जब जब दुविधा है आन पड़ी कैसी दुविधा रैप
जब जब दुविधा है आन पड़ी कैसी दुविधा रैप
जब जब दुविधा है आन पड़ी,
धरती ये पाप से कंप उठी,
तब तब धारे मैंने भिन्न रूप,
इस धरा पुण्य की लाज रखी।
धर मत्स्य रूप मैंने आकर,
प्रलय से जीवन बचा लिया,
हयग्रीव छुपा ले वेदों को,
क्षण में था उसका नाश किया।
देव असुर समुद्र का मंथन,
जल में डूबे पर्वत पल पल,
धार मैंने फिर कूर्म रूप तब,
थाम लिया पर्वत बल से सब।
पर्वत से निकला जब अमृत,
देव-असुर रहे आपस में लड़,
मोहिनी सुंदर रूप धार फिर,
अमर किया देवों को था सब।
हिरण्याक्ष नाम एक दैत्य भयंकर,
पृथ्वी दे पाताल में जा धर,
वराह रूप विकराल बनाके,
पलभर में किया दुष्ट का वध।
प्रह्लाद बाल जपे हरि निरंतर,
हिरण्यकश्यप न सुने ये मंत्र,
नरसिंह का अवतार धार फिर,
बीच उदर से फाड़ दिया तब।
बली करे एक यज्ञ भयंकर,
तीन लोक पर करे नियंत्रण,
वामन रूप अवतार धार फिर,
करा था उसके अहम का खंडन।
परशुराम मेरा रूप धुरंधर,
किया पापी राजों का मर्दन,
क्षत्रिय-विहीन धरती ये करके,
21 हां बार किया रक्त का चंदन।
त्रेता में मैं राम बना,
द्वापर में जा घनश्याम बना,
फिर सत्य अहिंसा के खातिर,
मैं बुद्ध रूप अवतार बना।
जब जब सृष्टि पे दीप कोई,
भरी हां विपदा आन पड़ी,
तब-तब धरती पे आकर के,
मैं जग का तारणहार बना।
मैं परम ब्रह्मा मैं हूं प्रचंड,
मैं रच दूं दुनिया और कर दूं खंड,
मैं हूं आरंभ मैं ही हूं अंत,
अति-सूक्ष्म रूप और हूं अनंत,
ब्रह्मा हां विष्णु मैं ही नीलकंठ,
भक्ति में मेरी ही लीन सब,
माया ये मेरी हां कौन जाने,
कर्मों का खेल ये दीन जग।
नभचर थलचर और ये जलचर,
इन सब में मुझसे ही धड़कन,
आपस में तुम करते नफरत,
न जानो मेरा असली मतलब,
पल पल फंसे जैसे दलदल,
तड़पे जैसे मछली बिन जल,
बाहर ढूंढते फिरते मुझको,
मैं बैठा तेरे भीतर छिपकर।
ध्यान ज्ञान मैं हूं वैराग,
मैं निराकार मैं हूं साकार,
मैं ही हूं शून्य मैं ही हूं लाख,
मैं ही शक्तिरूप करुणा निधान,
कालों का काल मैं महाकाल,
ये देव लेते मुझसे आकर,
अंतर्दृष्टि से देख दीप,
सांसों की भांति तेरे मैं पास।
कैसी दुविधा मुझको,
जो था बंदीगृह अवतार लिया,
कैसी दुविधा मुझको,
जो न असली मां का प्यार मिला,
कैसी दुविधा मुझको,
जो था यशोदा का लाल बना,
कैसी दुविधा मुझको,
जो माखन चोरी इल्जाम लगा,
कैसी दुविधा मुझको,
जो न श्री राधा का साथ मिला,
कैसी दुविधा मुझको,
जो मैं खुद मामा का काल बना,
कैसी दुविधा मुझको,
जो खुद पांचाली की लाज बना,
कैसी दुविधा मुझको,
जो हर अवतारों का सार बना।
दुविधा मेरी बताते हो,
ना समझ मुझे तुम पाते हो,
हां उषा कल के सूरज को,
छोटी सी ज्योत दिखाते हो,
क्यों खुद को मूर्ख बनाते हो,
पर्वत से क्यों टकराते हो,
श्री राधा और कान्हा को तुम,
भिन्न भिन्न बताते हो।
जब अर्जुन में विषाद जगा,
हाथों से धनुष कमान गिरा,
