कुम्भ की महिमा न्यारी है
कुम्भ की महिमा न्यारी है
कुम्भ की महिमा न्यारी है
महाकुम्भ की महापर्व की ख्याति जगत में न्यारी,
युगों युगों की परंपरा शुभ अद्भुत अनुपम प्यारी,
वेद शास्त्र उपनिषद निरंतर जिसकी गाथा गायें,
तीन लोक चौदहों भुवन में कुम्भ की महिमा भारी।
कुम्भ की महिमा न्यारी है,
गाथा परम पुनीत सुपावन मंगलकारी है,
कुम्भ की महिमा न्यारी है।
एक बार देवों दैत्यों में,
शुरू हुआ रण भारी,
मार रहे थे एक दूजे को,
दोनों बारी बारी,
दैत्यों को आचार्य शुक्र,
जीवित करते दोबारा,
मरते मरते देवों ने भी,
किया उपक्रम न्यारा,
असुरों संग सागर मंथन की,
युक्ति विचारी है,
कुम्भ की महिमा न्यारी है।
चौदह रत्नों में पहला था,
कालकुठ विष भारी,
देव दैत्य दोनों घबराये,
पिए त्वरित त्रिपुरारी,
कामधेनु रम्भा उच्चै:श्रवा,
कल्पवृष्य शशि कौस्तुभ,
पद्मराग वारुणि महालक्ष्मी,
पांचजन्य शारंग धनु,
तब धन्वंतरी अरू अमृत की,
आई बारी है,
कुम्भ की महिमा न्यारी है।
अमृत हेतू सुरों असुरों में,
फिर से छिड़ी लड़ाई,
लीलाधारी नारायण तब,
लीला त्वरित रचाई,
विश्व मोहिनी रूप बनाकर,
किये भमित दैत्यों को,
अमृत घट जयंत के द्वारा,
भिजवाये देवों को,
प्रभु की लीला परम मनोहर,
मंगलकारी है,
कुम्भ की महिमा न्यारी है।
अमृत घट लेकर जयंत,
श्रीहरि से आज्ञा लीन्ही,
सागर से इंद्रासन तक,
बारह दीन यात्रा किन्ही,
देवों का इक दिन होता है,
मानव वर्ष बराबर,
बिना रुके वो तीन दिनों तक,
चलते रहें निरंतर,
तीन दिनों के बाद कहीं,
विश्राम की बारी है,
कुम्भ की महिमा न्यारी है।
इस यात्रा में जहां जहां,
अमृत घट रखा गया है,
कुम्भ क्षेत्र वेदों के द्वारा,
उनको कहा गया है,
तीन वर्ष पश्चात कहीं इक,
कुम्भ सुनिश्चित होता,
अर्ध कुम्भ कहीं महाकुम्भ,
सिंहस्थ कहीं पर होता,
हरिद्वार नाशिक प्रयाग,
उज्जैनी प्यारी है,
कुम्भ की महिमा न्यारी है।
बारह वर्षों बाद पुनः,
जब सुदीन सुमंगल आता,
उसी तीर्थ पर महाकुम्भ,
दोबारा अलख जगाता,
स्वर्गलोक के सभी देवगण,
धरा धाम पर आते,
गंगा गोदावरी क्षिप्रा में,
अमृत धार बहाते,
आस्था की गहराई में,
श्रद्धा शुभकारी है,
आस्था की गहराई में,
कुम्भ की महिमा न्यारी है।
दुनिया भर के श्रद्धालु,
जन आकर शीश झुकाएं,
व्रत उपवास दान से अपना,
जीवन धन्य बनाएं,
पाप मुक्त होने को आतुर,
डुबकी यहां लगाएं,
अपनी पुण्य हथेली में कुछ,
अमृत लेकर जाएं,
राजा रंक विरक्त तपस्वी,
सभी पुजारी है,
कुम्भ की महिमा न्यारी है।
महाकुम्भ की महापर्व की ख्याति जगत में न्यारी,
युगों युगों की परंपरा शुभ अद्भुत अनुपम प्यारी,
वेद शास्त्र उपनिषद निरंतर जिसकी गाथा गायें,
तीन लोक चौदहों भुवन में कुम्भ की महिमा भारी।
कुम्भ की महिमा न्यारी है,
गाथा परम पुनीत सुपावन मंगलकारी है,
कुम्भ की महिमा न्यारी है।
एक बार देवों दैत्यों में,
शुरू हुआ रण भारी,
मार रहे थे एक दूजे को,
दोनों बारी बारी,
दैत्यों को आचार्य शुक्र,
जीवित करते दोबारा,
मरते मरते देवों ने भी,
किया उपक्रम न्यारा,
असुरों संग सागर मंथन की,
युक्ति विचारी है,
कुम्भ की महिमा न्यारी है।
चौदह रत्नों में पहला था,
कालकुठ विष भारी,
देव दैत्य दोनों घबराये,
पिए त्वरित त्रिपुरारी,
कामधेनु रम्भा उच्चै:श्रवा,
