पढ़ि पढ़ाबै कछु नहीं ब्राहमन भक्ति ना जान हिंदी मीनिंग Padhi Padhave Kachhu Nahi Meaning : Kabir Ke Dohe Hindi Meaning
पढ़ि पढ़ाबै कछु नहीं, ब्राहमन भक्ति ना जान
व्याहै श्राधै कारनै, बैठा सुन्दा तान।
Padhi Padhave Kachhu Nahi, Brahman Bhakti Jan,
Vyave Shradhe Karane, Baitha Sunda Taan.
कबीर के दोहे के शब्दार्थ Kabir Doha Word Meaning in Hindi
कबीर साहेब ने ढोंगी पंडितों पर व्यंग्य किया है की वे पढने और पढ़ाने में कोई रूचि नहीं रखते हैं ये सब तो ढोंग ही हैं। ऐसे अज्ञानी ब्राह्मण भक्ति को नहीं जान पाते हैं। ऐसा ढोंगी ब्राह्मण तो शादी विवाह या श्राद्ध में कुछ दान पाने के लिए अपने पेट को, सूंड को तां कर बैठा है। आशय है की मुंह फाड़ कर वह अपने स्वार्थ के लिए ग्यानी बनाने का स्वांग रचता है। इस दोहे में, ब्राह्मणों की आलोचना कर रहे हैं। वे कह रहे हैं कि ब्राह्मण पढ़ते पढ़ाते कुछ भी नहीं हैं, और भक्ति के बारे में कुछ भी नहीं जानते हैं। फिर भी, वे शादी-विवाह या श्राद्धकर्म कराने में लोभ वश मुँह फाड़ कर बैठे रहते हैं। कवि का कहना है कि ब्राह्मणों को अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए।