सूली पे भी वो नासरी, बाइख्तियार है, जन्नत में एक डाकू का, अब तो शुमार है।
छाई घटाए जुल्म तो, बरसात आ गई, येशु की जिंदगी में, घनी रात आ गई, चाहे जहाँ के लिए, निश्पनाहर है, जन्नत में एक डाकू का, अब तो शुमार है।
ऐसा हुकम की जिसकी, नहीं है कोई मिशाल, किरदार और अमल में, फ़कत येशु ही बाकमाल, अपने सतानेवालों से, करता जो प्यार है, जन्नत में एक डाकू का, अब तो शुमार है।
मुझको मेरे येशु करुना, तू कर अपार, मैं तेरे दर्द बाँट लूँ और, जां करू फ़िदा, ऐसी ही कैफियत से, शाकी दो चार है, जन्नत में एक डाकू का, अब तो शुमार है।
New Saleebi geet " Suli pe Bhi Wo Nasari " by Tehmina Tariq