क्या याद मेरी आती नहीं बाबूजी
क्या याद मेरी आती नहीं बाबूजी
सच बात पूछती हूं
बताओ ना बाबूजी,
छुपाओ ना बाबूजी,
क्या याद मेरी आती नहीं,
क्या याद मेरी आती नही।
पैदा हुई घर में मेरे,
मातम सा छाया था,
पापा तेरे खुश थे,
मुझे मां ने बताया था,
ले ले के नाम प्यार,
जताते भी मुझे थे,
आते थे कहीं से तो,
बुलाते भी मुझे थे,
मैं हूं नहीं तो किसको,
बुलाते हो बाबूजी,
क्या याद मेरी आती नही।
हर जिद मेरी पूरी हुई,
हर बात मानते,
बेटी थी मगर बेटों से,
ज्यादा थे जानते,
घर में कभी होली,
कभी दीपावली आए,
सैंडल भी मेरी आई,
मेरी फ्राक भी आई,
अपने लिए बंडी भी,
ना लाते थे बाबूजी,
क्या कमाते थे बाबूजी,
क्या याद मेरी आती नही।
सारी उम्र खर्चे में,
कमाई में लगा दी,
दादी बीमार थी तो,
दवाई में लगा दी,
पढ़ने लगे हम सब तो,
पढ़ाई में लगा दी,
बाकी बचा वो मेरे,
सगाई में लगा दी,
अब किसके लिए,
इतना कमाते हो बाबूजी,
बचाते हो बाबूजी,
क्या याद मेरी आती नही।
कहते थे मेरा मन कहीं,
एक पल ना लगेगा,
बिटिया विदा हुई तो,
ये घर घर ना लगेगा,
कपड़े कभी गहने,
कभी सामान संजोते,
तैयारियां भी करते थे,
छूप छूप के थे रोते,
कर कर के याद,
अब तो ना रोते हो बाबूजी,
ना रोते हो बाबूजी,
क्या याद मेरी आती नही।
कैसी परम्परा है ये,
कैसा विधान है,
पापा बताना कौन सा,
मेरा जहान है,
आधा यहां आधा वहां,
जीवन है अधूरा,
पीहर मेरा पूरा है ना,
ससुराल है पूरा,
क्या आपका भी प्यार,
अधूरा है बाबूजी,
ना पूरा है बाबूजी,
क्या याद मेरी आती नही।
बताओ ना बाबूजी,
छुपाओ ना बाबूजी,
क्या याद मेरी आती नहीं,
क्या याद मेरी आती नही।
पैदा हुई घर में मेरे,
मातम सा छाया था,
पापा तेरे खुश थे,
मुझे मां ने बताया था,
ले ले के नाम प्यार,
जताते भी मुझे थे,
आते थे कहीं से तो,
बुलाते भी मुझे थे,
मैं हूं नहीं तो किसको,
बुलाते हो बाबूजी,
क्या याद मेरी आती नही।
हर जिद मेरी पूरी हुई,
हर बात मानते,
बेटी थी मगर बेटों से,
ज्यादा थे जानते,
घर में कभी होली,
कभी दीपावली आए,
सैंडल भी मेरी आई,
मेरी फ्राक भी आई,
अपने लिए बंडी भी,
ना लाते थे बाबूजी,
क्या कमाते थे बाबूजी,
क्या याद मेरी आती नही।
सारी उम्र खर्चे में,
कमाई में लगा दी,
दादी बीमार थी तो,
दवाई में लगा दी,
पढ़ने लगे हम सब तो,
पढ़ाई में लगा दी,
बाकी बचा वो मेरे,
सगाई में लगा दी,
अब किसके लिए,
इतना कमाते हो बाबूजी,
बचाते हो बाबूजी,
क्या याद मेरी आती नही।
कहते थे मेरा मन कहीं,
एक पल ना लगेगा,
बिटिया विदा हुई तो,
ये घर घर ना लगेगा,
कपड़े कभी गहने,
कभी सामान संजोते,
तैयारियां भी करते थे,
छूप छूप के थे रोते,
कर कर के याद,
अब तो ना रोते हो बाबूजी,
ना रोते हो बाबूजी,
क्या याद मेरी आती नही।
कैसी परम्परा है ये,
कैसा विधान है,
पापा बताना कौन सा,
मेरा जहान है,
आधा यहां आधा वहां,
जीवन है अधूरा,
पीहर मेरा पूरा है ना,
ससुराल है पूरा,
क्या आपका भी प्यार,
अधूरा है बाबूजी,
ना पूरा है बाबूजी,
क्या याद मेरी आती नही।
बेटी और पिता का रिश्ता सबसे अनमोल रिश्ता होता है। बेटी जब छोटी होती है तो पिता उसकी हर जिद पूरी करता है। बेटी की हर खुशी का ध्यान रखता है। लेकिन जब वह ससुराल चली जाती है तो वही पिता जिसने उसे लाड़-प्यार से पाला अकेले रह जाते हैं। बेटी को बचपन की यादें आती हैं। जब पिता उसके लिए सब कुछ छोड़कर उसकी खुशियों का ख्याल रखते थे। बेटी की याद में प्यार, अपनापन और एक गहरी उदासी छिपी हुई है जो हर पिता के दिल को छू जाती है। पिता और बेटी के रिश्ते को बतलाता ये गीत बहुत ही मार्मिक है।
बाबूजी क्या याद मेरी आती नहीं l Babu Ji Kya Yaad Meri Aati Nahi l Nirgun Bhajan l @santvani-
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Author - Saroj Jangir
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