विनती सुनिए नाथ हमारी लिरिक्स Vinati Suniye Nath Hamari Lyrics
विनती सुनिए नाथ हमारी लिरिक्स Vinati Suniye Nath Hamari Lyrics
विनती सुनिए नाथ हमारी,हृदय स्वर हरि हृदय बिहारी,
मोर मुकुट पीताम्बरधारी,
विनती सुनिए नाथ हमारी।
जनम जनम की लगी लगन है,
साक्षी तारों भरा गगन है,
गिन गिन स्वास आस कहती है,
आएंगे श्री कृष्ण मुरारी,
विनती सुनिए नाथ हमारी।
सतत प्रतीक्षा अप लक लोचन,
हे भव बाधा विपत्ति विमोचन,
स्वागत का अधिकार दीजिये,
शरणागत है नयन पुजारी,
विनती सुनिए नाथ हमारी।
और कहूं क्या अन्तर्यामी,
तन मन धन प्राणो के स्वामी,
करुणाकर आकर ये कहिये,
स्वीकारी विनती स्वीकारी,
विनती सुनिए नाथ हमारी।
Vinti He Nath | विनती हे नाथ | जगतदाता श्री कृष्ण भगवान से करुणामयी विनती | by Krishna Agarwal
इस भजन में, एक भक्त कृष्ण से अपनी विनती करता है। वह कृष्ण को अपना नाथ या स्वामी मानता है और उनकी आराधना करता है। वह कृष्ण से अपने मन में बसी हुई लगन को पूरा करने की प्रार्थना करता है। वह कृष्ण से आश्वस्त करता है कि वह सच्चे मन से कृष्ण की भक्ति करता है।
भजन के पहले दो श्लोकों में, भक्त कृष्ण की महिमा का वर्णन करता है। वह कृष्ण को हृदय का निवासी और मोर मुकुट और पीतांबरधारी के रूप में वर्णित करता है। वह कृष्ण से अपनी विनती सुनने की प्रार्थना करता है।
तीसरे श्लोक में, भक्त कृष्ण से अपनी लगन का वर्णन करता है। वह कहता है कि वह जन्म-जन्मांतर से कृष्ण की भक्ति करता है। वह कृष्ण से आश्वस्त करता है कि वह कृष्ण को कभी भी नहीं भूलेगा।
चौथे श्लोक में, भक्त कृष्ण से अपने मन की प्रतीक्षा का वर्णन करता है। वह कृष्ण से अपने मन को स्वीकार करने की प्रार्थना करता है।
पांचवें और अंतिम श्लोक में, भक्त कृष्ण से अपनी विनती को स्वीकार करने की प्रार्थना करता है। वह कृष्ण को अपना अन्तर्यामी और तन, मन, धन और प्राण का स्वामी मानता है। वह कृष्ण से आश्वस्त करता है कि वह कृष्ण की भक्ति में अपना जीवन बिताएगा।
इस भजन से हमें यह सीख मिलती है कि हमें सच्चे मन से भगवान की भक्ति करनी चाहिए। हमें भगवान से अपनी विनती करने में संकोच नहीं करना चाहिए।
भजन के पहले दो श्लोकों में, भक्त कृष्ण की महिमा का वर्णन करता है। वह कृष्ण को हृदय का निवासी और मोर मुकुट और पीतांबरधारी के रूप में वर्णित करता है। वह कृष्ण से अपनी विनती सुनने की प्रार्थना करता है।
तीसरे श्लोक में, भक्त कृष्ण से अपनी लगन का वर्णन करता है। वह कहता है कि वह जन्म-जन्मांतर से कृष्ण की भक्ति करता है। वह कृष्ण से आश्वस्त करता है कि वह कृष्ण को कभी भी नहीं भूलेगा।
चौथे श्लोक में, भक्त कृष्ण से अपने मन की प्रतीक्षा का वर्णन करता है। वह कृष्ण से अपने मन को स्वीकार करने की प्रार्थना करता है।
पांचवें और अंतिम श्लोक में, भक्त कृष्ण से अपनी विनती को स्वीकार करने की प्रार्थना करता है। वह कृष्ण को अपना अन्तर्यामी और तन, मन, धन और प्राण का स्वामी मानता है। वह कृष्ण से आश्वस्त करता है कि वह कृष्ण की भक्ति में अपना जीवन बिताएगा।
इस भजन से हमें यह सीख मिलती है कि हमें सच्चे मन से भगवान की भक्ति करनी चाहिए। हमें भगवान से अपनी विनती करने में संकोच नहीं करना चाहिए।