श्री कृष्ण जी का चरणामृत बिना तुलसी के अधूरा क्यों है? कहानी क्या है Krishna Charanamrit Tulasi Importance

श्री कृष्ण जी का चरणामृत बिना तुलसी के अधूरा क्यों है? इसके पीछे क्या कहानी है? Krishna Charanamrit Tulasi Importance

शास्त्रों में कहा गया है कि भगवान विष्णु के चरण का अमृत रूपी जल समस्त पाप-व्याधियों का शमन करने वाला औषधी के समान है. चरणामृत का बहुत महत्व है. यह भगवान के चरणों से निकला जल है, जो अमृत के समान माना जाता है. यह सभी पापों और बीमारियों को दूर करता है और मनुष्य को मोक्ष प्राप्ति का मार्ग दिखाता है. चरणामृत भगवान के चरणों से निकले जल को कहा जाता है. यह एक पवित्र और लाभकारी है. चरणामृत में तुलसी के पत्ते डालने की परंपरा प्राचीन काल से ही चली आ रही है. ऐसा माना जाता है कि तुलसी के पत्ते चरणामृत की पवित्रता को बढ़ाते हैं और इसे और भी अधिक लाभकारी बनाते हैं. तुलसी के पत्ते में कई तरह के औषधीय गुण होते हैं. 
 
 श्री कृष्ण जी का चरणामृत बिना तुलसी के अधूरा क्यों है? कहानी क्या है Krishna Charanamrit Tulasi Importance
 
यह एंटीऑक्सीडेंट, एंटी-इंफ्लेमेटरी, एंटी-बैक्टीरियल, एंटी-वायरल, एंटी-फंगल और एंटी-माइक्रोबियल गुणों से भरपूर होता है. तुलसी के पत्ते का उपयोग कई तरह की बीमारियों के इलाज में किया जाता है, जैसे कि सर्दी-खांसी, बुखार, दस्त, डायरिया, अपच, गैस, अस्थमा, मधुमेह, उच्च रक्तचाप, हृदय रोग, कैंसर, त्वचा रोग, बालों के झड़ने, अनिद्रा, चिंता, तनाव आदि.
 
चरणामृत में तुलसी के पत्ते डालने से इसकी रोगनाशक क्षमता और भी बढ़ जाती है. ऐसा माना जाता है कि तुलसी चरणामृत लेने से मेधा, बुद्धि, स्मरण शक्ति बढ़ती है. यह शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करता है और कई तरह की बीमारियों से बचाता है.
 

हमेशा सीधे हाथ से लें चरणामृत, मिलेंगे शुभ परिणाम

चरणामृत को हमेशा सीधे हाथ से लेने की परंपरा भी प्राचीन काल से ही चली आ रही है.  चरणामृत को हमेशा सीधे हाथ से लेने का कारण यह है कि माना जाता है कि बायां हाथ अशुद्ध होता है. बाएं हाथ से चरणामृत लेने से मनुष्य को अशुद्धता का संचार होता है और उसे लाभ नहीं मिलता है.
यदि आप चरणामृत लेते हैं तो चरणामृत को हमेशा सीधे हाथ से लें. यह आपके लिए शुभ होगा.
 

चरणामृत के बाद नहीं करें ये काम

चरणामृत के बाद कुछ काम करने से मना किया जाता है, जैसे:
  • सिर पर हाथ रखना.
  • चरणामृत को जमीन पर गिराना.
  • चरणामृत को किसी और को देना.
  • चरणामृत को किसी अन्य वस्तु में डालना.
  • चरणामृत को किसी अन्य व्यक्ति के साथ साझा करना.
ऐसा माना जाता है कि चरणामृत के बाद इन कामों को करने से मनुष्य को पाप लग सकता है. इसलिए चरणामृत के बाद इन कामों से बचना चाहिए.
 

