प्राचीन भारत कहाँ कहाँ तक फैला हुआ था
प्राचीन भारत की सीमा वर्तमान समय में भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, श्रीलंका और अफगानिस्तान के कुछ हिस्सों तक फैली हुई थी। ऐतिहासिक रूप से सिंधु घाटी सभ्यता (हड़प्पा संस्कृति) से लेकर मौर्य और गुप्त साम्राज्य तक, भारतीय उपमहाद्वीप का प्रभावशाली सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनीतिक प्रभाव पूरे दक्षिण और मध्य एशिया में देखा गया। व्यापारिक मार्गों और सांस्कृतिक संपर्कों के माध्यम से भारत का प्रभाव दूरस्थ स्थानों जैसे दक्षिण-पूर्व एशिया और मध्य एशिया तक भी पहुँचा।
भारत का प्राचीन इतिहास अनगिनत रहस्यों, महानता और अद्वितीय उपलब्धियों से परिपूर्ण है। भारत का प्रभुत्व राजनीतिक से अधिक सांस्कृतिक, आर्थिक और आध्यात्मिक रहा है। चोल साम्राज्य ने दक्षिण-पूर्व एशिया में सांस्कृतिक प्रभाव छोड़ा और भारतीय व्यापारियों ने मसालों और रत्नों के माध्यम से भारत का प्रभाव अरब और यूरोप तक फैलाया। इसे "सोने की चिड़िया" कहा जाता था, क्योंकि यह धन-धान्य और ज्ञान का भंडार था। तक्षशिला और नालंदा विश्वविद्यालय वैश्विक शिक्षा के केंद्र थे, और आर्यभट्ट व सुश्रुत जैसे विद्वानों ने गणित और चिकित्सा में नई दिशाएँ दीं।भारतीय संस्कृति ने दक्षिण-पूर्व एशिया में भी अपनी छाप छोड़ी, जहाँ अंगकोरवाट और इंडोनेशिया में रामायण और महाभारत जैसे उदाहरण हैं। भारत को "विश्वगुरु" कहा जाता था क्योंकि योग, ध्यान और वेदांत जैसे दर्शन ने आत्मिक चेतना को उभारा। शून्य की खोज ने विज्ञान और गणित में क्रांति ला दी। भारत का प्रभाव तलवार से नहीं, बल्कि विचार, ज्ञान और संस्कृति से हुआ, जो आज भी प्रेरणा का स्रोत है।भारत में बौद्ध धर्म का उदय छठी शताब्दी ईसा पूर्व में हुआ, जब गौतम बुद्ध ने अपने उपदेशों के माध्यम से इसे प्रचारित किया। सम्राट अशोक के शासनकाल (273-232 ईसा पूर्व) में बौद्ध धर्म को राजधर्म का दर्जा मिला, जिससे यह व्यापक रूप से फैला।हालांकि, समय के साथ बौद्ध धर्म में कुछ कुरीतियाँ और कर्मकांड शामिल हो गए, जिससे इसकी मूल पहचान धूमिल होने लगी। सातवीं शताब्दी तक, बौद्ध धर्म में आंतरिक कमजोरियाँ उत्पन्न हो गई थीं। इस अवधि में आदि शंकराचार्य और कुमारिल भट्ट जैसे विद्वानों ने वैदिक धर्म के पुनरुत्थान के लिए प्रयास किए। कुमारिल भट्ट ने बौद्ध धर्म का गहन अध्ययन किया और उसके बाद उसके सिद्धांतों का खंडन किया।आदि शंकराचार्य ने भी बौद्ध धर्म के प्रमुख विद्वानों से शास्त्रार्थ किए और उन्हें पराजित किया, जिससे वैदिक धर्म का पुनरुत्थान हुआ। इन प्रयासों के परिणामस्वरूप, बौद्ध धर्म का प्रभाव कम होने लगा और वैदिक धर्म पुनः प्रमुख हो गया।बौद्ध धर्म के पतन के अन्य कारणों में विदेशी आक्रमण, विशेषकर हूणों के आक्रमण, और बौद्ध मठों में बढ़ती अनैतिकता शामिल हैं। इन सभी कारकों के संयुक्त प्रभाव से बौद्ध धर्म का भारत में धीरे-धीरे पतन हुआ, जबकि यह अन्य देशों में फैलता और विकसित होता रहा।भारत में बौद्ध धर्म का उदय छठी शताब्दी ईसा पूर्व में हुआ, जब गौतम बुद्ध ने अपने उपदेशों के माध्यम से इसे प्रचारित किया। सम्राट अशोक के शासनकाल में इसे राजधर्म का दर्जा मिला, जिससे यह व्यापक रूप से फैल गया। हालांकि, समय के साथ बौद्ध धर्म में कुरीतियाँ और कर्मकांड जुड़ने लगे, जिससे इसकी मूल पहचान कमजोर हो गई। सातवीं शताब्दी तक, इसमें आंतरिक कमजोरियाँ उत्पन्न हो गई थीं। आदि शंकराचार्य और कुमारिल भट्ट ने वैदिक धर्म के पुनरुत्थान के लिए प्रयास किए, जिससे बौद्ध धर्म का प्रभाव कम होने लगा। इसके पतन में विदेशी आक्रमण, विशेषकर हूणों के आक्रमण, और बौद्ध मठों में बढ़ती अनैतिकता ने भी भूमिका निभाई। अंततः, बौद्ध धर्म भारत में क्षीण होता गया, जबकि यह अन्य देशों में फैलता और विकसित होता रहा।
प्राचीन भारत की सीमाएँ बहुत विस्तृत थीं, जो पश्चिम में अफगानिस्तान और ईरान से लेकर, उत्तर में कश्मीर तक, और दक्षिण में श्रीलंका तक फैली हुई थीं। भारतीय संस्कृति और ज्ञान का प्रभाव दूर-दूर तक पहुंचा था, क्योंकि भारतीय मनीषियों ने विभिन्न देशों में यात्रा की। भारतीय सभ्यता का विस्तार व्यापार, शिक्षा, और सांस्कृतिक आदान-प्रदान के माध्यम से हुआ। हालांकि, समय के साथ बाहरी आक्रमणों और आंतरिक बदलावों के कारण भारत की राजनीतिक और भौगोलिक सीमाएँ बदल गईं।
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