(अंतरा 1) जब से होश संभाला मैंने, धोखा ही है खाया। जिसको अपना समझा मैंने, सबने ही ठुकराया। भिखी अँखियों से तुमको, निहारता हूँ मैं, मैया तुझे पुकारता हूँ मैं, मैया तुझे पुकारता हूँ मैं।।
(अंतरा 2) सबका होना चाहा मैंने, कोई हुआ ना मेरा। स्वार्थ के रिश्तों ने मुझको, चारों ओर से घेरा। झूठे रिश्तों का बोझा, उतारता हूँ मैं, मैया तुझे पुकारता हूँ मैं, मैया तुझे पुकारता हूँ मैं।।
(अंतरा 3) नहीं है कोई सहारा मेरा, मुझको सहारा दे दो। बीच भंवर में मेरी नैया, उसको किनारा दे दो। हूँ अकेला, तभी तो, माँ हारता हूँ मैं, मैया तुझे पुकारता हूँ मैं, मैया तुझे पुकारता हूँ मैं।।
(अंतरा 4) खोल के मैया तुझको मैंने, अपना दिल दिखलाया। अपनी तकलीफों का ‘हरी’ ने, सारा हाल सुनाया। मुझको अपना लो, दामन पसारता हूँ मैं, मैया तुझे पुकारता हूँ मैं, मैया तुझे पुकारता हूँ मैं।।