पता नहीं किस रूप में आकर

पता नहीं किस रूप में आकर

पता नहीं किस रूप में आकर,
शिव शंकर मिल जायेगा,
निर्मल मन के दर्पण में,
महाकाल के दर्शन पायेगा।

नर शरीर अनमोल है बंदे,
शिव कृपा से पाया है,
झूठे जग प्रपंच में पड़ कर,
क्यों प्रभु को बिसराया है,
शिव शंकर का महामंत्र ही,
साथ तुम्हारे जायेगा,
निर्मल मन के दर्पण में,
महाकाल के दर्शन पायेगा,
पता नहीं किस रूप में आकर,
शिव शंकर मिल जायेगा,
निर्मल मन के दर्पण में,
महाकाल के दर्शन पायेगा।

झूठ कपट निंदा को त्यागो,
हर प्राणी से प्यार करो,
घर पर आए अतिथि कोई तो,
यथाशक्ति सत्कार करो,
भोले इतना दीजियेगा,
जामे कुटुम्ब समा जाये,
मैं भी भूखा ना रहूं,
साधु भी ना भूखा जाये
पता नहीं किस रूप में आकर,
शिव शंकर मिल जायेगा,
निर्मल मन के दर्पण में,
महाकाल के दर्शन पायेगा।

दौलत का अभिमान है झूठा,
यह तो आनी जानी है,
राजा रंक अनेक हुए,
कितनो की सुनी कहानी है,
निश्चय है तो भवसागर से,
बेड़ा पार हो जायेगा,
निर्मल मन के दर्पण में,
महाकाल के दर्शन पायेगा।

पता नहीं किस रूप में आकर,
शिव शंकर मिल जायेगा,
निर्मल मन के दर्पण में,
महाकाल के दर्शन पायेगा।
 



Mahakal Darshan | पता नहीं किस रूप में आकर | Gajendra Pratap Singh | Nikhar Juneja | Ravindra Singh

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