मोहे लागी लगन मनमोहन से भजन

मोहे लागी लगन मनमोहन से भजन

 
मोहे लागी लगन मनमोहन से भजन

मोहे लागी लगन मनमोहन से,
छोड़ घरबार ब्रजधाम में आय बैठी,
मोरे नैनों से निंदिया चुराई जिसने,
मैं तो नैनां उसी से लगाए बैठी।

कारो कन्हैया सो काजल लगाईके,
गालों पे गोविन्द गोविन्द लिखाइके,
गोकुल की गलियों में गोपाल ढूंढूं,
मैं भाँवरी अपनी सुधबुध गँवाईके,
मिल जाए रास बिहारी मैं जाऊं वारी।

कहदूँ नटखट से बात हिया की सारी,
बात समझेगो मेरी बिहारी कभी,
ये शर्त मैं खुदी से लगाई बैठी,
ऐसी लागी लगन मनमोहन से,
छोड़ घरबार बृजधाम आय बैठी।

जो हो सो हो अब ना जाऊं पलट के,
बैठी हूँ कान्हा की राहों में डट के,
जबतक ना मुखड़ा दिखाए सलोना,
काटूंगी चक्कर यूहीं वंशीवट के,
उस मोरमुकुट वाले से,
गोविंदा से ग्वाले से,
मन बाँध के रखना है उस मतवाले से,
जाने आ जाये कब चाँद वो सामने,
भोर से ही मैं खुद को सजाए बैठी,
मोहे लागी लगन मनमोहन से,
छोड़ घरबार बृजधाम आय बैठी।

मोरे नैनों से निंदिया चुराई जिसने,
मैं तो नयना उसी से लगाए बैठी,
मोहे लागी लगन मनमोहन से,
छोड़ घरबार बृजधाम आय बैठी।

हरे कृष्णा हरे कृष्णा,
कृष्णा कृष्णा हरे हरे,
हरे रामा हरे रामा,
रामा रामा हरे हरे।


Mohe Lagi Lagan Manmohan Se

Singer - Devi Chitralekhaji
Music - Bharat Kamal
Lyrics - Ravi Chopra
 
गोकुल की गलियों में, वंशीवट के चौराहों पर, ब्रज के कुंजों में—हर जगह केवल गोविन्द की झलक ढूंढने की तल्लीनता है। गालों पर ‘गोविन्द’ लिखाए, मन में रास बिहारी की चित्रावली सजाए, वह अनंत प्रतीक्षा भी मधुर लगती है क्योंकि उसमें कृष्ण-स्मरण का अमृत बहता है। यह लगन ऐसी है कि अब वापसी का विचार भी नहीं, बस वहीं रहकर उनके आगमन की राह देखना है।
 
 
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