कबीर मनहिं गयन्द है अंकुश दै दै राखु मीनिंग Kabir Manahi Gayand Hai Meaning : Kabir Ke Dohe Hindi Arth/Bhavarth
कबीर मनहिं गयन्द है, अंकुश दै दै राखु |
विष की बेली परिहारो, अमृत का फल चाखू ||
Kabir Manahi Gayand Hai, Ankush De De Rakhu,
Vish Ki Beli Prihari, Amrit Ka Fhal Chakhu.
कबीर के दोहे का हिंदी मीनिंग (अर्थ/भावार्थ) Kabir Doha (Couplet) Meaning in Hindi
कबीर साहेब अनेकों स्थान पर सन्देश दिया है की हरी भक्ति और जीवन को सात्विक तरीके से यापन के लिए मन को नियंत्रित करना परम आवश्यक है। इस दोहे में
कबीर साहेब मन को एक मतवाले हाथी की भाँती प्रदर्शित करते हुए कहते हैं की इसे अंकुश के माध्यम से नियंत्रित करना आवश्यक है। माया जनित व्यवहार विष की बेल की भाँती हैं, अतः इस बेल को त्यागकर भक्ति रूपी अमृत फल का पान करो, चखो। इस दोहे में कबीर दास जी मन की वृत्तियों और उसके नियंत्रण के बारे में बात करते हैं। इस दोहे का पहला भाग कहता है कि मन एक मस्त हाथी है। इसका अर्थ है कि मन एक शक्तिशाली शक्ति है जो हमें अपनी इच्छानुसार चलाती है। हमें अपने मन को ज्ञान के अंकुश से नियंत्रित करना चाहिए। इसका अर्थ है कि हमें अपने मन को ज्ञान के द्वारा अपने नियंत्रण में रखना चाहिए। कबीर दास जी इस दोहे के माध्यम से हमें यह सीख देते हैं कि हमें अपने मन को नियंत्रित करना चाहिए। जब हम अपने मन को नियंत्रित कर लेते हैं, तो हम अपने जीवन में सफलता और सुख प्राप्त करते हैं।