बरसाने आजा प्यारे धूम मची है
बरसाने आजा प्यारे धूम मची है
आजा सखी सँवारे दे नाल नचिये,
हो आज नहीं जे नचना ते फेर कदो नचना,
बरसाने आजा प्यारे धूम मची है।
बरसाने दी उची अटारी,
जिथे आनदी दुनिया सारी,
मेरी आँख सँवारे दे नाल लड़ी है,
आजा सखी सँवारे दे नाल नचिये।
सोहना मेरा बांके बिहारी,
वेख सोहने न दिल गई हारी,
मेरे बांके बिहारी मैं दिल गई हारी,
तेरे नाम दी महंगी मेरे हाथ रची है,
आजा सखी सँवारे दे नाल नचिये।
ढोल वजावा भंगड़े पावा,
नच नच मह ता मस्त हो ज्वा,
ला ली सोने नाल प्रीत सच्ची है,
आजा सखी सँवारे दे नाल नचिये।
Saaware De Naal Nachiye ! Popular Krishna Bhajan ! Hindi Devotional Bhajan ! बृज रसिक कनिष्क भैय्या
बरसाने की गलियों में प्रभु के प्रेम का उल्लास छाया है, मानो हर धड़कन उनके नाम का जश्न मना रही हो। यह पुकार है उस हृदय की, जो सखी को बुलाता है कि आओ, बांके बिहारी के रंग में रंगकर नाचें। यह क्षण ऐसा है, जो प्रेम और भक्ति के संगम में डूबने का आह्वान करता है—अब न नाचें, तो कब? जैसे कोई उत्सव में शामिल होने को आतुर हो, वही यह भाव है।
उच्ची अटारी पर खड़ा बरसाना, जहाँ सारी दुनिया प्रभु के दर्शन में खोई है, वहाँ भक्त की आँखें बस साँवरे की एक झलक को तरसती हैं। यह प्रेम की वह डोर है, जो मन को बांके बिहारी से बाँध लेती है। जैसे कोई प्रिय की राह देखता हो, वही उसकी तड़प है—दिल हार चुका है, अब बस उनकी सूरत की चाह है।
ढोल की थाप और भंगड़े की मस्ती में भक्त का मन मस्त हो उठता है। यह नाच केवल तन का नहीं, आत्मा का उत्सव है, जो प्रभु के नाम की मेहंदी से सजा है। एक संत यही कहेगा कि प्रभु का नाम ही सच्ची प्रीत है, जो कभी फीकी नहीं पड़ती। एक चिंतक देखता है कि यह उल्लास जीवन की नश्वरता को भुलाकर अनंत में डूबने का मार्ग है। और एक धर्मगुरु सिखाता है कि भक्ति का आनंद वही पाता है, जो मन से प्रभु को अपनाए।
बरसाने का यह बुलावा प्रभु के प्रेम में खो जाने की विनती है। यह निमंत्रण है कि आओ, साँवरे के साथ नाचें, क्योंकि उनके बिना हर उत्सव अधूरा है।
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Author - Saroj Jangir
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