गोविंदं भज मूढमते लिरिक्स Govindam Bhaj Mudhmate Lyrics

गोविंदं भज मूढमते लिरिक्स Govindam Bhaj Mudhmate Lyrics



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भज गोविंदम् आदि शंकराचार्य द्वारा रचित है। यह वेदान्त दर्शन का सार प्रस्तुत करता है और मनुष्यों को जीवन के उद्देश्य पर विचार करने और ईश्वर भक्ति के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करता है। मृत्यु कभी भी आ सकती है और तब किसी भी सांसारिक संपत्ति की कोई कीमत नहीं होगी। इसलिए, हमें ईश्वर की भक्ति में अपना जीवन लगाना चाहिए। धन, धन-संपत्ति, यौवन, और शरीर सब कुछ नश्वर हैं। इसलिए, इनमें आसक्ति रखना व्यर्थ है। ईश्वर भक्ति ही हमें वास्तविक सुख और मुक्ति प्रदान कर सकती है।
स्थापकाय च धर्मस्य,
सर्वधर्मस्वरूपिणे,
अवतारवरिष्ठाय,
रामकृष्णाय ते नमः,
भज गोविंदं भज गोविंदं,
गोविंदं भज मूढमते।

संप्राप्ते सन्निहिते काले,
नहि नहि रक्षति डुकृंकरणे,
भज गोविंदं भज गोविंदं,
गोविंदं भज मूढमते।

मूढ जहीहि धनागमतृष्णां,
कुरु सद्बुद्धिं मनसि वितृष्णाम्,
यल्लभसे निजकर्मोपात्तं,
वित्तं तेन विनोदय चित्तम्,
भज गोविंदं भज गोविंदं,
गोविंदं भज मूढमते।

यावद्वित्तोपार्जनसक्तः,
तावन्निजपरिवारो रक्तः,
पश्चाज्जीवति जर्जरदेहे,
वार्तां कोऽपि न पृच्छति गेहे,
भज गोविंदं भज गोविंदं,
गोविंदं भज मूढमते।

मा कुरु धन-जन-यौवन-गर्वं,
हरति निमेषात्कालः सर्वम्,
मायामयमिदमखिलं हित्वा,
ब्रह्मपदं त्वं प्रविश विदित्वा,
भज गोविंदं भज गोविंदं,
गोविंदं भज मूढमते।

सुरमंदिर-तरु-मूल-निवासः,
शय्या भूतलमजिनं वासः,
सर्व-परिग्रह-भोगत्यागः,
कस्य सुखं न करोति विरागः,
भज गोविंदं भज गोविंदं,
गोविंदं भज मूढमते।

भगवद्गीता किंचिदधीता,
गंगाजल-लवकणिका पीता,
सकृदपि येन मुरारि,
सकृदपि येन मुरारिसमर्चा,
क्रियते तस्य यमेन न चर्चा,
भज गोविंदं भज गोविंदं,
गोविंदं भज मूढमते।

पुनरपि जननं पुनरपि मरणं,
पुनरपि जननीजठरे शयनम्,
इह संसारे बहुदुस्तारे,
कृपयाऽपारे पाहि मुरारे,
भज गोविंदं भज गोविंदं,
गोविंदं भज मूढमते।

गेयं गीता-नामसहस्रं,
ध्येयं श्रीपति-रूपमजस्रम्,
नेयं सज्जन-संगे चित्तं,
देयं दीनजनाय च वित्तम्,
भज गोविंदं भज गोविंदं,
गोविंदं भज मूढमते।

अर्थमनर्थं भावय नित्यं,
नास्तिततः सुखलेशः सत्यम्,
पुत्रादपि धनभाजां भीतिः,
सर्वत्रैषा विहिता रीतिः,
भज गोविंदं भज गोविंदं,
गोविंदं भज मूढमते।

गुरुचरणांबुज-निर्भरभक्तः,
संसारादचिराद्भव मुक्तः,
सेंद्रियमानस-नियमादेवं,
द्रक्ष्यसि निजहृदयस्थं देवम्,
भज गोविंदं भज गोविंदं,
गोविंदं भज मूढमते।

संप्राप्ते सन्निहिते काले,
नहि नहि रक्षति डुकृंकरणे,
भज गोविंदं भज गोविंदं,
गोविंदं भज मूढमते।


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