समचाणे की माटी पे हटके फुल खिला जा

समचाणे की माटी पे हटके फुल खिला जा मेरे गुरु मुरारी

समचाणे की माटी पे,
हटके फूल खिला जा।
मेरे गुरु मुरारी आजा,
मेरे गुरु मुरारी आजा।।

अंतरा 1 :
हो समचाणे में जाग ने,
मैं किसने बात सुनाऊँ।
आँख्यां में महा नीर भरा स,
कैसे मन समझाऊँ।।
तेरी याद हो मेरे सतगुरू,
तेरी याद घणी आवे।
आ के ने समझा जया,
मेरे गुरु मुरारी आजा।।

अंतरा 2 :
मेंहदीपुर में रूका पट्ठ था,
गुरु मुरारी आगे।
छोटे-बड़े सब भाई बंधु,
सब्र का मुक्का लागे।।
सब रोवं सैं हो मेरे सतगुरू,
सब रोवं नर और नारी।
आ के ने समझा जया,
मेरे गुरु मुरारी आजा।।

अंतरा 3 :
भगवान बराबर समझूं था,
फेर क्यों मुझसे रुठे हो।
गुरु-शिष्य का नाता ऐसा,
तोड़े तै ना टूटे हो।।
तू देव हो मेरे सतगुरू,
तू देव रूचिधारी।
आ के ने समझा जया,
मेरे गुरु मुरारी आजा।।

अंतरा 4 :
जब-जब तेरो ध्यान धरूं,
तेरी याद घणी आवे।
सूरजमल भक्त भी रोवन लाग्या,
गुरु माता समझावै।।
रोहित शर्मा हो मेरे सतगुरू,
रोहित शर्मा तेरो पुजारी।
भक्ति में चकरा जया,
मेरे गुरु मुरारी आजा।।

समापन :
समचाणे की माटी पे,
हटके फूल खिला जा।
मेरे गुरु मुरारी आजा,
मेरे गुरु मुरारी आजा।।



Samchana ki mati pe hatke phool khila ja

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Saroj Jangir Author Admin - Saroj Jangir

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