कल्पवृष्य शशि कौस्तुभ,
पद्मराग वारुणि महालक्ष्मी,
पांचजन्य शारंग धनु,
तब धन्वंतरी अरू अमृत की,
आई बारी है,
कुम्भ की महिमा न्यारी है।
अमृत हेतू सुरों असुरों में,
फिर से छिड़ी लड़ाई,
लीलाधारी नारायण तब,
लीला त्वरित रचाई,
विश्व मोहिनी रूप बनाकर,
किये भमित दैत्यों को,
अमृत घट जयंत के द्वारा,
भिजवाये देवों को,
प्रभु की लीला परम मनोहर,
मंगलकारी है,
कुम्भ की महिमा न्यारी है।
अमृत घट लेकर जयंत,
श्रीहरि से आज्ञा लीन्ही,
सागर से इंद्रासन तक,
बारह दीन यात्रा किन्ही,
देवों का इक दिन होता है,
मानव वर्ष बराबर,
बिना रुके वो तीन दिनों तक,
चलते रहें निरंतर,
तीन दिनों के बाद कहीं,
विश्राम की बारी है,
कुम्भ की महिमा न्यारी है।
इस यात्रा में जहां जहां,
अमृत घट रखा गया है,
कुम्भ क्षेत्र वेदों के द्वारा,
उनको कहा गया है,
तीन वर्ष पश्चात कहीं इक,
कुम्भ सुनिश्चित होता,
अर्ध कुम्भ कहीं महाकुम्भ,
सिंहस्थ कहीं पर होता,
हरिद्वार नाशिक प्रयाग,
उज्जैनी प्यारी है,
कुम्भ की महिमा न्यारी है।
बारह वर्षों बाद पुनः,
जब सुदीन सुमंगल आता,
उसी तीर्थ पर महाकुम्भ,
दोबारा अलख जगाता,
स्वर्गलोक के सभी देवगण,
धरा धाम पर आते,
गंगा गोदावरी क्षिप्रा में,
अमृत धार बहाते,
आस्था की गहराई में,
श्रद्धा शुभकारी है,
आस्था की गहराई में,
कुम्भ की महिमा न्यारी है।
दुनिया भर के श्रद्धालु,
जन आकर शीश झुकाएं,
व्रत उपवास दान से अपना,
जीवन धन्य बनाएं,
पाप मुक्त होने को आतुर,
डुबकी यहां लगाएं,
अपनी पुण्य हथेली में कुछ,
अमृत लेकर जाएं,
राजा रंक विरक्त तपस्वी,
सभी पुजारी है,
कुम्भ की महिमा न्यारी है।
कुंभ स्नान अत्यंत पवित्र और शुभ कार्य है। यह महापर्व हर बारह वर्षों में चार पवित्र स्थानों हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक में आयोजित किया जाता है। कुंभ में स्नान करने से सभी पाप धुल जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है। ऐसा मानना है कि समुद्र मंथन के दौरान अमृत कलश से कुछ बूंदें इन स्थानों पर गिरी थीं, जिससे ये तीर्थ विशेष रूप से पवित्र हो गए। इसीलिए कुंभ मेले के दौरान लाखों श्रद्धालु इन तीर्थ स्थलों पर एकत्र होकर गंगा, यमुना और क्षिप्रा जैसी पवित्र नदियों में स्नान करते हैं। कुंभ स्नान आध्यात्मिक शुद्धि का प्रतीक है। यह समाज में एकता, श्रद्धा और आस्था का अद्भुत नजारा है। इस पर्व पर आत्मशुद्धि, ध्यान, दान और सत्संग का अवसर मिलता है। इसलिए कुंभ स्नान धार्मिक अनुष्ठान के साथ साथ आत्मिक शांति और जीवन को नई दिशा देने वाला एक महत्वपूर्ण अवसर भी है।
महाकुंभ कथा । कुम्भ की महिमा न्यारी है | Kumbh Ki Mahima Nyari Hai| Mahakumbh Song 2025| संपूर्ण कथा
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Album Name - Kumbh Ki Mahima Nyari Hai
Language - Hindi
Music Director - Govind Prasann Saraswati
Singer - Jazim Sharma
Lyricist - Raman Dwivedi
Language - Hindi
Music Director - Govind Prasann Saraswati
Singer - Jazim Sharma
Lyricist - Raman Dwivedi
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Author - Saroj Jangir
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