प्रभु मेरे अवगुण चित ना धरो लिरिक्स Prabhu Mere Avgun Chitt Na Dharo Lyrics
प्रभु मेरे अवगुण चित ना धरो लिरिक्स Prabhu Mere Avgun Chitt Na Dharo Lyrics
प्रभु मेरे अवगुण,चित ना धरो,
समदर्शी प्रभु नाम तिहारो,
चाहो तो पार करो।
एक लोहा पूजा मे राखत,
एक घर बधिक परो,
सो दुविधा पारस नहीं देखत,
कंचन करत खरो।
एक नदिया एक,
नाल कहावत,
मैलो नीर भरो,
जब मिलिके दोऊ,
एक बरन भये,
सुरसरी नाम परो।
एक माया एक ब्रह्म कहावत,
सुर श्याम झगरो,
अबकी बेर मोही पार उतारो,
नहि पन जात तरो।
हिंदी अर्थ:
हे प्रभु मेरे अवगुणो को चित्त में न धरिये,
सभी प्राणी आपके लिए एक है,
मुझे अपनी शरण में लीजिये,
एक लोहा पूजा थाल में भी होता है,
और एक निर्दयी कसाई के हाथ में,
किन्तु पारस बिना भेद भाव के,
दोनों को ही खरा सोना बना देता है,
नदी नाले दोनों में पानी होता है,
किन्तु जब दोनों मिले तो,
सागर का रूप ले लेते है,
एक आत्मा एक परमात्मा,
सुर दासजी श्याम (भगवान) से झगड़ते है ,
इस बार मुझे मायावी संसार से,
बचा लीजिये।
मैं अकेला इसे पार नहीं कर सकता।
एक बार स्वामी विवेकानंद खेतड़ी से जयपुर आए। खेतड़ी नरेश उन्हें विदा करने के लिए जयपुर तक साथ आए थे। वहीं संध्या के समय मनोरंजक नृत्य और गायन का आयोजन किया गया था। इस कार्यक्रम के लिए एक ख्यात नर्तकी को आमंत्रित किया गया था। जब स्वामी जी से इस आयोजन में सम्मिलित होने का आग्रह किया गया तो उन्होंने यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया कि नृत्य-गायन में संन्यासी का उपस्थित रहना अनुचित है।
जब नर्तकी को यह ज्ञात हुआ तो वह बहुत दुखी हो गई। उसे लगा कि क्या वह इतनी घृणा की पात्र है कि संन्यासी उसकी उपस्थिति में कुछ देर भी नहीं बैठ सकते? नर्तकी ने दर्द भरे स्वर में सूरदास का यह भक्ति गीत गाया, ‘‘प्रभु मोरे अवगुण चित न धरो, समदर्शी है नाम तिहारो...।’’
भजन के बोल जब स्वामी जी के कानों में पड़े तो वह नर्तकी की वेदना को समझ गए। बाद में उन्होंने नर्तकी से क्षमा याचना की। इस घटना के बाद से स्वामी जी की दृष्टि में समत्व भाव आ गया। उसके बाद एक बार जब किसी ने दक्षिणेश्वर तीर्थ के महोत्सव में वेश्याओं के जाने पर आपत्ति की तो स्वामी जी ने कहा, ‘‘वेश्याएं यदि दक्षिणेश्वर तीर्थ में न जा सकें तो कहां जाएंगी
जब नर्तकी को यह ज्ञात हुआ तो वह बहुत दुखी हो गई। उसे लगा कि क्या वह इतनी घृणा की पात्र है कि संन्यासी उसकी उपस्थिति में कुछ देर भी नहीं बैठ सकते? नर्तकी ने दर्द भरे स्वर में सूरदास का यह भक्ति गीत गाया, ‘‘प्रभु मोरे अवगुण चित न धरो, समदर्शी है नाम तिहारो...।’’
भजन के बोल जब स्वामी जी के कानों में पड़े तो वह नर्तकी की वेदना को समझ गए। बाद में उन्होंने नर्तकी से क्षमा याचना की। इस घटना के बाद से स्वामी जी की दृष्टि में समत्व भाव आ गया। उसके बाद एक बार जब किसी ने दक्षिणेश्वर तीर्थ के महोत्सव में वेश्याओं के जाने पर आपत्ति की तो स्वामी जी ने कहा, ‘‘वेश्याएं यदि दक्षिणेश्वर तीर्थ में न जा सकें तो कहां जाएंगी