कान्हा रे तू राधा बन जा भूल पुरुष का मान

कान्हा रे तू राधा बन जा भूल पुरुष का मान

 
कान्हा रे तू राधा बन जा भूल पुरुष का मान

कान्हा रे तू राधा बन जा,
भूल पुरुष का मान,
तब होगा तुझको राधा की,
पीड़ा का अनुमान रे,
कान्हा रे, कान्हा रे।।

तू चंचल है, तू क्या जाने,
नारी मन की बात,
क्यों रहती है राधा के दो,
नैनों में बरसात,
ओ कान्हा रे, कान्हा रे,
तू ही जब ये पीर न जाना,
फिर क्या तेरा ज्ञान,
कब होगा तुझको राधा की,
पीड़ा का अनुमान रे,
कान्हा रे, कान्हा रे।।

प्रेम दीवानी राधा को तू,
माखन से न तोल,
राधा का मन टूट गया तो,
क्या होगा रे बोल,
ओ कान्हा रे, कान्हा रे,
देर नहीं है तज दे कान्हा,
अपना यह अभिमान,
कब होगा तुझको राधा की,
पीड़ा का अनुमान रे,
कान्हा रे, कान्हा रे।।

तेरे कारण राधा का यह,
हाल हुआ रे श्याम,
राधा के अधरों पे रहता,
पल-पल तेरा नाम,
ओ कान्हा रे, कान्हा रे,
ऐसे तो न बन राधा के,
दुख से तू अनजान,
कब होगा तुझको राधा की,
पीड़ा का अनुमान रे,
कान्हा रे, कान्हा रे।।

कान्हा रे तू राधा बन जा,
भूल पुरुष का मान,
तब होगा तुझको राधा की,
पीड़ा का अनुमान रे,
कान्हा रे, कान्हा रे।।



Kanha Re Tu Radha Ban Ja

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Provided to YouTube by Universal Music Group
Kanha Re Tu Radha Ban Ja · Anup Jalota
Bhajan Teerth Vol . 2
℗ 1988 Universal Music India Pvt. Ltd.
Released on: 1988-01-01
Composer: Shekhar Kalyan
Author: Raajesh Johri
 
इस रचना में भक्त का श्रीकृष्ण के प्रति विश्वास और उनकी शहनशाही के साथ-साथ उनकी रुसवाई को स्वीकार करने की भावना भी झलकती है। भक्त जानता है कि प्रभु की कृपा अनंत है, पर वह अपनी कमियों और भूलों के लिए क्षमा भी माँगता है। वह प्रभु को खिवैया के रूप में देखता है, जो उसकी नैया को भवसागर से पार लगाएगा। श्रीकृष्ण का दयालु और शक्तिशाली स्वरूप, जो त्रिभुवन का रचयिता है, भक्त के लिए वह आश्रय है, जहाँ वह अपनी चौखट पर पनाह पाने की आशा रखता है। यह भक्ति भक्त को सिखाती है कि सच्चे मन से की गई प्रार्थना और प्रभु के प्रति पूर्ण समर्पण ही उसे जीवन के संकटों से उबार सकता है। यह रचना भक्तों को प्रेरित करती है कि वे श्रीकृष्ण के चरणों में अपनी हर चिंता और भूल को समर्पित कर दें, क्योंकि उनकी कृपा से ही जीवन की नैया उस पार पहुँचती है। 
 
Saroj Jangir Author Admin - Saroj Jangir

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