भक्ति गेंद चौगान की भावै कोइ लै लाय हिंदी मीनिंग
भक्ति गेंद चौगान की भावै कोइ लै लाय हिंदी मीनिंग Bhakti Chogan Ki Meaning : Kabir Ke Dohe Hindi Arth/Bhavarth
भक्ति गेंद चौगान की, भावै कोइ लै लाय |कहैं कबीर कुछ भेद नहिं, कहाँ रंक कहँ राय ||
Bhakti Gend Chougan Ki, Bhave Koi Le Laay.
Kahe Kabir Kuch Bhed Nahi, Kaha Rank Kaha Ray.
कबीर के दोहे का हिंदी मीनिंग (अर्थ/भावार्थ) Kabir Doha (Couplet) Meaning in Hindi
इस दोहे में कबीर साहेब भक्ति के महत्व और सार्वभौमिकता पर प्रकाश डालते हैं। वे कहते हैं कि भक्ति तो मैदान में बल्ले और गेंद के खेल के समान सुलभ रूप से उपलब्ध है, जिसे अच्छी लगे, ले जाये। इसमें धनी-गरीब, ऊँच-नीच का भेदभाव नहीं है, भले ही कोई राजा हो या कोई रैंक (भिखारी ) हो. आशय है की भक्ति कोई दुर्लभ वस्तु नहीं है, भक्ति तो सहज रूप से उपलब्ध है इसे कोई अमीर या गरीब कोई भी प्राप्त कर सकता है। लेकिन आशय है की भक्ति को कोई सहज रूप से करे तो अवश्य ही पूर्ण कर सकता है।
शब्दार्थ Word Meaning Kabir Doha
- भक्ति : ईश्वर की भक्ति
- गेंद : खेलने की गोल गेंद (यहाँ आशय भक्ति से है )
- चौगान की : बल्ले और गेंद का खेल।
- भावै : ये तो।
- कोइ लै लाय : कोई भी ले सकता है।
- कहैं कबीर : कबीर साहेब सन्देश देते हैं।
- कुछ भेद नहिं : इसमें कोई भेद नहीं है।
- कहाँ रंक कहँ राय : कहाँ तो राजा और कहाँ भिखारी।
अतः इस दोहे में कबीर साहेब स्थापित मान्यताओं का विरोध करते हैं जिसमे वे भक्ति को कोई दुर्लभ वस्तु नहीं मानते हैं, इसके लिए किसी किताबी ज्ञान, भाषा विशेष के ज्ञान की आवश्यकता नहीं होती है. इसे तो कोई भी प्राप्त कर सकता है. लेकिन यदि कोई भी इसे सहज रूप से ग्रहण करता है तो यह आवश्यक नहीं है की कोई भिखारी है या राजा है. किसी भी धार्मिक ग्रन्थ की कोई आवश्यकता नहीं है, किसी भी भाषा विशेष, आडम्बर या रीती रिवाजों से परे भक्ति तो सहज है, सर्व सुलभ प्राप्त है.
Author - Saroj Jangir
दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं कबीर के दोहों को अर्थ सहित, कबीर भजन, आदि को सांझा करती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें। |