दूर हुए सब गम के बादल माँ का सिर पे हाथ है

दूर हुए सब गम के बादल माँ का सिर पे हाथ है

(मुखड़ा)  
बिगड़ी बनाने वाली,  
कष्ट मिटाने वाली,  
दुनिया में जगदंबे माँ, अपना बनाने वाली।  
भाग्य जगाने वाली,  
बस एक जगदंबे माँ,  
शेरावाली का आज जगराता है।  

(अंतरा)  
दूर क्यों रहता है,  
माँ की शरण आजा,  
माँ के दर पर हैं बराबर, रंक हो या राजा।  
बड़ा हो या छोटा,  
खरा हो या खोटा,  
मैया के दर से वो, नहीं खाली लौटा।  
जो भी श्रद्धा से,  
शीश झुकाता है,  
शेरावाली का आज जगराता है।  

(अंतरा)  
मुगल सेना लेकर,  
राजा अकबर आया,  
माँ की पावन ज्योति, वो बुझा न पाया।  
मान टूटा अकबर का,  
सवाली बन गया दर का,  
चूमकर चौखट सेवक, बना मेरी माँ के घर का।  
छत्र सोने का,  
अकबर चढ़ाता है,  
शेरावाली का आज जगराता है।  

(अंतरा)  
ऐ अंजुम दुनिया में,  
माँ की क्या शान है,  
हो निर्धन या धनवाला, मिले सब को मान है।  
जिसने भी माँ को मनाया,  
मुँह माँगा उसने पाया,  
मैंने किस्मत का ताला, माँ के दर पे खुलवाया।  
तभी तो ये लक्खा,  
माँ के गुण गाता है,  
शेरावाली का आज जगराता है।  

(पुनरावृति)  
बिगड़ी बनाने वाली,  
कष्ट मिटाने वाली,  
दुनिया में जगदंबे माँ, अपना बनाने वाली।  
भाग्य जगाने वाली,  
बस एक जगदंबे माँ,  
शेरावाली का आज जगराता है।  
माँ जगदंबे बिगड़ी बनाती और कष्ट मिटाती है। उसके दर पर सभी को समान सम्मान और शरण मिलती है।  यह भजन माँ की महिमा और जगराते की भक्ति को दर्शाता है।
 


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