, खेल रहे गरबा।
और भूले दुनियादारी,
सांची हो भावना तो सफल हो मनोरथ।
करती दया भवानी, भक्तों की हितकारी।
तादा दिग तादे दिग दिगदा,
दिगदा ठुमकने की उमंग मन भावे,
हे मां जगदंबे थारी चुनरी रो,
लाल रंग मन भावे।।

(अंतरा 3)
अन्न, धन, यश, मान,
सम्मान दीजो मां।
विकार अहंकार मेरे मन का हर लीजो मां।
काम किसी के सवारूं, ऐसी युक्ति कीजो।
संकट में ‘सरल’ घीरा, सुध लो पसिजो।
‘लक्खा’ को अब बस मां,
तेरे नाम का सत्संग मन भावे,
हे मां जगदंबे थारी चुनरी रो,
लाल रंग मन भावे।।

(पुनरावृत्ति - मुखड़ा)
हे मां जगदंबे थारी चुनरी रो,
लाल रंग मन भावे।
हे मां जगदंबे थारी चुनरी रो,
लाल रंग मन भावे।
आई नवरात्रि, मन में उमंग बड़ी,
माता ने रिझावण री, गरबो रमणे की घड़ी।
शहनाई ढोल नगाड़ा बाज रयो,
मृदंग मन भावे,
हे जी मन भावे मां,
हे मां जगदंबे थारी चुनरी रो,
लाल रंग मन भावे।।


Hey Maa Jagdambey Thari Chunri Re

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नवरात्रि के पावन अवसर पर माँ जगदंबे की लाल चुनरी और उनके सोलह श्रृंगार का दर्शन भक्तों के मन में अपार उमंग और भक्ति की लहर जगा देता है। माँ का वह भव्य रूप, जो पीले शेर पर केसरिया आसन पर विराजमान है, और लाल चोले में सजी उनकी मनमोहक छवि, भक्तों के हृदय को आनंद से भर देती है। ढोल, नगाड़े, शहनाई और मृदंग की ध्वनि के साथ गरबे की वह घड़ी, जहाँ भक्त माँ की भक्ति में मगन होकर सारी दुनियादारी भूल जाता है, एक आध्यात्मिक उत्सव का प्रतीक है। माँ का यह दरबार, जो कलावती वृंदावन की तरह सजा है, भक्तों के लिए वह पवित्र स्थल है, जहाँ उनकी हर पुकार सुनी जाती है, और उनका मन माँ की कृपा और प्रेम के रंग में रंग जाता है।

माँ भवानी की दया इतनी करुणामयी है कि वह अपने भक्तों को अन्न, धन, यश और सम्मान प्रदान करती है, साथ ही उनके मन के विकार और अहंकार को हर लेती है। भक्त अपनी सच्ची भावना के साथ माँ से प्रार्थना करता है कि वह उसके मनोरथ को सफल करे, उसके संकटों को दूर करे, और उसे ऐसी युक्ति दे कि वह दूसरों के काम आ सके। माँ के सत्संग में डूबा भक्त ‘लक्खा’ केवल उनके नाम की भक्ति में ही सुख पाता है, और माँ की कृपा से उसका जीवन सार्थक हो जाता है। यह भक्ति का वह स्वरूप है, जो माँ के प्रेम और शक्ति को हर भक्त के हृदय में स्थापित करता है, और नवरात्रि के इस उत्सव को एक अनंत आनंद और श्रद्धा का पर्व बनाता है, जहाँ माँ की लाल चुनरी हर मन को मोह लेती है।
 
नवरात्रि शक्ति की आराधना का पर्व है, जिसमें हम देवी के तीन प्रमुख रूपों—इच्छा शक्ति, क्रिया शक्ति और ज्ञान शक्ति—की पूजा करते हैं। वैज्ञानिक दृष्टि से, ये तीनों शक्तियाँ प्रकृति के सत्व, रज और तम गुणों से जुड़ी हैं, जो संपूर्ण सृष्टि और मानव जीवन के संतुलन के लिए आवश्यक हैं। नवरात्रि के नौ दिन आत्मशुद्धि, साधना और ध्यान का समय होते हैं, जिनमें व्यक्ति अपने भीतर की नकारात्मक प्रवृत्तियों—जैसे काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद और मत्सर—से मुक्ति पाने का प्रयास करता है।
 
Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

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