पढ़ि पढ़ाबै कछु नहीं ब्राहमन भक्ति मीनिंग

पढ़ि पढ़ाबै कछु नहीं ब्राहमन भक्ति ना जान हिंदी मीनिंग

पढ़ि पढ़ाबै कछु नहीं, ब्राहमन भक्ति ना जान
व्याहै श्राधै कारनै, बैठा सुन्दा तान।

Padhi Padhave Kachhu Nahi, Brahman Bhakti Jan,
Vyave Shradhe Karane, Baitha Sunda Taan.
 
 
पढ़ि पढ़ाबै कछु नहीं ब्राहमन भक्ति ना जान हिंदी मीनिंग Padhi Padhave Kachhu Nahi Meaning

कबीर के दोहे के शब्दार्थ

कबीर साहेब ने ढोंगी पंडितों पर व्यंग्य किया है की वे पढने और पढ़ाने में कोई रूचि नहीं रखते हैं ये सब तो ढोंग ही हैं। ऐसे अज्ञानी ब्राह्मण भक्ति को नहीं जान पाते हैं। ऐसा ढोंगी ब्राह्मण तो शादी विवाह या श्राद्ध में कुछ दान पाने के लिए अपने पेट को, सूंड को तां कर बैठा है। आशय है की मुंह फाड़ कर वह अपने स्वार्थ के लिए ग्यानी बनाने का स्वांग रचता है। इस दोहे में, ब्राह्मणों की आलोचना कर रहे हैं। वे कह रहे हैं कि ब्राह्मण पढ़ते पढ़ाते कुछ भी नहीं हैं, और भक्ति के बारे में कुछ भी नहीं जानते हैं। फिर भी, वे शादी-विवाह या श्राद्धकर्म कराने में लोभ वश मुँह फाड़ कर बैठे रहते हैं। कवि का कहना है कि ब्राह्मणों को अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए।
Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं कबीर के दोहों को अर्थ सहित, कबीर भजन, आदि को सांझा करती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें

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