तब धर्म की रक्षा के खातिर,
मैंने भी रूप विराट करा,
गीता का सारा ज्ञान कहा,
अर्जुन को था ललकार कहा,
नहीं धर्म बचेगा ऐसे अर्जुन,
उठ करके तू बाण चला।
मेघों में देखो भारी गर्जन,
भय से कांपे शत्रु थर थर,
जिसका सारथी मैं बन जाऊं,
उसकी राहों में क्या अड़चन,
शीश गिर रहे जा जा कटकर,
कर्मों का ये सारा बंधन,
गांधारी ने शाप दिया जो,
वो भी मेरी लीला बढ़कर।
कलि काल फिर काल बनेगा,
मानव तब शैतान बनेगा,
हदें पार जब होंगी पाप की,
जिस्मों का बाज़ार लगेगा,
धर्म कर्म खिलवाड़ बनेगा,
जात पात पर दांव चलेगा,
पर्यावरण के शोषण से तब,
अंधाधुंध विकास बढ़ेगा,
राम नाम अपराध बनेगा,
चारों ओर संग्राम मचेगा,
काम वासना इतनी होगी,
अपनों संग सहवास करेगा,
गंगा का प्रभाव घटेगा,
कल्कि तब एक आस बनेगा,
धर्म स्थापना हेतु फिर,
कान्हा तेरा अवतार धरेगा।
धरती ये पाप से कंप उठी,
तब तब धारे मैंने भिन्न रूप,
इस धरा पुण्य की लाज रखी।
धर मत्स्य रूप मैंने आकर,
प्रलय से जीवन बचा लिया,
हयग्रीव छुपा ले वेदों को,
क्षण में था उसका नाश किया।
देव असुर समुद्र का मंथन,
जल में डूबे पर्वत पल पल,
धार मैंने फिर कूर्म रूप तब,
थाम लिया पर्वत बल से सब।
पर्वत से निकला जब अमृत,
देव-असुर रहे आपस में लड़,
मोहिनी सुंदर रूप धार फिर,
अमर किया देवों को था सब।
हिरण्याक्ष नाम एक दैत्य भयंकर,
पृथ्वी दे पाताल में जा धर,
वराह रूप विकराल बनाके,
पलभर में किया दुष्ट का वध।
प्रह्लाद बाल जपे हरि निरंतर,
हिरण्यकश्यप न सुने ये मंत्र,
नरसिंह का अवतार धार फिर,
बीच उदर से फाड़ दिया तब।
बली करे एक यज्ञ भयंकर,
तीन लोक पर करे नियंत्रण,
वामन रूप अवतार धार फिर,
करा था उसके अहम का खंडन।
परशुराम मेरा रूप धुरंधर,
किया पापी राजों का मर्दन,
क्षत्रिय-विहीन धरती ये करके,
21 हां बार किया रक्त का चंदन।
त्रेता में मैं राम बना,
द्वापर में जा घनश्याम बना,
फिर सत्य अहिंसा के खातिर,
मैं बुद्ध रूप अवतार बना।
जब जब सृष्टि पे दीप कोई,
भरी हां विपदा आन पड़ी,
तब-तब धरती पे आकर के,
मैं जग का तारणहार बना।
मैं परम ब्रह्मा मैं हूं प्रचंड,
मैं रच दूं दुनिया और कर दूं खंड,
मैं हूं आरंभ मैं ही हूं अंत,
अति-सूक्ष्म रूप और हूं अनंत,
ब्रह्मा हां विष्णु मैं ही नीलकंठ,
भक्ति में मेरी ही लीन सब,
माया ये मेरी हां कौन जाने,
कर्मों का खेल ये दीन जग।
नभचर थलचर और ये जलचर,
इन सब में मुझसे ही धड़कन,
आपस में तुम करते नफरत,
न जानो मेरा असली मतलब,
पल पल फंसे जैसे दलदल,
तड़पे जैसे मछली बिन जल,
बाहर ढूंढते फिरते मुझको,
मैं बैठा तेरे भीतर छिपकर।
ध्यान ज्ञान मैं हूं वैराग,
मैं निराकार मैं हूं साकार,
मैं ही हूं शून्य मैं ही हूं लाख,
मैं ही शक्तिरूप करुणा निधान,
कालों का काल मैं महाकाल,
ये देव लेते मुझसे आकर,
अंतर्दृष्टि से देख दीप,
सांसों की भांति तेरे मैं पास।
