ऊधो करमन की गति न्यारी

ऊधो करमन की गति न्यारी Udho Karman Ki Gati Nyari


Udho Karman Ki Gati Nyari

ऊधो करमन की गति न्यारी न्यारी,
संतो करमन की गति न्यारी न्यारी।

बड़े बड़े नयन दिए मिरगन को,
बन बन फिरत उधारी
ऊधो करमन की गति न्यारी न्यारी,
संतो करमन की गति न्यारी न्यारी।

उज्ज्वल वरन दीन्हीं बगलन को,
कोयल लार दीन्हीं कारी,
ऊधो करमन की गति न्यारी न्यारी,
संतो करमन की गति न्यारी न्यारी।

औरन दीपन जल निर्मल किन्ही,
समुंदर कर दीन्हीं खारी
ऊधो करमन की गति न्यारी न्यारी,
संतो करमन की गति न्यारी न्यारी।

मूर्ख को तुम राज दीयत हो,
पंडित फिरत भिखारी,
ऊधो करमन की गति न्यारी न्यारी,
संतो करमन की गति न्यारी न्यारी।

मीरा के प्रभु गिरिधर नागर,
राजा जी को कौन बिचारी,
ऊधो करमन की गति न्यारी न्यारी,
संतो करमन की गति न्यारी न्यारी।

ऊधो कर्मन की गति न्यारी,
सब नदियां जल भरी भरी रहियां,
सागर केहि बिध खारी,
उज्ज्वल पंख दिये बगुला को,
कोयल केहि गुन कारी,
सुन्दर नयन मृगा को दीन्हे,
बन-बन फिरत उजारी,
मूरख मूरख राजे कीन्हे,
पंडित फिरत भिखारी,
सूर श्याम मिलने की आशा,
छिन-छिन बीतत भारी।

ऊधो करमन की गति न्यारी न्यारी,
संतो करमन की गति न्यारी न्यारी।



Uudho Karman Ki Gati Nyari Narayan Swami Bhajan - Gujarati Mi


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ऊधो करमन की गति न्यारी:
"ऊधो करमन की गति न्यारी" एक प्रसिद्ध है, जो भक्तिकाल के महान कवि सूरदास द्वारा रचित है। गोपियों के माध्यम से श्रीकृष्ण के प्रति उनकी गहरी भक्ति और विरह की भावना को व्यक्त करता है, साथ ही कर्म और प्रकृति के विचित्र नियमों पर भी प्रकाश डालता है। गोपियाँ ऊधो (उद्धव) से कहती हैं कि कर्मों की गति (प्रकृति का नियम) अनोखी और समझ से परे है। वे अपने प्रेम और वियोग की पीड़ा को व्यक्त करते हुए कहती हैं कि यह संसार कर्मों के उलटे खेल से भरा है। 

गोपियाँ कहती हैं कि कर्मों का नियम बड़ा विचित्र है। नदियाँ मीठा जल समुद्र में डालती हैं, फिर भी समुद्र का पानी खारा रहता है। यह दर्शाता है कि संसार में कई बार परिणाम अपेक्षाओं के विपरीत होते हैं।
बगुले को उज्ज्वल सफेद पंख मिले, जबकि मधुर स्वर वाली कोयल को काला रंग। सुंदर नयन हिरण को दिए गए, पर वह जंगल में भटकता फिरता है। यह प्रकृति के उलटे नियमों को दर्शाता है, जो भक्त को कर्म और भाग्य के रहस्य पर विचार करने को प्रेरित करता है।
मूर्खों को राजसत्ता मिलती है, जबकि विद्वान पंडित भिखारी बनकर भटकते हैं। यह कर्म की गति की न्यारी प्रकृति को दर्शाता है, जहाँ संसार में न्याय और योग्यता का मेल अक्सर नहीं दिखता।
गोपियाँ श्रीकृष्ण से मिलने की आशा में छिन-छिन तड़प रही हैं। उनका यह वियोग और प्रेम श्रीकृष्ण के प्रति उनकी अनन्य भक्ति को प्रकट करता है। वे कहती हैं कि कर्मों की इस न्यारी गति में भी उनकी आशा श्याम के मिलन पर टिकी है।

कर्मों की गति और प्रकृति के नियम मानव समझ से परे हैं। संसार की विसंगतियों के बीच एकमात्र सच्चा सहारा भगवान की भक्ति है। गोपियों का श्रीकृष्ण के प्रति प्रेम और उनकी पुकार यह दर्शाती है कि सच्ची भक्ति ही जीवन के दुखों और संकटों से मुक्ति दिला सकती है। सूरदास की यह रचना भक्ति और दर्शन का अनूठा संगम है, जो भक्तों को श्रीकृष्ण के चरणों में समर्पण करने की प्रेरणा देती है।

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