म्हाँरा साँवरा गिरधारी।" हे साँवरे गिरधारी! मैं तुझसे क्या-क्या कहूँ? तुमको व्यथा कहने के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं ?
"पूरब जणम री प्रीत पुराणी, जावा णा गिरधारी।" यह प्रेम तो बहुत पुराना है, पिछले जन्मों का है, और यह सदा ऐसा ही रहेगा। हे गिरधारी! आप जानते हैं।
"सुन्दर बदन जोवताँ साजण, थारी छबि बलहारी।" हे साजन! तुम्हारे सुंदर रूप को निहारते-निहारते मैं तुम्हारी इस अद्भुत छवि पर बलिहारी हो जाती हूँ।
"म्हाँरे आँगण स्याम पधारो, मंगल गावाँ नारी।" हे श्याम! मेरे आँगन में पधारो, ताकि हर नारी मंगलगीत गाए और मेरा घर-आँगन पवित्र हो जाए।
"मोती चौक पुरावाँ ऐणाँ, तण म डारां बारी।" तेरे स्वागत में मैं मोतियों से सजी चौकियाँ भर दूँ और तुझे देखने के लिए अपने आभूषण भी न्यौछावर कर दूँ।
"चरण सरण री दासी मीरां, जणम जणम री क्वाँरी।" मीरा तेरे चरणों की दासी है। मैं जन्म-जन्मांतर तक तेरी सेवा में कुवांरी बनी रहना चाहती हूँ।
Thane kai kai bol sunava meerabai
Author - Saroj Jangir
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