कहा कियौ हम आइ करि कहा कहैंगे जाइ हिंदी मीनिंग Kaha Kiyo Hum Aai Meaning : kabir Ke Dohe Hindi Arth/Bhavarth
कहा कियौ हम आइ करि, कहा कहैंगे जाइ।
इत के भये न उत के, चाले मूल गंवाइ॥
Kaha Kiyo Hum Aai Kari, Kaha Kahenge Jaai,
It Ke Bhaye Na Ut Ke, Chale Mool Gavaai.
कबीर के दोहे का हिंदी मीनिंग (अर्थ/भावार्थ) Kabir Doha (Couplet) Meaning in Hindi
व्यक्ति कहाँ से आया है, उसका उद्देश्य क्या है और वह कहाँ को लौट जाना है. साहेब कहते हैं की मानव जीवन का मूल उद्देश्य तो इश्वर के नाम का सुमिरन करना, लोगों की भलाई करना और मोक्ष की प्राप्ति करना था लेकिन इस संसार में जन्म लेकर वह भटक जाता है. वह माया जनित कार्यों में लग जाता है. माया को एकत्रित करना, मान सम्मान के लिए कार्य करना आदि में वह लिप्त हो जाता है और भक्ति से विमुख हो जाता है.
ऐसे में साहेब कहते हैं की ऐसा व्यक्ति अज्ञानता के कारण अपने मूल (मानव जीवन) को ही गँवा कर एक रोज खाली हाथ चल देता है.
अतः इस दोहे का भाव है की व्यक्ति को माया के प्रभाव को समझना चाहिए और शुद्ध हृदय से इश्वर की भक्ति करनी चाहिए. कबीर साहेब ने इस दोहे में अत्यंत ही गूढ़ रहस्य को बताया है की कबीर इस दोहे में हमें अपने जीवन के उद्देश्य के बारे में सोचने के लिए कहते हैं। वे कहते हैं कि अगर हम अपने जीवन में कुछ भी अच्छा नहीं कर पाए हैं, तो भगवान के सामने क्या कहेंगे? पहली पंक्ति में, कबीर कहते हैं कि हमने यहाँ आकर क्या किया? कबीर कहते हैं कि हमने अपने जीवन में कुछ भी अच्छा नहीं किया है। दूसरी पंक्ति में, कबीर कहते हैं कि साईं के दरबार में जाकर क्या कहेंगे? कबीर कहते हैं कि भगवान के सामने हम अपना बचाव कैसे करेंगे? तीसरी पंक्ति में, कबीर कहते हैं कि न तो यहाँ के हुए और न वहाँ के ही। कबीर कहते हैं कि हम न तो इस दुनिया में कुछ हासिल कर पाए, और न ही परलोक में।
चौथी पंक्ति में, कबीर कहते हैं कि दोनों ही ठौर बिगाड़ बैठे। कबीर कहते हैं कि हमने अपने जीवन को दोनों ही जगह बर्बाद कर दिया है। पांचवीं पंक्ति में, कबीर कहते हैं कि मूल भी गवाँकर इस बाजार से अब हम बिदा ले रहे हैं। कबीर कहते हैं कि हम अपने जीवन का मूल उद्देश्य भी खो बैठे हैं, और अब हमें इस दुनिया से जाना होगा।
ऐसे में साहेब कहते हैं की ऐसा व्यक्ति अज्ञानता के कारण अपने मूल (मानव जीवन) को ही गँवा कर एक रोज खाली हाथ चल देता है.
अतः इस दोहे का भाव है की व्यक्ति को माया के प्रभाव को समझना चाहिए और शुद्ध हृदय से इश्वर की भक्ति करनी चाहिए. कबीर साहेब ने इस दोहे में अत्यंत ही गूढ़ रहस्य को बताया है की कबीर इस दोहे में हमें अपने जीवन के उद्देश्य के बारे में सोचने के लिए कहते हैं। वे कहते हैं कि अगर हम अपने जीवन में कुछ भी अच्छा नहीं कर पाए हैं, तो भगवान के सामने क्या कहेंगे? पहली पंक्ति में, कबीर कहते हैं कि हमने यहाँ आकर क्या किया? कबीर कहते हैं कि हमने अपने जीवन में कुछ भी अच्छा नहीं किया है। दूसरी पंक्ति में, कबीर कहते हैं कि साईं के दरबार में जाकर क्या कहेंगे? कबीर कहते हैं कि भगवान के सामने हम अपना बचाव कैसे करेंगे? तीसरी पंक्ति में, कबीर कहते हैं कि न तो यहाँ के हुए और न वहाँ के ही। कबीर कहते हैं कि हम न तो इस दुनिया में कुछ हासिल कर पाए, और न ही परलोक में।
चौथी पंक्ति में, कबीर कहते हैं कि दोनों ही ठौर बिगाड़ बैठे। कबीर कहते हैं कि हमने अपने जीवन को दोनों ही जगह बर्बाद कर दिया है। पांचवीं पंक्ति में, कबीर कहते हैं कि मूल भी गवाँकर इस बाजार से अब हम बिदा ले रहे हैं। कबीर कहते हैं कि हम अपने जीवन का मूल उद्देश्य भी खो बैठे हैं, और अब हमें इस दुनिया से जाना होगा।