जाके मुँह माथा नहीं नाहीं रूप कुरूप हिंदी मीनिंग
जाके मुँह माथा नहीं, नाहीं रूप कुरूप।
पुहुप बास तैं पातरा, ऐसा तत्त अनूप॥
Jake Munh Matha Nahi, Nahi Rup Kurup,
Puhup Bas Te Patara, Aisa Tatv Anoop.
दोहे के शब्दार्थ : Word Meaning Kabir Doha
जाकै-जिसके (ईश्वर)।
मह- समाहित।
माथा नहीं- सिर नहीं है।
नहीं रूप करूप- निराकार है, वह ना तो सुन्दर है और नाही कुरूप ही ।
पुहुप बास थैं- जैसे फूलों में खुशबु है।
तत अनूप- अनुपम तत्व (पूर्ण ब्रह्म)।
कबीर साहेब ने इस दोहे में ईश्वर के स्वरूप और गुणों का वर्णन किया है। वे कहते हैं कि ईश्वर को न तो किसी रूप में देखा जा सकता है, और न ही वह रूपहीन है। वह न तो सुंदर है, और न ही कुरूप। वह पुष्प की सुगंध से भी अधिक सूक्ष्म है। कबीर साहेब के अनुसार, ईश्वर को केवल ज्ञान और ध्यान के द्वारा ही जाना जा सकता है। उसे न तो शब्दों से समझा जा सकता है, और न ही किसी आकार-प्रकार में देखा जा सकता है। परमात्मा के आकार और प्रकार के सम्बन्ध में कबीर साहेब का कथन है की परमात्मा के मुंह और मस्तक नहीं है, ना तो वे रूपवान हैं और नाही कुरूप हैं, पुष्प सुगंध से भी वे महीन/पतले हैं ऐसे निराकार अनुपम तत्व हैं। आशय है की निराकार परमात्मा को किसी रूप, आकार में परिभाषित नहीं किया जा सकता है।
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Author - Saroj Jangir
दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं कबीर के दोहों को अर्थ सहित, कबीर भजन, आदि को सांझा करती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें।
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