कैसी दुविधा मुझको,
जो था बंदीगृह अवतार लिया,
कैसी दुविधा मुझको,
जो न असली मां का प्यार मिला,
कैसी दुविधा मुझको,
जो था यशोदा का लाल बना,
कैसी दुविधा मुझको,
जो माखन चोरी इल्जाम लगा,
कैसी दुविधा मुझको,
जो न श्री राधा का साथ मिला,
कैसी दुविधा मुझको,
जो मैं खुद मामा का काल बना,
कैसी दुविधा मुझको,
जो खुद पांचाली की लाज बना,
कैसी दुविधा मुझको,
जो हर अवतारों का सार बना।
दुविधा मेरी बताते हो,
ना समझ मुझे तुम पाते हो,
हां उषा कल के सूरज को,
छोटी सी ज्योत दिखाते हो,
क्यों खुद को मूर्ख बनाते हो,
पर्वत से क्यों टकराते हो,
श्री राधा और कान्हा को तुम,
भिन्न भिन्न बताते हो।
जब अर्जुन में विषाद जगा,
हाथों से धनुष कमान गिरा,
तब धर्म की रक्षा के खातिर,
मैंने भी रूप विराट करा,
गीता का सारा ज्ञान कहा,
अर्जुन को था ललकार कहा,
नहीं धर्म बचेगा ऐसे अर्जुन,
उठ करके तू बाण चला।
मेघों में देखो भारी गर्जन,
भय से कांपे शत्रु थर थर,
जिसका सारथी मैं बन जाऊं,
उसकी राहों में क्या अड़चन,
शीश गिर रहे जा जा कटकर,
कर्मों का ये सारा बंधन,
गांधारी ने शाप दिया जो,
वो भी मेरी लीला बढ़कर।
कलि काल फिर काल बनेगा,
मानव तब शैतान बनेगा,
हदें पार जब होंगी पाप की,
जिस्मों का बाज़ार लगेगा,
धर्म कर्म खिलवाड़ बनेगा,
जात पात पर दांव चलेगा,
पर्यावरण के शोषण से तब,
अंधाधुंध विकास बढ़ेगा,
राम नाम अपराध बनेगा,
चारों ओर संग्राम मचेगा,
काम वासना इतनी होगी,
अपनों संग सहवास करेगा,
गंगा का प्रभाव घटेगा,
कल्कि तब एक आस बनेगा,
धर्म स्थापना हेतु फिर,
कान्हा तेरा अवतार धरेगा।
कैसी दुविधा एक प्रेरणादायक और शक्तिशाली हिंदी रैप है जो भगवान विष्णु के दस अवतार और श्रीकृष्ण की अनमोल शिक्षाओं पर लिखा गया है। इस गीत में बताया गया है कि जब जब धरती पर पाप और अन्याय बढ़ा है भगवान ने अलग-अलग रूपों में अवतार लेकर हमेशा धर्म की रक्षा की है। यह गीत महाभारत के प्रसंग, भगवद गीता के उपदेश बताता है और कलियुग की भविष्यवाणी करता है। गीत में श्रीकृष्ण को दिखाया गया है, जिन्होंने अर्जुन को कर्म का महत्व बताया और आश्वासन दिया कि जब भी अधर्म बढ़ेगा, वे कल्कि के रूप में आकर धरती पर संतुलन बनायेंगें। यह गीत आध्यात्मिक संदेश देता है कि हमें अपने धर्म और कर्तव्यों के प्रति जागरूक रहना चाहिए।
KAISI DUVIDHA | Hindi Rap Song | Krishna Paramavatar | DK | New Song 2025
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Track: Kaisi Duvidha
Artist/Lyrics: Dipanshu Kashyap
Genre: Devotional Rap
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Artist/Lyrics: Dipanshu Kashyap
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Author - Saroj Jangir
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