चरणामृत के होते हैं स्वास्थ लाभ

चरणामृत का महत्व सिर्फ धार्मिक ही नहीं, बल्कि चिकित्सकीय भी होता है। यह जल आमतौर पर तांबे के पात्र में रखकर उपयोग किया जाता है। आयुर्वेद में इसका मत अनुसार, तांबे के पात्र में रखे जाने वाले जल में अनेक रोगों का नाश करने की शक्ति होती है। जो जल उस पात्र में रखा जाता है, उसका सेवन करने से शरीर में रोगों से लड़ने की क्षमता उत्पन्न हो जाती है और रोग नहीं फैलते।
 

अकाल मृत्यु का ड़र होगा खत्म

यदि आपको भी सपने में अकाल मृत्यु का डर आता है, तो आपको घबराने की आवश्यकता नहीं है। इस स्थिति में, भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करने और उनके चरणामृत का सेवन करने से आपके मन में यह डर धीरे-धीरे कम हो सकता है। यह प्रयास आपकी उम्र को भी बढ़ावा दे सकता है। नारदपुराण के अनुसार, जिस घर में भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का निवास होता है और उनकी पूजा-अर्चना की जाती है, उस घर में सदैव शांति बनी रहती है और कोई दुःख या दरिद्रता का सामना करने की स्थिति नहीं होती।

भगवान विष्णु हिंदू धर्म में तीन प्रमुख देवताओं में से एक हैं. वे ब्रह्मांड के संरक्षक हैं और उन्हें सर्वव्यापी, सर्वज्ञ और सर्वशक्तिमान माना जाता है. भगवान विष्णु की पूजा करने से कई लाभ मिलते हैं-
  • शांति और समृद्धि: भगवान विष्णु को शांति और समृद्धि का देवता माना जाता है. उनकी पूजा करने से भक्तों को शांति और समृद्धि प्राप्त होती है.
  • पापों से मुक्ति: भगवान विष्णु को पापों से मुक्ति का देवता माना जाता है. उनकी पूजा करने से भक्तों को अपने पापों से मुक्ति मिलती है और वे मोक्ष प्राप्त करते हैं.
  • मोक्ष: भगवान विष्णु को मोक्ष का देवता माना जाता है. उनकी पूजा करने से भक्तों को मोक्ष प्राप्त होता है, जो हिंदू धर्म में जीवन का सर्वोच्च लक्ष्य है.
  • आरोग्य: भगवान विष्णु को आरोग्य का देवता माना जाता है. उनकी पूजा करने से भक्तों को आरोग्य प्राप्त होता है और वे सभी प्रकार के रोगों से मुक्त होते हैं.
  • संतान प्राप्ति: भगवान विष्णु को संतान प्राप्ति का देवता माना जाता है. उनकी पूजा करने से भक्तों को संतान प्राप्ति होती है और वे सुखी परिवार का जीवन जीते हैं.
  • धन प्राप्ति: भगवान विष्णु को धन प्राप्ति का देवता माना जाता है. उनकी पूजा करने से भक्तों को धन प्राप्ति होती है और वे सुखी जीवन जीते हैं.
भगवान विष्णु की पूजा करने के कई तरीके हैं. सबसे आम तरीका है भगवान विष्णु की प्रतिमा या तस्वीर के सामने पूजा करना. पूजा में भक्त भगवान विष्णु को फूल, धूप, दीप, नैवेद्य और आरती अर्पित करते हैं. वे भगवान विष्णु के मंत्रों का जाप भी करते हैं. भगवान विष्णु की पूजा करने का सबसे अच्छा समय सुबह के समय माना जाता है. भगवान विष्णु की पूजा करने से भक्तों को कई लाभ मिलते हैं. यह एक ऐसा तरीका है जिससे भक्त अपने जीवन में शांति, समृद्धि, पापों से मुक्ति, मोक्ष, आरोग्य, संतान प्राप्ति और धन प्राप्ति प्राप्त कर सकते हैं.

श्री तुलसी चालीसा
।।दोहा।।
श्री तुलसी महारानी, करूं विनय सिरनाय ।
जो मम हो संकट विकट, दीजै मात नशाय ।।
 
