थारो दूध छे केवल ब्रम्ह लिरिक्स

थारो दूध छे केवल ब्रम्ह


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थारो दूध छे केवल ब्रम्ह,
संजोणी हरी की कामधेनु हो।

कामधेनु तो आकाश रहती,
ह्रदय चारों चरती,
तिरवेणी को पाणी पीती,
भाई रे उनी मुनि करत गोठाण।

साँझ पड़े संजोणी घर आवे,
ओहम भजतों तानो,
मन वाछरू उल्टो ध्यावे,
भाई रे मेल्यों ते प्रेम को पानों।

सतगुरु आसण धुवण बैठे,
तुरिया दोहणी हाथ,
अनहद के घर घुम्मर बाजे,
दुह ते अखंड दिन रात।

ब्रम्ह आगन पर दूध तपायो,
क्षमा शांति लव लागी,
अरद उरद म दही जमायो,
ब्रम्ह म ब्रम्ह मिलाय।

ओहम शब्द की रवि बणाई,
घट अंदर लव लागी,
माखन माखन संत बिलोयो,
भाई रे छांछ जगत भरताय।

कामधेनु सतगुरु की महिमा,
बिरला जण कोई पावे,
कहे जण सुंदर गुरु की कृपा,
भाई रे जोत माँ जोत समाय।


थारो दूध छे केवल ब्रह्म संजोणी हरी की कामधेनु हो | रमेश महाराज | सिंगाजी आरती | निमाड़ी भजन संग्रह |


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