राधे राधे जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज
राधे राधे जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज युगल माधुरी
राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे।
प्रेम रूप रस राधे राधे राधे।
राधे राधे प्रेम अगाधे राधे राधे।
भूलूँ न तोहिं पल आधे राधे राधे।
तुम भी न भूलो मोहिं राधे राधे राधे।
प्रेम सुधा दे राधे राधे राधे।
छोड़ें नहिं पाछा अब राधे राधे राधे।
तू ही रति गति मति राधे राधे राधे।
अगति की गति तू ही राधे राधे राधे।
पतितपावनी राधे राधे राधे।
छवि को भी छवि दे राधे राधे राधे।
कृपाकारिणी राधे राधे राधे।
अधम उधारिनि राधे राधे राधे।
प्रेम रूप रस राधे राधे राधे।
राधे राधे प्रेम अगाधे राधे राधे।
भूलूँ न तोहिं पल आधे राधे राधे।
तुम भी न भूलो मोहिं राधे राधे राधे।
प्रेम सुधा दे राधे राधे राधे।
छोड़ें नहिं पाछा अब राधे राधे राधे।
तू ही रति गति मति राधे राधे राधे।
अगति की गति तू ही राधे राधे राधे।
पतितपावनी राधे राधे राधे।
छवि को भी छवि दे राधे राधे राधे।
कृपाकारिणी राधे राधे राधे।
अधम उधारिनि राधे राधे राधे।
राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे | युगल माधुरी | Ft.Akhileshwari Didi
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भक्ति पद श्रीराधा रानी की महिमा का संगीतमय गुणगान है, जिसमें प्रेम, भक्ति और पूर्ण समर्पण की भावना प्रकट की गई है। इसमें भक्त निरंतर "राधे राधे" का जप करते हुए अपने हृदय की गहराइयों से श्रीराधा को पुकार रहे हैं। वे श्रीराधा को प्रेम, रस, और कृपा की अधिष्ठात्री बताते हुए कहते हैं कि उनका प्रेम अथाह और अमिट है। वे यह भी प्रार्थना करते हैं कि वे कभी श्रीराधा को न भूलें और न ही श्रीराधा उन्हें भूलें। भक्त श्रीराधा से प्रेमरस की अमृतधारा की याचना करते हैं और आग्रह करते हैं कि वे उन्हें कभी छोड़ें नहीं।
इस पद में श्रीराधा को "अगति की गति," "पतितपावनी," "कृपाकारिणी," और "अधम उद्धारिणी" कहा गया है, जो दर्शाता है कि वे सभी जीवों की गति हैं, पापियों को तारने वाली हैं, और उनकी कृपा से अधम भी उन्नत हो सकते हैं। अंत में, श्रीराधा को "छवि को भी छवि देने वाली" कहा गया है,
इस पद में श्रीराधा को "अगति की गति," "पतितपावनी," "कृपाकारिणी," और "अधम उद्धारिणी" कहा गया है, जो दर्शाता है कि वे सभी जीवों की गति हैं, पापियों को तारने वाली हैं, और उनकी कृपा से अधम भी उन्नत हो सकते हैं। अंत में, श्रीराधा को "छवि को भी छवि देने वाली" कहा गया है,
रचयिता : जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज
पुस्तक : युगल माधुरी
कीर्तन संख्या : 32
पृष्ठ संख्या : 114
सर्वाधिकार सुरक्षित © जगद्गुरु कृपालु परिषत्
पुस्तक : युगल माधुरी
कीर्तन संख्या : 32
पृष्ठ संख्या : 114
सर्वाधिकार सुरक्षित © जगद्गुरु कृपालु परिषत्
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Author - Saroj Jangir
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