।।चौपाई।।
नमो नमो तुलसी महारानी । महिमा अमित न जाए बखानी ।।
दियो विष्णु तुमको सनमाना । जग में छायो सुयश महाना ।।
विष्णु प्रिया जय जयति भवानि । तिहूं लोक की हो सुखखानी ।।
भगवत पूजा कर जो कोई । बिना तुम्हारे सफल न होई ।।
जिन घर तव नहिं होय निवासा । उस पर करहिं विष्णु नहिं बासा ।।
करे सदा जो तव नित सुमिरन । तेहिके काज होय सब पूरन ।।
कातिक मास महात्म तुम्हारा । ताको जानत सब संसारा ।।
तव पूजन जो करैं कुंवारी । पावै सुन्दर वर सुकुमारी ।।
कर जो पूजा नितप्रीति नारी । सुख सम्पत्ति से होय सुखारी ।।
वृद्धा नारी करै जो पूजन । मिले भक्ति होवै पुलकित मन ।।
श्रद्धा से पूजै जो कोई । भवनिधि से तर जावै सोई ।।
कथा भागवत यज्ञ करावै । तुम बिन नहीं सफलता पावै ।।
छायो तब प्रताप जगभारी । ध्यावत तुमहिं सकल चितधारी ।।
तुम्हीं मात यंत्रन तंत्रन में । सकल काज सिधि होवै क्षण में ।।
औषधि रूप आप हो माता । सब जग में तव यश विख्याता ।।
देव रिषी मुनि और तपधारी । करत सदा तव जय जयकारी ।।
वेद पुरानन तव यश गाया । महिमा अगम पार नहिं पाया ।।
नमो नमो जै जै सुखकारनि । नमो नमो जै दुखनिवारनि ।।
नमो नमो सुखसम्पत्ति देनी । नमो नमो अघ काटन छेनी ।।
नमो नमो भक्तन दु:ख हरनी । नमो नमो दुष्टन मद छेनी ।।
नमो नमो भव पार उतारनि । नमो नमो परलोक सुधारनि ।।
नमो नमो निज भक्त उबारनि । नमो नमो जनकाज संवारनि ।।
नमो नमो जय कुमति नशावनि । नमो नमो सब सुख उपजावनि ।।
जयति जयति जय तुलसीमाई । ध्याऊं तुमको शीश नवाई ।।
निजजन जानि मोहि अपनाओ । बिगड़े कारज आप बनाओ ।।
करूं विनय मैं मात तुम्हारी । पूरण आशा करहु हमारी ।।
शरण चरण कर जोरि मनाऊं । निशदिन तेरे ही गुण गाऊं ।।
करहु मात यह अब मोपर दया । निर्मल होय सकल ममकाया ।।
मांगू मात यह बर दीजै । सकल मनोरथ पूर्ण कीजै ।।
जानूं नहिं कुछ नेम अचारा । छमहु मात अपराध हमारा ।।
बारह मास करै जो पूजा । ता सम जग में और न दूजा ।।
प्रथमहि गंगाजल मंगवावे । फिर सुंदर स्नान करावे ।।
चंदन अक्षत पुष्प चढ़ावे । धूप दीप नैवेद्य लगावे ।।
करे आचमन गंगा जल से । ध्यान करे हृदय निर्मल से ।
पाठ करे फिर चालीसा की । अस्तुति करे मात तुलसी की ।।
यह विधि पूजा करे हमेशा । ताके तन नहिं रहै क्लेशा ।।
करै मास कार्तिक का साधन । सोवे नित पवित्र सिध हुई जाहीं ।।
है यह कथा महा सुखदाई । पढ़ै सुने सो भव तर जाई ।।
 
।।दोहा।।
यह श्री तुलसी चालीसा पाठ करे जो कोय ।
गोविन्द सो फल पावही जो मन इच्छा होय ।।
 तुलसी जी की आरती
जय जय तुलसी माता, सब जग की सुख दाता।।जय.।।
सब योगों के ऊपर, सब रोगों के ऊपर ।
रुज से रक्षा करके भव त्राता ।।जय.।।
बटु पुत्री हे श्यामा सुर बल्ली हे ग्राम्या ।
विष्णु प्रिये जो तुमको सेवे सो नर तर जाता ।।जय.।।
हरि के शीश विराजत त्रिभुवन से हो वंदित ।
पतित जनों की तारिणी तुम हो विख्याता ।।जय.।।
लेकर जन्म विजन में आई दिव्य भवन में ।
मानव लोक तुम्हीं से सुख संपत्ति पाता ।।जय.।।
हरि को तुम अति प्यारी श्याम वरुण कुमारी ।
प्रेम अजब है उनका तुमसे कैसा नाता ।।जय.।।

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