अब सौंप दिया इस जीवन का भजन
अब सौंप दिया इस जीवन का Aub Soup Diya Is Jivan Ka Sab Bhar
भक्त ने अपने पूरे जीवन को भगवान के चरणों में समर्पित कर दिया है, और इस प्रक्रिया में पूर्ण आत्मसमर्पण, शांति, और ईश्वर पर अटूट विश्वास व्यक्त करता है.
अब सौंप दिया इस जीवन का,
सब भार तुम्हारे हाथों में,
है जीत तुम्हारे हाथों में,
और हार तुम्हारे हाथों में।
मेरा निश्चय बस एक यही,
एक बार तुम्हें पा जाऊं मैं,
अर्पण करदूं दुनिया भर का,
सब प्यार तुम्हारे हाथों में।
जो जग में रहूं तो ऐसे रहूं,
ज्यों जल में कमल का फूल रहे,
मेरे सब गुण दोष समर्पित हो,
करतार तुम्हारे हाथों में।
यदि मानव का मुझे जन्म मिले,
तो तव चरणों का पुजारी बनूं,
इस पूजक की एक एक रग का,
हो तार तुम्हारे हाथों में।
जब जब संसार का कैदी बनूं,
निष्काम भाव से कर्म करूं,
फिर अंत समय में प्राण तजूं,
निरंकार तुम्हारे हाथों में।
मुझ में तुझ में बस भेद यही,
मैं नर हूं तुम नारायण हो,
मैं हूं संसार के हाथों में,
संसार तुम्हारे हाथों में।
अब सौंप दिया इस जीवन का,
सब भार तुम्हारे हाथों में,
है जीत तुम्हारे हाथों में,
और हार तुम्हारे हाथों में।
सब भार तुम्हारे हाथों में,
है जीत तुम्हारे हाथों में,
और हार तुम्हारे हाथों में।
मेरा निश्चय बस एक यही,
एक बार तुम्हें पा जाऊं मैं,
अर्पण करदूं दुनिया भर का,
सब प्यार तुम्हारे हाथों में।
जो जग में रहूं तो ऐसे रहूं,
ज्यों जल में कमल का फूल रहे,
मेरे सब गुण दोष समर्पित हो,
करतार तुम्हारे हाथों में।
यदि मानव का मुझे जन्म मिले,
तो तव चरणों का पुजारी बनूं,
इस पूजक की एक एक रग का,
हो तार तुम्हारे हाथों में।
जब जब संसार का कैदी बनूं,
निष्काम भाव से कर्म करूं,
फिर अंत समय में प्राण तजूं,
निरंकार तुम्हारे हाथों में।
मुझ में तुझ में बस भेद यही,
मैं नर हूं तुम नारायण हो,
मैं हूं संसार के हाथों में,
संसार तुम्हारे हाथों में।
अब सौंप दिया इस जीवन का,
सब भार तुम्हारे हाथों में,
है जीत तुम्हारे हाथों में,
और हार तुम्हारे हाथों में।
Ab Soop Diya Es Jivan Ka Sab bhaar Tumhare Narayan Swami Bhajan - Gujarati Mi
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श्री नारायण स्वामी जी द्वारा रचित भजन "अब सौंप दिया इस जीवन का" भक्त के परमात्मा के प्रति पूर्ण समर्पण और अटूट विश्वास का सुंदर चित्रण करता है। भक्त अपने जीवन का समस्त भार—जीत, हार, गुण, दोष और सांसारिक बंधन—प्रभु के चरणों में सौंप देता है, यह विश्वास रखते हुए कि सब कुछ उनके हाथों में है। उसका एकमात्र संकल्प प्रभु को पाना और सारा प्रेम उन्हें अर्पित करना है। वह कामना करता है कि संसार में रहते हुए वह कमल के फूल की तरह निष्कलंक रहे, जो जल में रहकर भी उससे अछूता रहता है। भक्त प्रार्थना करता है कि यदि उसे मानव जन्म मिले, तो वह प्रभु का पुजारी बने, जिसकी हर सांस उनके प्रति समर्पित हो। वह निष्काम कर्म करने और अंत में अपने प्राण निरंकार के चरणों में अर्पित करने की इच्छा रखता है। भक्त और नारायण के बीच केवल यही भेद है कि वह नर है और प्रभु नारायण, पर यह संसार भी प्रभु के ही अधीन है।
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Author - Saroj Jangir
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