तृष्णा ना जाये मन से भजन लिरिक्स Trishna Na Jaye Man Se Lyrics
तृष्णा ना जाये मन से भजन लिरिक्स Trishna Na Jaye Man Se Lyrics : Krishna Bhajan / Anup Jalota
तृष्णा ना जाये मन से,मथुरा वृन्दावन सघन,
और यमुना के तीर,
धन्य धन्य माटी सुघर,
धन्य कालिंदी नीर।
कृष्णा बोलो कृष्णा,
हरे कृष्णा राधे कृष्ण।
तृष्णा ना जाए मन से,
कृष्णा ना आये मन में,
जतन करूँ मैं हजार,
कैसे लगेगी नईया पार,
घनश्याम जी,
कैसे लगेगी नैया पार।
इक पल माया साथ ना छोड़े,
जिधर जिधर चाहे मुझे मोड़े,
हरी भक्ति से हरी पूजन से,
मेरा रिश्ता नाता तोड़े,
माया ना जाये मन से,
भक्ति ना आये मन में,
जीवन ना जाये बेकार,
कैसे लगेगी नैया पार,
घनश्याम जी,
कैसे लगेगी नैया पार।
क्षमा करो मेरे गिरिवर धारी,
चंचलता मन की लाचारी,
लगन जगा दो मन में स्वामी,
तुम हो प्रभु जी अंतर्यामी,
मन ना बने अनुरागी,
भावना बने ना त्यागी,
दया करो करतार,
कैसे लगेगी नैया पार,
घनश्याम जी,
कैसे लगेगी नैया पार।
तृष्णा ना जाए मन से,
कृष्णा ना आये मन में,
जतन करूँ मैं हजार,
कैसे लगेगी नैया पार,
घनश्याम जी,
कैसे लगेगी नैया पार।
Trushna Na Jaye
भक्ति की दुनिया में "तृष्णा" एक महत्वपूर्ण अवधारणा है। तृष्णा का अर्थ है "लालसा, इच्छा, या आकांक्षा"। यह एक ऐसी चीज है जो मनुष्यों को प्रेरित करती है और उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करती है। हालांकि, तृष्णा कभी-कभी हानिकारक भी हो सकती है, अगर यह अत्यधिक या अनियंत्रित हो जाए।
भजन "तृष्णा ना जाए मन से" इसी विषय को दर्शाता है। भजन के पहले दो श्लोकों में, भक्त कहता है कि वह तृष्णा को दूर करने के लिए बहुत प्रयास कर रहा है, लेकिन वह सफल नहीं हो पा रहा है। वह कहता है कि वह कृष्ण के नाम का जाप करता है, लेकिन फिर भी कृष्ण उसके मन में नहीं आते हैं।
तीसरे और चौथे श्लोक में, भक्त कहता है कि माया भी उसे परेशान कर रही है। माया एक ऐसा शक्तिशाली बल है जो मनुष्यों को सांसारिक वस्तुओं और सुखों के पीछे भागने के लिए प्रेरित करता है। भक्त कहता है कि माया उसके साथ है, और वह उसे कृष्ण की भक्ति से दूर ले जा रही है।
पांचवें और छठे श्लोक में, भक्त भगवान कृष्ण से क्षमा मांगता है। वह कहता है कि वह अपने मन की चंचलता और लाचारी के लिए क्षमा चाहता है। वह भगवान कृष्ण से प्रार्थना करता है कि वह उसके मन में कृष्ण-प्रेम जगा दें।
भजन "तृष्णा ना जाए मन से" इसी विषय को दर्शाता है। भजन के पहले दो श्लोकों में, भक्त कहता है कि वह तृष्णा को दूर करने के लिए बहुत प्रयास कर रहा है, लेकिन वह सफल नहीं हो पा रहा है। वह कहता है कि वह कृष्ण के नाम का जाप करता है, लेकिन फिर भी कृष्ण उसके मन में नहीं आते हैं।
तीसरे और चौथे श्लोक में, भक्त कहता है कि माया भी उसे परेशान कर रही है। माया एक ऐसा शक्तिशाली बल है जो मनुष्यों को सांसारिक वस्तुओं और सुखों के पीछे भागने के लिए प्रेरित करता है। भक्त कहता है कि माया उसके साथ है, और वह उसे कृष्ण की भक्ति से दूर ले जा रही है।
पांचवें और छठे श्लोक में, भक्त भगवान कृष्ण से क्षमा मांगता है। वह कहता है कि वह अपने मन की चंचलता और लाचारी के लिए क्षमा चाहता है। वह भगवान कृष्ण से प्रार्थना करता है कि वह उसके मन में कृष्ण-प्रेम जगा दें।