मुरली बजाते हो पीछे पीछे आते हो

मुरली बजाते हो पीछे पीछे आते हो

मुरली बजाते हो,
पीछे पीछे आते हो,
नैनो से नैना मिला के,
मुस्कुराते हो,
ओ राधा रेड रेड,
गजरा लगा के,
जब तुम आती हो,
नैन में मेरे बस जाती हो।

छलियाँ है छलियाँ,
मैं तो जानू तुझको,
बृज में अनोखी सब से,
लागे तू मुझको,
ओ राधा रेड रेड,
बिंदियाँ लगा के,
तुम जब आती हो,
नैन में मेरे बस जाती हो।

होशयारी मुझसे ना,
चलेगी ज्यादा,
तेरे बिन ओ राधा,
तेरा श्याम है आधा,
हो राधा रेड रेड,
मेहँदी लगा के,
जब तुम आती हो,
नैन में मेरे बस जाती हो।

झूठी बड़ाई करना,
आदत है तेरी,
चाहूँ तुझे तो ही,
तू ही है चाहत मेरी,
सत्य रजनीश हर्षित हो,
तेरा रास रचाती हो,
नैन में मेरे बस जाती हो।
 

श्री कृष्ण जी की मुरली बजाने की कला अद्वितीय थी। उनकी मुरली की धुन इतनी मधुर थी कि गोपियों को अपनी सुध-बुध खोने पर मजबूर कर देती थी। कृष्ण जी मुरली बजाकर गोपियों को अपनी ओर आकर्षित करते थे और उनके साथ नृत्य करते थे।

कृष्ण जी की मुरली बजाने की कला का वर्णन कई भजनों में भी मिलता है। एक भजन में कहा गया है कि कृष्ण जी की मुरली की धुन इतनी मधुर थी कि गोपियों के मन में कृष्ण जी के लिए प्रेम का संचार हो गया। दूसरे भजन में कहा गया है कि कृष्ण जी की मुरली की धुन इतनी शक्तिशाली थी कि गोपियों को अपनी सुध-बुध खोने पर मजबूर कर देती थी।


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