वाटां लंबियाँ ते रस्ता पहाड़ दा तुरे जाते गुरां दे दो लाल जी

वाटां लंबियाँ ते रस्ता पहाड़ दा तुरे जाते गुरां दे दो लाल जी

 
वाटां लंबियाँ ते रस्ता पहाड़ दा तुरे जाते गुरां दे दो लाल जी

वाटां लंबियाँ ते रस्ता पहाड़ दा, तुरे जाते गुरां दे दो लाल जी,
सरसा नदी ते विछोड़ा पै गया, उस वेले दा सुन लो हाल जी।।

रात हनेरी, बिजली लिश्के, राह जंगलां दे पै गए ने,
रेशम नालों, सोहणा सरीर नूं, दुःखड़े सहिणे पै गए ने,
छोटी उमर दे दोनों बाल जी, माता गुजरी ओहना दे नाल जी,
सरसा नदी ते विछोड़ा पै गया।।

कहर दी सरदी, हड्डियां चीरे, बाल निणाणे कंपदे ने,
उंगली फड़ के, मां गुजरी दी, राह पत्थरां दे लंघदे ने,
कदो अजीत ते जुझार वीरे आणगे, माता गुजरी नूं पुछदे सवाल जी,
सरसा नदी ते विछोड़ा पै गया।।

उमर निणाणी, दो बच्चियां दी, इक मां बुढ़्ढी साथ करे,
बे दोषे इहना, निर्दोषां दा, कौण है जो इंसाफ करे,
कैसी होणी ने खेड़ी चाल जी, गंगू पापी ओहना दे नाल जी,
सरसा नदी ते विछोड़ा पै गया।।

ਵਾਟਾਂ ਲੰਮੀਆ ਤੇ ਰਸਤਾ ਪਹਾੜ ਦਾ, ਤੁਰੇ ਜਾਂਦੇ ਗੁਰਾਂ ਦੇ ਦੋ ਲਾਲ ਜੀ
ਸਰਸਾ ਨਦੀ ਤੇ ਵਿਛੋੜਾ ਪੈ ਗਿਆ, ਉਸ ਵੇਲੇ ਦਾ ਸੁਣ ਲਓ ਹਾਲ ਜੀ

ਰਾਤ ਹਨੇਰੀ, ਬਿਜਲੀ ਲਿਸ਼ਕੇ, ਰਾਹ ਜੰਗਲਾ ਦੇ ਪੈ ਗਏ ਨੇ
ਰੇਸ਼ਮ ਨਾਲੋਂ, ਸੋਹਲ ਸਰੀਰ ਨੂੰ, ਦੁੱਖੜੇ ਸਹਿਣੇ ਪੈ ਗਏ ਨੇ
ਛੋਟੀ ਉਮਰ ਦੇ ਦੋਨੋ ਬਾਲ ਜੀ, ਮਾਤਾ ਗੁਜਰੀ ਓਹਨਾ ਦੇ ਨਾਲ ਜੀ
ਸਰਸਾ ਨਦੀ ਤੇ ਵਿਛੋੜਾ ਪੈ ਗਿਆ...

ਕਹਿਰ ਦੀ ਸਰਦੀ, ਹੱਡੀਆਂ ਚੀਰੇ, ਬਾਲ ਨਿਆਣੇ ਕੰਬਦੇ ਨੇ
ਉਂਗਲੀ ਫੜ ਕੇ, ਮਾਂ ਗੁਜਰੀ ਦੀ, ਰਾਹ ਪੱਥਰਾਂ ਦੇ ਲੰਘਦੇ ਨੇ
ਕਦੋ ਅਜੀਤ ਤੇ ਜੁਝਾਰ ਵੀਰੇ ਆਣਗੇ,ਮਾਤਾ ਗੁਜਰੀ ਨੂੰ ਪੁਛਦੇ ਸਵਾਲ ਜੀ
ਸਰਸਾ ਨਦੀ ਤੇ ਵਿਛੋੜਾ ਪੈ ਗਿਆ...

ਉਮਰ ਨਿਆਣੀ, ਦੋ ਬੱਚਿਆਂ ਦੀ, ਇੱਕ ਮਾਂ ਬੁਢ਼ੜੀ ਸਾਥ ਕਰੇ
ਬੇ ਦੋਸ਼ੇ ਇਹਨਾ, ਨਿਰਦੋਸ਼ਾ ਦਾ,ਕੌਣ ਹੈ ਜੋ ਇਨਸਾਫ਼ ਕਰੇ
ਕੈਸੀ ਹੋਣੀ ਨੇ ਖੇਡੀ ਚਾਲ ਜੀ, ਗੰਗੂ ਪਾਪੀ ਓਹਨਾ ਦੇ ਨਾਲ ਜੀ
ਸਰਸਾ ਨਦੀ ਤੇ ਵਿਛੋੜਾ ਪੈ ਗਿਆ...



Bhai Harjinder Singh JI | Vatan Lamian Te Rasta Pahar Da

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Track: Vatan Lamian Te Rasta Pahar Da
Album: Vatan Lamian Te Rasta Pahar Da
Singer/Raagi: Bhai Harjinder Singh Ji
Lyricist: Traditional
 
गुरु गोबिंद सिंह जी के दो छोटे साहिबजादों, जोरावर सिंह और फतेह सिंह, और उनकी दादी माता गुजरी जी के सरसा नदी के किनारे हुए वियोग का वर्णन यहाँ पर है। 1704 में आनंदपुर साहिब की घेराबंदी के बाद, गुरु परिवार को सरसा नदी के पास छोड़ना पड़ा। ठंडी, अंधेरी रात में, जंगल और पथरीले रास्तों पर, छोटी उम्र के साहिबजादों और माता गुजरी को कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। कविता में गंगू नामक विश्वासघाती व्यक्ति का भी जिक्र है, जिसने साहिबजादों और माता गुजरी को धोखा दिया, जिसके परिणामस्वरूप साहिबजादों को सरहिंद में शहीद कर दिया गया। सिख समुदाय के बलिदान, साहस और विश्वास की भावना को उजागर करती है। 
 
Saroj Jangir Author Admin - Saroj Jangir

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