मातृ मंदिर का समर्पित दीप मैं, चाह मेरी यह की मै जलता रहूँ।
कर्म पथ पर मुस्कराऊँ सर्वदा, आपदाओं को समझ वरदान मैं, जग सुने झूमे सदा अनुराग में, उल्लसित हो नित्य गाऊँ गान मैं, चीर तम दल अज्ञता निज तेज से, बन अजय निश्शंक मै चलता रहूँ।
सुमन बनकर सज उठे जयमाल में, राह में जितने मिले वे शूल भी, धन्य यदि मैं जिन्दगी की राह में, कर सके अभिषेक मेरा धूल भी, क्योंकि मेरी देह मिट्टी से बनी है, क्यों न उसके प्रेम में पलता रहूं।
मै जलूँ इतना कि सारे विश्व में, प्रेम का पावन अमर प्रकाश हो, मेदिनी यह मोद से विहँसे मधुर, गर्व से उत्फुल्ल वह आकाश हो, प्यार का संदेश दे अन्तिम किरण, मैं भले अपनत्व को छलता रहूं।
मातृ मन्दिर का अकिंचन दीप मैं, चाह मेरी यह कि मै जलता रहूं, मातृ मन्दिर का अकिंचन दीप मैं, चाह मेरी यह कि मै जलता रहूं।
मातृ मंदिर का समर्पित दीप मै चाह मेरी यह की मै जलता रहूँ || देशभक्ति एकल गीत ||