गुरु कछु तो बताइए मोहे ज्ञान

गुरु कछु तो बताइए मोहे ज्ञान

गुरु कछु तो बताइए मोहे,
ज्ञान कि नैया पार कैसे लगे,
बेटा तो मेरा कुछ नहीं कहता,
बहू ने भर दी कान,
मैंने कर दिए नाम मकान,
के नैया पार कैसे लगे।

बहुबल तो मेरी यूं उठ बोली,
सुन सा सुन मेरी बात,
चाबी दे दो हमारे हाथ,
तुम्हें तो कछु याद ना रहे।

होता तो मेरा यूं उठ बोला,
सुन दादी मेरी बात,
अपनी बाहर बिछा लो खाट,
तू सारी रात खो खो करें।

बाहर से मेरा बुड्ढा आया,
सुन बुढ़िया मेरी बात,
चल गैरों में बिछामें अपनी खाट,
जीवन हमरा वही पर कटे।

सासरे से बेटी आई,
सुन मैया मेरी बात,
तयारे धेवते कमा में दिन रात,
रोटी तो तुम्हें खाट पर मिले।

रो रो के वह मैया बोली,
सुन बेटी मेरी बात,
मोहे नर्क को बास मिले,
बेटी की रोटी खाकर जो मरे।

राम नाम का सुमिरन कर लो,
भजन करो दिन रात,
तेरी गुरु ही लगा में नैया पार,
जीवन तो तेरा सुख से कटे।

गुरु कछु तो बताइए मोहे,
ज्ञान कि नैया पार कैसे लगे,
गुरु कछु तो बताइए मोहे,
ज्ञान कि नैया पार कैसे लगे।




BETA TO MERA KUCH NA KEHTA BAHU NE BHAR DIYE KAN

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