हरि रस पीया जाँणियेजे कबहूँ न जाइ खुमार मीनिंग Hari Ras Piya Janiye Meaning : Kabir Ke Dohe Hindi Arth Sahit
हरि रस पीया जाँणिये, जे कबहूँ न जाइ खुमार।
मैमंता घूँमत रहै, नाँहीं तन की सार॥
Hari Ras Piya Janiye, Je Kabahu Na Jai Khumar,
Maimanta Ghumant Rahe, Nahi Tan Ki Sar.
कबीर के दोहे का हिंदी में अर्थ / भावार्थ Kabir Doha Hindi Meaning
हरी भक्त, राम रस का पान करने पर इसका नशा कुछ ऐसे होता है जिसका खुमार/नशा कभी उतरता है। वह मदमस्त होकर घूमता रहता है उसे अपने तन की भी सार संभाल नहीं होती है। वह अपने शरीर की सुध बुध भी खो बैठता है। आपने कबीर दास के इस दोहे को बहुत अच्छी तरह से समझा है। इस दोहे में, कबीर दास राम के प्रेम के रस का वर्णन करते हैं। वह कहते हैं कि राम के प्रेम का रस एक ऐसा नशा है जो कभी नहीं उतरता है। कबीर दास कहते हैं कि जब कोई व्यक्ति राम के प्रेम के रस का पान करता है, तो वह मतवाला हो जाता है। वह अपने शरीर और सांसारिक व्यवहार की परवाह नहीं करता है। वह केवल राम के प्रेम में डूबा रहता है।